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सोमवार, 5 जुलाई 2010

वे कभी भी आ सकते हैं

वे कभी भी आ सकते हैं,
दिन में,
और
आधी रात को, कभी भी...

घर से बाहर निकाल कर
तुम्हें, दाग सकते हैं गोली,
और सिद्ध कर सकते हैं कि
तुम असंवैधानिक विरोध के पक्ष में थे !
वे आते हैं शातिर शिकारी की तरह...
और मार डालते हैं तुमको,
क्योंकि तुम खतरा हो
अंदरूनी सुरक्षा के लिए !

वे प्रशिक्षित हैं
तुमको मारने के लिए
क्योंकि वे प्रशिक्षित हुए थे
'दुश्मनों' को मारने के लिए !

सवाल उठता है
जब हवालात में बलात्कार होता है, तब...
जब एक मुख्यमंत्री अरबों-करोड़ों की सरकारी सम्पति,
जिसे तुम्हारे जैसों के खून-पसीने से निचोड़ कर
तुम्हारे ही विकास के लिए वसूला गया था,
गटक जाता है, और मुजरिम घोषित होते ही
प्रदेश के सबसे उम्दा अस्पताल में
स्वास्थ लाभ करने नामजद रोगी बन जाता है,
तब...
जब जाति के नाम पर आदमी गिने जाते हैं
क्योंकि जाति के ही नाम पर मारे जाने हैं, तब...
और तब, जब बीमारी से ज्यादा भूख, बेईमानी और
सरकारी घोषणाओं के जानलेवा मजाक से
लोग मरने लगते हैं...
जब "शाइन" कर रहा "इंडिया"
मध्यवर्गीय मानचित्र पर गायब होता है और
सदर हस्पताल में एक युवा स्त्री प्रसव
के दौरान मर जाती है, क्योंकि
डॉक्टर हड़ताल पर थे और
दवाईयाँ काले बाज़ार में बिक चुकी थीं...
तब पता नहीं क्यों किसी अंदरूनी सुरक्षा या
कम से कम आम आदमी की सुरक्षा को खतरा होने की
घोषणा नहीं होती !

तुम्हारी जमीं, तुम्हारा पानी, तुम्हारा गाँव, तुम्हारा जंगल...
बूटों से रौंदे जाते हैं तुम्हारी पहचान की मानिंद...
तुम्हारा घर जला दिया जाता है...
और "सर्च ऑपरेशन" के दौरान
तुम्हारी बीबी को सामने से गोली मारी जाती है
उस वक्त, जब तुम घर में नहीं होते हो...

तुम किसकी सुरक्षा की कीमत चुका रहे हो ?
जब वे आते हैं,
तुम उनकी स्वचालित राइफलों से दगी
गोली से ये सवाल पूछने की कोई
वैधानिक मोहलत भी नहीं पाते...

3 टिप्‍पणियां:

  1. "उत्तेजित कर देनी वाली कविता...."

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  2. कथ्य के स्तर पर एक अच्छी कविता…लेकिन शिल्प बिखर सा गया है कई जगह…उसे साधने के लिये और प्रयास करने होंगे साथी…और वह आप करेंगे ही…शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं

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