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सोमवार, 20 अगस्त 2018

महिलाओं के मुद्दे पर निकलेगी राष्ट्रव्यापी यात्रा

भोपाल में महिला संगठनों की संयुक्त बैठक सम्पन्न

19 अगस्त 2018, रविवार। भो
भोपाल में मध्य प्रदेश भारतीय महिला फेडरेशन के तत्वाधान में 22 सितंबर से 12 अक्टूबर तक निकलने वाले यात्रा जत्था *"बातें अमन की"* की देशव्यापी यात्रा की तैयारी के लिए प्रारंभिक बैठक आयोजित की गई।
देश के प्रमुख महिला संगठनों के तत्वाधान में *बातें अमन की* यात्रा प्रस्तावित है। इस अभियान का उद्देश्य महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों की उपलब्धता, महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा,महिलाओं का विधायी प्रतिनिधित्व एवं अन्य संबंधित मुद्दों पर देशव्यापी पहल को और उत्साहित करना एवं देश में अमन स्थापित करना है।
*"बातें अमन की"* , जिसका स्वरूप 5 यात्राओं का एक "चलत अभियान" है, 22 सितम्बर से शुरू होने वाला है। पांचो यात्राओं का संगम दिल्ली में 13 अक्टूबर को होगा। यह यात्रा 200 जगहों पर जायेगी।
इस बैठक में एन एफ आई डब्ल्यू के अलावा जनवादी महिला समिति, घरेलू कामकाजी संगठन, महिला अधिकार सन्दर्भ केन्द्र, एटक, सीटू, ए आई एस एफ, ए आई वाई एफ, एस एफ आई, प्रलेसं, जलसं, इप्टा इत्यादि संगठन ने मिलकर इस यात्रा का प्रारूप तय किया। यात्रा मध्यप्रदेश में 4 अक्टूबर को सिंगरौली से आरंभ होकर 9 अक्टूबर को इंदौर होते हुए गुजरात जाएगी। भोपाल में मुख्य कार्यक्रम 8 अक्टूबर को गाँधी भवन में सम्पन्न होगा।

*सारिका श्रीवास्तव*
राज्य सचिव
मध्य प्रदेश भारतीय महिला फेडरेशन(NFIW)
9589862420

रविवार, 12 अगस्त 2018

फासीवादी उभार और प्रतिरोध का अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य-नागासाकी दिवस पर हुई चर्चा


अरविंद पोरवाल
सारिका श्रीवास्तव

इंदौर, 12 अगस्त 2018।
इतिहास की सबसे भीषण और अमानवीय घटना हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमले को याद करते हुए अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता  संगठन ने 9 अगस्त 2018 को नागासाकी दिवस पर एक बैठक का आयोजन किया। विश्वशांति के संदेश के साथ परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसमें वेनेजुएला, क्यूबा, फिलीस्तीन, पाकिस्तान और बांगलादेश के हालिया घटनाक्रम और उसके भारत पर असर को लेकर बात की गई। विनीत तिवारी ने वेनेजुएला के हालातों पर कहा वेनेजुएला में चुनावों को प्रभावित करने की अमेरिका ने कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए। जिसमें राष्ट्रपति मदुरो के नेतृत्व में जनतांत्रिक सरकार जीतकर सत्ता में आ गई। सरकार को अस्थिर करने के लिए हाल ही में राष्ट्रपति की सभा में ड्रोन से विस्फोट करवाया गया। जबकि मीडिया द्वारा यह प्रचारित किया गया कि आसपास रखा कोई सिलेंडर फटा हो। जब वेनेजुएला ने वीडियो जारी किया तो सच्चाई सामने आई। कोलंबिया के ड्रग माफिया के जरिये अमेरिका ने इस कृत्य को अंजाम दिया था। इसको लेकर बैठक में वेनेजुएला के प्रति एकजुटता का संदेश और अमेरिका की साजिश के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया। फिलीस्तीन के बारे में डॉ. अर्चिष्मान राजू ने कहा फिलीस्तीन दुनिया में एक मात्र ऐसी जगह रह गई है जहां अभी तक अमेरिका की मदद से इजराइल ने उपनिवेश कायम कर रखा है। जबकि बाकी दुनिया में 20 वीं शताब्दी के अंत के साथ उपनिवेशवाद समाप्त हो गया है। नस्ल और मजहब के नाम पर फिलीस्तीन के लोगों को इजराइल ने अपनी ही जमीन पर बंधक बनाकर रखा है। नोम चोम्स्की सहित दुनिया के तमाम विद्वानों ने फिलीस्तीन के गाजा इलाके को खुली जेल का नाम दिया है। जहां लोग अपनी ही जमीन पर अपने ही घरों में आने जाने को स्वतंत्र नहीं है। नजदीकी भविष्य में फिलीस्तीनी लोगों के हालात सुधरने की उम्मीद कम है। वहां मानवाधिकारों को कुचला गया है। सारी दुनिया के विरोध के बावजूद इजराइल और अमेरिका अपने अमानवीय साजिशों के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। डॉ. राजू अमेरिका की कॉर्नेल युनिवर्सिटी में दक्षिण एशियाई विद्यार्थियों के द्वारा किए जा रहे विश्वशांति के आंदोलन के अध्ययन में सलंग्न है। सभा में उपस्थित लोगों ने संघर्ष के प्रतीक बन चुके फिलीस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता जाहिर की और इस बात की भर्त्सना भी की कि इजराइल के साथ भारत सरकार अपने व्यापारिक और सैन्य रिश्ते बढ़ाकर उस विदेश नीति को उलट रही है जो आजादी के पहले से गांधी और नेहरू ने फिलीस्तीन के पक्ष में निर्धारित की थी। *डॉ. राजू ने अफ्रीका और फिलिस्तीन के राजनीतिक परिदृश्य की तुलना करते हुए बताया कि अफ्रीका में भी रंगभेद के मुद्दे पर संघर्ष हुए। लेकिन अफ्रीका और फिलिस्तीन के हालात में बहुत अंतर है। जैसे अफ्रीका की रँगभेद नीति और नेल्सन मंडेला विश्व परिदृश्य में उभर आए थे वैसा फिलिस्तीन के साथ नहीं हुआ और उसका कारण है कि फिलिस्तीन में यहूदी और अरब के बीच का संघर्ष है और अमरीका के कॉरपोरेट में यहूदी कम्पनियाँ पावरफुल हैं। जिनके चलते अमरीका इजराइल के पक्ष में है और रहेगा। फिलिस्तीन के हालात सुधरें ऐसा मुश्किल ही लगता है।
सारिका श्रीवास्तव ने कहा कि पिछले दो दशकों में दुनिया मे जो माहौल मुस्लिमों के खिलाफ बनाया गया है उससे फिलिस्तीन के लोगों के संघर्ष को भी इस्लामिक आतंकवाद के तौर पर प्रचारित किया जाता है न कि मानवाधिकारों या अपनी संप्रभुता व आज़ादी को बचाने के संघर्ष के तौर पर।

क्यूबा के बारे में बात करते हुए बताया गया क्यूबा में 2013 से शुरू हुई संविधान निर्माण की प्रक्रिया अंतिम चरण में है और उसका पहला प्रारूप क्यूबा की सरकार ने सुझावों के लिए जारी किया है। प्रारूप को जारी करते हुए संविधान सभा के अध्यक्ष राहुल कारूरूत्रों ने बताया कि नए संविधान का निर्माण करते हुए हमने 21वीं शताब्दी की नई परिस्थितयों को ध्यान में रखा है। चीन, वियतनाम, वेनेजुएला आदि देशों के संविधान का संदर्भ भी रखा गया। बांगलादेश के बारे में सौरभ बनर्जी ने कहा गए चार दिनों से बांगलादेश में इंटरनेट सहित सभी तरह के संचार माध्यम बंद हैं। जो पिछली 28 जुलाई को ट्रेफिक की वजह से दो स्टूडेंट्स की मौत हो जाने पर हुए आंदोलन के उग्र हो जाने पर बंद है। हाईस्कूल के लाखों विद्यार्थी सड़क पर उतर आए। उनकी मांग थी कि ट्रेफिक नियमों को सुधारा जाए। बनर्जी ने बताया कि भले ही ऊपरी तौर पर देखने पर समस्या ट्रेफिक की नजर आए लेकिन लोगों के इस गुस्से के पीछे वहां फैली बदहाली, बेरोजगारी और सरकार के प्रति नाराजगी वजह थी। यह बताया कि बांग्लादेश सरकार हो या भारत सरकार दोनों ही बांग्लादेशियों के बीच हिंदु-मुस्लिम का ध्रुवीकरण कर रही है। सरकार सिर्फ अपना फायदा चाहती है। इसलिए यहां मजदूरों के साथ मिलकर विश्व शांति आंदोलन करने की जरूरत है। पाकिस्तान पर अजीत बजाज ने कहा पाकिस्तान के हाल पूरी तरह अमेरिका के रहमोकरम पर हैं। जो भी राष्ट्रपति अमेरिका को न पसंद होने वाले निणर्य लेता है वो तुरंत बदल दिया जाता है। फिर चाहे परवेज मुशर्रफ हो या नवाज शरीफ। इमरान के सरकार में आने से किसी तरह के बदलाव की उम्मीद करना बेमानी है। जो इंसान पहले सेक्युलर सोच का हुआ करता था वो राजनीति में मुनाफा देखकर फिरकापरस्ती की ओर मुड़ गया है। भले ही बयान में भारत के साथ समझौता करने की बात कहे लेकिन उनकी सरकार की लोकप्रियता भी भारत के साथ तनावपूर्ण रिश्ते बनाकर ही कायम रखी जा सकती है। डॉ. जया मेहता ने कहा यदि हम अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर अपनी राय कायम करते हैं तो अपनी ही देश की सरकार जो मानवाअधिकार के मामले में या लोगों के अधिकारों के हनन में शामिल हो उसे कैसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाया जा सकता है। यदि देश के लोग देश की सरकार से, उसके निर्णयों से इत्तेफाक नहीं रखते तो हमें देश के लोगों की आवाज उठाने के लिए एक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच को मजबूत करना चाहिए। पहले इस तरह का मंच विश्वशांति आंदोलन दिया करता था। आज के दौर में उस आंदोलन को नए सिरे से मजबूत करने की जरूरत है। बसंत शिंत्रे ने कहा कि नए लोगों तक अंतर्राष्ट्रीय मामलों की जानकारी पंहुचानी होगी। मुख्यधारा का मीडिया इन मसलों की सही जानकारी नहीं देता। इस मौके पर अजय लागू ने भी भागीदारी की। अरिवंद पोरवाल ने संचालन किया। शैला शिंत्रे, अशोक दुबे, श्याम सुंदर यादव, आदिल सईद, एस के दुबे, एस के पंडित, एच डी टोकरिया, एस के पांडे और शर्मिष्ठा बनर्जी सहित शहर के कई सजग नागरिक इस बैठक का हिस्सा बने।

शनिवार, 11 अगस्त 2018

विभाजन के वक्त देखा क्रूर साम्प्रदायिक यथार्थ, "तमस" और भीष्म साहनी* और *अपने वक्त की तमस रचने का समय...

सारिका श्रीवास्तव

10 अगस्त 2018। प्रगतिशील लेखक संघ, इंदौर इकाई द्वारा 8 अगस्त 2018, भीष्म साहनी के जन्मदिवस पर केनरिस कला वीथिका में बैठक आयोजित की गई।

प्रलेसं इंदौर इकाई के अध्यक्ष एस के दुबे ने भीष्म साहनी का परिचय देते हुए कहा कि भीष्म साहनी की रचनाओं में उस समय की विभीषिका, विभाजन के दंश और बढ़ती साम्प्रदायिकता की पीड़ा को इस बखूबी बयान किया है कि पाठक को लगने लगता है कि ये सब उसके आस-पास और अभी कुछ देर पहले ही घटित हुआ था।

जनअर्थशास्त्री जया मेहता ने भीष्म साहनी और उनकी पत्नी शीला साहनी के साथ शिमला में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज में बिताए गए वक्त को याद करते हुए कहा कि भले ही मेरा बहुत करीबी रिश्ता साहित्य से न रहा हो किन्तु मुझे उनके साथ लम्बा समय बिताने का अवसर मिला। वे बहुत संवेदनशील थे और साधारण प्रतिक्रियाओं पर भी बहुत गहराई से विचार किया करते थे। उनकी उपस्थिति इतनी शान्त, सहज और सौम्य रहती थी कि तमस पढ़ते हुए अनेक बार आश्चर्य होता है कि उसमें लिखे गए बहुत क्रूर यथार्थ के प्रसंग भीष्म जी जैसे शान्त व्यक्तित्व वाले व्यक्ति ने लिखे हैं। उन्होंने उनकी कम चर्चित कहानी "यादें" का वाचन किया। ये कहानी दो वृद्ध महिलाओं पर आधारित है जो बहुत अच्छी दोस्त रहीं और अरसे बाद मिल रही हैं। अपनी पुरानी स्मृतियों का स्मरण करतीं दोनों सखियाँ अपने बीते दिनों में डूबती-उतराती रहती हैं साथ ही पाठकों को भी अपने साथ भावनाओं से भिगोती रहती हैं। दो पुरानी पक्की दोस्त तथा वृद्ध महिलाओं का पुनर्मिलन इतने स्वभाविक और भावनात्मक तरीके से रचा है कि कहानी का पाठ करते हुए जया मेहता खुद भी रो पड़ीं।

कृष्णा सोबती के संस्मरण "हशमत की नजर में भीष्म साहनी" का पाठ किया सारिका श्रीवास्तव ने। जिसमें कृष्णा सोबती ने भीष्म के लेखनकर्म पर प्रकाश डालते हुए उनकी भावनाओं को उकेरा है। हशमत के जरिए कृष्णा सोबती लिखती हैं कि भीष्म का लेखन उनके भोगे गए अनुभवों का लेखन है। भीष्म मध्यवर्ग की खरोंचे, ज़ख्म, उसके दर्द और उसके ऊपरी खोल को छू-छूकर, अपने को उस भीड़ से अलग खड़ा कर लेते हैं और नए सिरे से अपनी पुरानी चिर-परिचित जमीन में उन्हें अंकित करने का निर्णय कर डालते हैं। सारिका ने कहा कि अंतर्मुखी स्वभाव के भीष्म साहनी की कलम बहिर्मुखी थी। उनकी रचनाओं से जो टीस उभरती है वो गहरे तक पैठ जाती है जिसकी चुभन जहन में बनी रहती है।

कार्यक्रम में "अमृतसर आ गया है" कहानी का पाठ भी किया गया। उस कहानी में रेल के डिब्बे में बैठे यात्रियों का उम्दा तरीके से चित्र खींचते हुए विभाजन की विभीषिका और उसका जनमानस पर पड़ता प्रभाव और उसके फलस्वरूप घटित होते घटनाक्रम को भीष्म साहनी ने इस तरह से रचा है कि पाठकों को उस डिब्बे में सवार एक यात्री की तरह ही महसूस होता है की वह उन परिस्थितियों से स्वयं ही गुजर रहा हो।

हिंदी की प्रोफेसर कामना शर्मा ने परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि ये कहानी विभाजन के दौर को चित्रित और अंकित करती है। अनेक बार ऐसी परिस्तिथियाँ आती हैं जब जुल्म होते हैं और हम मूक दर्शक बने तटस्थ देखते रहते हैं, कोई हस्तक्षेप तक नहीं करते क्योंकि पूरे वातावरण में जिस तरह दहशत का वातावरण, भय और डर व्याप्त है उसने हमें स्वार्थी बना दिया है।

प्रलेसं के राष्ट्रीय सचिव मण्डल के सदस्य विनीत तिवारी ने भीष्म साहनी की आत्मकथा की कुछ अंश सुनाते हुए कहा कि भीष्म अपने बचपन के संस्मरण यूँ लिखते हैं जैसे किसी आम या साधारण से बच्चे की बात हो। वे कहीं भी अपने महत्त्वपूर्ण होने को नहीं जताते। संस्मरण के दूसरे दौर में बलराज साहनी की जीवन शैली और बीमार पड़े छोटे बच्चे(भीष्म साहनी) की असमर्थता, बड़े भाई से तुलना और बीमारी एवं छोटे होने के दंश को बड़ी सहजता से भीष्म साहनी ने स्वीकारते हुए लिखा है। जिसका पाठ करते हुए  विनीत ने कहा भीष्म साहनी के जीवन पर बलराज साहनी का बहुत असर रहा है। जिसे भीष्म ने अपने संस्मरण में बड़ी सहजता से स्वीकार भी किया है।
तमस का उल्लेख करते हुए विनीत ने कहा तमस 1972-74 के दौरान लिखा गया था। इसके पहले पाकिस्तान के साथ दो युद्ध हो चुके थे और विभाजन के समय की साम्प्रदायिक भावनाएं फिर से भारतीय जनमानस में उभार पर थीं। उस समय की परिस्तिथियों ने ही भीष्म साहनी को विभाजन के वक्त देखे गए क्रूर, साम्प्रदायिक यथार्थ की याद दिलाई और उन्होंने तमस लिखा। तमस इसलिए सबसे विश्वस्नीय दस्तावेजों में से एक है। बटे हुए भारतीय समाज को एकताबद्ध करने के लिए उस वक्त की कांग्रेस को भी तमस जैसी किसी कृति की जरूरत थी। आज के दौर की साम्प्रदायिकता पिछले 70 सालों में बहुत बदल चुकी है और वह फासीवाद की और भी भयानक शक्ल अख्तियार कर चुकी है हमें इसका सामना करने के लिए अपने समय की तमस को रचना होगा।
परिचर्चा में अजय लागू, सुलभा लागू, प्रोफेसर जाकिर हुसैन, संजय वर्मा, जावेद आलम, अर्चिष्मान राजू, आदिल सईद, राजेश पाटिल, सौरभ ने भी शिरकत की।
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