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सोमवार, 13 सितंबर 2010

एक खुबसूरत ख्वाबगाह है उसकी जिंदगी

एक खुबसूरत ख्वाबगाह है उसकी जिंदगी
हकीकतों से इरादतन बेपरवाह है जिसकी जिंदगी

मौत की दस्तक से पहले सफ़र की ख़ामोशी में
सुनाती मासूम सरगोशियाँ सरेराह है जिसकी जिंदगी

हँसाते हँसाते जाने कब रूला भी जाती है उसे यार
बाज वक्त मुस्कानों में भी कराह है जिसकी जिंदगी

घिर गया वह नफीस अंधेरों में पुरजोर इन्तजार के
लुत्फ़-ए-इश्क में ढली बनके आह है जिसकी जिंदगी

अब तो रब ना रकीब ही कोई यहाँ रह गया है उसका
हुई बदनाम सबकी दरम्यान-ए-निगाह है जिसकी जिंदगी    
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