भूख से तफ़तीश की जा रही थी, लोकतंत्र के सबसे बड़े पंचायत में.
भूख सकुचाया-सिमटा, कँटीली झाड़ियों से बने कटघरे में खड़ा भौंचक देख रहा था ये सारी कार्यवाहियाँ. उसे अच्छी तरह याद है, कल उसे तब गिरफ़्तार किया गया था, जब वह एक अनाथ फुटपाथिया बच्चे की आँत से निकल कर उसकी जीभ पर आ गया था और बच्चे ने रेडी वाले के तंदूर से एक अधभुनी रोटी चुपके से उठाने की कोशिश की थी.
भूख को ये भी बिल्कुल ठीक से याद है कि उसे कई बार चीख-चीख कर भीड़ के सामने अपनी सफ़ाई में चौदह पिल्ले जनने वाली उस कुतिया का वास्ता देना पड़ा था, जो अपने झूले स्तनों और पिचकी काया के साथ चमकती आँखों से उसी रेड़ी पर रोटी-सब्जी भकोसते लोगों को ताक रही थी जीभ निकालकर...
भूख ने बताया था कि यही उसकी असली शिनाख्त है!
“तुम इस सभ्य देश के संस्कारी नागरिकों को चोरी, रिश्वत, बेईमानी, घपले-घोटालेबाजी, फिरौती-अपहरण, हत्या जैसे घिनौने दुष्कर्मों के लिए उकसाते हो...” थुलथुल सरपंच ने, जिसके सिर पर अनाज की बालियों से सजी पगड़ी थी, भूख की ओर हिकारत से देखते हुए उस पर लगे इल्जामों को दुहराया, नियम के अनुसार.
भूख बेदम सा खड़ा था, अचानक पुख्ता आवाज़ में बोला, “झूठ...!! मैं किसी को अपना ईमान खाने को मज़बुर नहीं करता ! मगर यही सच भी है कि खाए घाए हुओं के बीच भूखा पेटधर्म निभाने को कुछ भी कर सकता है, किसी भी हद तक जा सकता है. और वह नाजायज़ भी नहीं होगा, क्योंकि जीने के लिए कोई भी शर्त बड़ी नहीं होती...”
इसके बाद यही हुआ कि भूख को एक गुमनाम मौत की सज़ा सुनाई दी गई...
एक सुबह राजधानी के बड़े अखबार में एक कॉलम की रिपोर्ट थी सर्दी और भूख से लालकिले की चाहरदिवारी के बाहर फुटपाथ पर सात साला अज्ञात बच्चे ने दम तोड़ा.
कुछ बातें जो रह जाती हैं कभी मन में, अनकही- अनसुनी... शब्दों के माध्यम से रखी जा सकती हैं,बरक्स... मेरे-तेरे मन की कई बातें... कई सारे अनुभव, कई सारे स्पंदन, कई सारे घाव और मरहम... व्यक्त होते हैं शब्दों के माध्यम से... मेरा मुझी से है साक्षात्कार, शब्दों के माध्यम से... तू भी मेरे मनमीत, है साकार... शब्दों के माध्यम से...
गठरी...
25 मई
(1)
३१ जुलाई
(1)
अण्णाभाऊ साठे जन्मशती वर्ष
(1)
अभिव्यक्ति की आज़ादी
(3)
अरुंधती रॉय
(1)
अरुण कुमार असफल
(1)
आदिवासी
(2)
आदिवासी महिला केंद्रित
(1)
आदिवासी संघर्ष
(1)
आधुनिक कविता
(3)
आलोचना
(1)
इंदौर
(1)
इंदौर प्रलेसं
(9)
इप्टा
(4)
इप्टा - इंदौर
(1)
इप्टा स्थापना दिवस
(1)
उपन्यास साहित्य
(1)
उर्दू में तरक्कीपसंद लेखन
(1)
उर्दू शायरी
(1)
ए. बी. बर्धन
(1)
एटक शताब्दी वर्ष
(1)
एम् एस सथ्यू
(1)
कम्युनिज़्म
(1)
कविता
(40)
कश्मीर
(1)
कहानी
(7)
कामरेड पानसरे
(1)
कार्ल मार्क्स
(1)
कार्ल मार्क्स की 200वीं जयंती
(1)
कालचिती
(1)
किताब
(2)
किसान
(1)
कॉम. विनीत तिवारी
(6)
कोरोना वायरस
(1)
क्यूबा
(1)
क्रांति
(3)
खगेन्द्र ठाकुर
(1)
गज़ल
(5)
गरम हवा
(1)
गुंजेश
(1)
गुंजेश कुमार मिश्रा
(1)
गौहर रज़ा
(1)
घाटशिला
(3)
घाटशिला इप्टा
(2)
चीन
(1)
जमशेदपुर
(1)
जल-जंगल-जमीन की लड़ाई
(1)
जान संस्कृति दिवस
(1)
जाहिद खान
(2)
जोश मलीहाबादी
(1)
जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल स्टडीज
(1)
ज्योति मल्लिक
(1)
डॉ. कमला प्रसाद
(3)
डॉ. रसीद जहाँ
(1)
तरक्कीपसंद शायर
(1)
तहरीर चौक
(1)
ताजी कहानी
(4)
दलित
(2)
धूमिल
(1)
नज़्म
(8)
नागार्जुन
(1)
नागार्जुन शताब्दी वर्ष
(1)
नारी
(3)
निर्मला पुतुल
(1)
नूर जहीर
(1)
परिकथा
(1)
पहल
(1)
पहला कविता समय सम्मान
(1)
पाश
(1)
पूंजीवाद
(1)
पेरिस कम्यून
(1)
प्रकृति
(3)
प्रगतिशील मूल्य
(2)
प्रगतिशील लेखक संघ
(4)
प्रगतिशील साहित्य
(3)
प्रगतिशील सिनेमा
(1)
प्रलेस
(2)
प्रलेस घाटशिला इकाई
(5)
प्रलेस झारखंड राज्य सम्मेलन
(1)
प्रलेसं
(12)
प्रलेसं-घाटशिला
(3)
प्रेम
(17)
प्रेमचंद
(1)
प्रेमचन्द जयंती
(1)
प्रो. चमन लाल
(1)
प्रोफ. चमनलाल
(1)
फिदेल कास्त्रो
(1)
फेसबुक
(1)
फैज़ अहमद फैज़
(2)
बंगला
(1)
बंगाली साहित्यकार
(1)
बेटी
(1)
बोल्शेविक क्रांति
(1)
भगत सिंह
(1)
भारत
(1)
भारतीय नारी संघर्ष
(1)
भाषा
(3)
भीष्म साहनी
(3)
मई दिवस
(1)
महादेव खेतान
(1)
महिला दिवस
(1)
महेश कटारे
(1)
मानवता
(1)
मार्क्सवाद
(1)
मिथिलेश प्रियदर्शी
(1)
मिस्र
(1)
मुक्तिबोध
(1)
मुक्तिबोध जन्मशती
(1)
युवा
(17)
युवा और राजनीति
(1)
रचना
(6)
रूसी क्रांति
(1)
रोहित वेमुला
(1)
लघु कथा
(1)
लेख
(3)
लैटिन अमेरिका
(1)
वर्षा
(1)
वसंत
(1)
वामपंथी आंदोलन
(1)
वामपंथी विचारधारा
(1)
विद्रोह
(16)
विनीत तिवारी
(2)
विभाजन पर फ़िल्में
(1)
विभूति भूषण बंदोपाध्याय
(1)
व्यंग्य
(1)
शमशेर बहादुर सिंह
(3)
शेखर
(11)
शेखर मल्लिक
(3)
समकालीन तीसरी दुनिया
(1)
समयांतर पत्रिका
(1)
समसामयिक
(8)
समाजवाद
(2)
सांप्रदायिकता
(1)
साम्प्रदायिकता
(1)
सावन
(1)
साहित्य
(6)
साहित्यिक वृतचित्र
(1)
सीपीआई
(1)
सोशल मीडिया
(1)
स्त्री
(18)
स्त्री विमर्श
(1)
स्मृति सभा
(1)
स्वास्थ्य सेवाओं का राष्ट्रीयकरण
(1)
हरिशंकर परसाई
(2)
हिंदी
(42)
हिंदी कविता
(41)
हिंदी साहित्य
(78)
हिंदी साहित्य में स्त्री-पुरुष
(3)
ह्यूगो
(1)
गुरुवार, 27 मई 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Laghukatha achhi lagi, meri baton ko anytha na lewen isme thodi vyakranik ashuddhiyan hain jinhe shayad type karte samay aap kar gaye hain, sudhar dijiyega.
जवाब देंहटाएं