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सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

पसीने की प्रतिष्ठा का मतलब है वामपंथ! – कॉमरेड शशि कुमार

कार्ल मार्क्स के 200 वर्ष पूरे होने पर प्रगतिशील लेखक संघ घाटशिला द्वारा ‘मार्क्सवाद क्यों?’ – व्याख्यान का आयोजन
घाटशिला, 17 फ़रवरी 2019. प्रलेसं की घाटशिला इकाई ने कार्ल मार्क्स की 200 वीं जयंती पर देश भर में हुए कार्यक्रमों के सिलसिले में “मार्क्सवाद क्यों ?” विषय पर व्याख्यान का आयोजन आई.सी.सी. मजदूर यूनियन के दफ्तर के हॉल में आयोजित किया. सबसे पहले पुलवामा, कश्मीर में शहीद हुए सैनिकों और वरिष्ठ कवियत्री, सम्पादिका व आलोचक अर्चना वर्मा की स्मृति में एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजली दी गयी. 
कार्यक्रम का आगाज़ करते हुए इप्टा घाटशिला के साथियों ने लोककवि/गायक जमुई खां ‘आज़ाद’ के भोजपुरी गीत “बड़ी बड़ी कोठिया सजाया पूँजीपतिया” और हबीब ज़ालिब की नज़्म “दस्तूर” की प्रस्तुति दी.
संचालन और विषय प्रवेश करते हुए शेखर मल्लिक ने कहा कि मार्क्स ने सर्वहारा कौन हैं , वर्ग संघर्ष क्या है और द्वंद को बताया है. क्या मार्क्सवाद प्रासंगिक है ? इस प्रश्न पर भी लोगों के विपरीत मत हैं. मार्क्सवाद जीवन को समझने में मददगार है.  ह्रदय परिवर्तन की संकल्पना, ट्रस्टीशिप कामयाब नहीं हुए, नहीं हो सकते हैं. मार्क्स के अनुसार साम्यवाद में हर तरह की आज़ादी हासिल होगी. शेखर ने आगे अपना निजी उदहारण देकर मार्क्सवाद के प्रति रुझान और प्रेरणा को बताया ताकि मार्क्सवाद को लेकर इतने प्रतिकूल विचारों के बीच भी, और  जब वामपंथी होना गाली खाने का सबब है, मोटिवेशन को स्पष्ट किया. ताकि नए साथियों में निराशा न पनप जाय. हम शोषित और शोषक में से शोषित के पक्ष खड़े होंगे. यही मनुष्य का मूल स्वाभाव है कि वह अन्याय और अत्याचार के खिलाफ़ सहज ही प्रतिवाद करता है. इस अर्थ में सब मार्क्सवादी ही तो हैं. 
मज़दूर साथी और कार्यकर्ता कॉमरेड एस.एन. सिंह ने कहा, कि दुनिया में दुःख और पीड़ा का जो कारण है, तो निवारण भी होगा. मार्क्सवाद वह बताता है. हाल में आये आर्थिक महामंदी के बाद कार्ल मार्क्स  (की पुस्तक – “पूँजी”) को  खोजकर पढ़ा जाने लगा. संसार के संकटों और मनुष्य की समस्याओं का स्थायी समाधान मार्क्सवाद में है. 
इतिहास के पूर्व प्रोफ़ेसर व कवि मित्रेश्वर ने कहा कि खुद के परिवार में उन्हें वाम का माहौल मिला. लेकिन वे यद्यपि मार्क्स के उदात्त स्वप्नों की दुनिया के आकांक्षी हैं, वास्तव में कभी भी वैसा सपनों का समाजवाद नहीं देखा. मार्क्सवाद यूटोपिया की रचना करता है. उन्होंने अपनी कई असहमतियों का इज़हार करते हुए कहा कि मार्क्स सिद्धान्तकर थे और लेनिन राजनीतिज्ञ. लेनिन का ध्येय शासन करना है और उन्होंने मार्क्सवाद के विचार (धारा) को टूल्स की तरह इस्तेमाल किया !  रूस के वर्चस्व के बाद दुनिया में अन्य कई देशों जैसे, चेकोस्ल्वाकिया आदि में ‘आरोपित व्यवस्था’ बनीं. मित्रेश्वर ने मार्क्सवादियों के दोहरेपन की बात भी कही. उन्होंने आरोप लगाया कि मार्क्स ने भारत (की जाति आधारित व्यवस्था जैसे दलित. यहाँ आर्थिक नहीं बल्कि जातीय वर्ग का प्राधान्य है.) को नहीं देखा, समझा. (इसका आगे कॉमरेड शशि जी ने खंडन किया. मार्क्स ने भारत को समझा था. और ‘एशियाटिक मोड ऑफ़ प्रोडक्शन’ में अपनी बात कही थी.) उन्होंने मार्क्सवाद के सन्दर्भ में कई प्रश्न सामने रखे. अंतत: उन्होंने कहा कि वे चाहते है, मार्क्स के सपनों की दुनिया वास्तव में साकार हो.
अंग्रेजी के प्रोफ़. नरेश कुमार ने अपने सम्बोधन में संतुलन बनाते हुए कई बातें कहीं जो मार्क्स को मानने वालों से प्रश्न और 
स्पष्टीकरण की अपेक्षा रखती हैं. नरेश कुमार ने कहा कि मार्क्सवाद तो सभ्यता के आरम्भ से है. मार्क्स के उद्भव से नहीं. बुद्ध पहले मार्क्सवादी थे ! समानता का स्वप्न देखने वाली चेतना जब से है, यह है. जब तक दुःख है, पीड़ा है, शोषण है, मार्क्सवाद प्रासंगिक है. उनके दर्शन में जैसी व्याख्या की गयी है कि दुनिया को बदलना है. तो बदलने के लिए इसे समझना पड़ेगा. इतिहास, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र – ये तीन महत्वपूर्ण ज्ञान क्षेत्र हैं. मार्क्स पूर्णता में चीजों को देखते थे. उन्होंने इन सबका गहराई से अध्ययन किया. पूर्व के अध्ययनों और आकंड़ों का अध्ययन किया. उन्होंने कहा कि नॉन टेकनिकल भाषा में मार्क्स को लोगों तक पहुँचाया जाना जरुरी काम है. उन्होंने कहा कि वे मार्क्स के वर्गहीन समाज की कल्पना को नहीं मानते. मार्क्स का ज्ञान खंड, जहाँ वे सत्य की तलाश करते हैं यह वैज्ञानिक निष्कर्ष नहीं है, महज़ कल्पना है. प्रकृति में द्वन्द ख़त्म नहीं हो सकता.
प्रो. नरेश ने कहा कि यद्यपि कार्ल मार्क्स ईमानदार हैं. और मार्क्सवाद ऑफिशियल पार्टी पोजीशन नहीं है, वह लेनिन से शुरू हुआ. नये बच्चे मार्क्स को समझें, पार्टी की राजनीति, पार्टीलाइन को नहीं. उन्होंने कहा कि जब मार्क्सवादी सत्ता में नहीं होते तो लिबरल रहते हैं. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मूल्यों की वकालत करते हैं, मगर मार्क्सवादी व्यवस्था के अंदर वे तानाशाही रूप अख्तियार कर लेते हैं. इसलिए उदहारण के लिए देखें की रूस में सर्वश्रेष्ठ साहित्य उस दौर में लिखा गया जब संघर्ष था. जब कम्युनिस्ट व्यवस्था बन गयी तो एक भी विश्व स्तर का साहित्य नहीं दिखता ! क्यों? क्योंकि स्वतंत्र आवाजों का दमन किया गया. 
इसलिए मार्क्सवाद से सहानुभूति रखें, मार्क्सिस्ट सत्ता या शासन से नहीं ! क्योंकि वहां असहमति की कोई गुंजाईश नहीं रहती. ऐसे में कला खत्म हो जाती है. कलमकार पार्टी लाइन पर नहीं चल सकता.  पार्टी लाइन पर चलकर उत्कृष्ट लेखन नहीं हो सकता, ऐसा वे मानते हैं. 
कवियत्री डॉ. सुनीता देवदूत सोरेन ने कहा कि समानता हर क्षेत्र में आनी चाहिए. मार्क्सवाद में समानता के लिए लड़ने का जज्बा है. 

वरिष्ठ रंगकर्मी, कवि एवं मजदूर नेता कॉमरेड शशि कुमार ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में बहुत सी चीजों को साफ़ किया. मार्क्सवाद भेड़ियों की संस्कृति के बनिस्पत मनुष्य की संस्कृति का तरफ़दार है. दुनिया में दो तरह की दृष्टि थी कि चीजों को तर्क और विवेक के आधार पर देखेंगे या आस्था के आधार पर ? अगर तर्क और विवेक के आधार पर देखेंगे तो यही मार्क्सवाद है. मार्क्सवादियों के स्खलन को लेकर पूर्व वक्ताओं के आक्षेपों का जबाव देते हुए उन्होंने कहा कि मार्क्सवाद कोई मंतर या धर्मग्रंथ तो नहीं है. मार्क्सवाद एक जीवन दृष्टि है. कोई भी समाज किस पर खड़ा रहता है, उसे मार्क्स ने बहुत अच्छे से स्पष्ट किया. उसमें महत्वपूर्ण हैं, उत्पादन के औजार. जब लोग लकड़ी के हल से खेती करते थे तो उस समय किसी के पास फुलपैंट नहीं हुआ करता था. श्रम में लगे लोग कौन है और उसका फलाफल पाने वाला कौन है ? ‘प्रोडक्शन रिलेशन’ (उत्पादन सम्बन्ध) क्या है ?  आज के दौर में देखें तो तकनीक और कम्यूटर आदि में मानव श्रम है लेकिन अंतिम लाभ अंबानी जैसों को मिलता है. मार्क्स ने कहा कि जब उत्पादन की प्रक्रिया सामाजिक हो गयी है, तो उत्पादन सम्बन्ध क्यों नहीं सामाजिक हों ? 
दुनिया में कोई भी ऐसी वस्तु नहीं जो पसीने से न बनी हो. और पसीने की प्रतिष्ठा का मतलब है वामपंथ! कोई भी ऐसा समाज, कोई भी ऐसी चीज नहीं, जिसके अंदर अंतर्द्वंद न चलता हो. मार्क्स ने इसे भी स्पष्ट किया. ‘परिमाणात्मक परिवर्तन से गुणात्मक परिवर्तन’... कैसे मात्रा में परिवर्तन होता है तो गुण में परिवर्तन होता है. समाज में जब ‘गुण’ में परिवर्तन आता है, उसी को क्रांति कहते हैं. 
मार्क्स ने साफ़ कहा कि पूंजीवाद के केंद्र में आदमी नहीं, केंद्र में मुनाफा है. और जिस समाज में मूल में मुनाफा होगा, वह कभी मानवीय नहीं हो सकता. शशि जी ने कहा कि मार्क्सवाद जड़ नहीं है, उसमें भी विकास की सम्भावनाएं हैं. उन्होंने कहा कि अगर कंट्राडिक्शन नहीं रहेगा तो मार्क्सवाद नहीं रहेगा. प्रकृति के हर वस्तु में कंट्राडिक्शन है नहीं तो चने का बीज धरती का सीना फोड़कर बाहर कैसे आ जाता !
मार्क्स ने “एशियाटिक मोड ऑफ़ प्रोडक्शन” मे भारत (वर्ण व्यवस्था और सामाजिक स्थिति) के बारे में लिखा है. उन्होंने पूर्व वक्ता की स्थापना को कि मार्क्स ने भारत के बारे में नहीं सोचा, काटते हुए यह बात कही. इसमें उन्होंने (मार्क्स ने) बताया कि भारतीय गांव अपने आप में स्वावलंबी हैं. वर्ण आधार पर लोग विभिन्न पेशों से जुड़े हैं. स्वावलंबी हैं लेकिन, ये इसके विकास में बाधक है ! 
मार्क्स ने कहा कि पूंजीवाद की प्रवृति है मुनाफा कमाना और यह अपने नियमों पर चलकर ही मरेगा. मार्क्सवादी होने का मतलब सिर्फ़ समाज से नहीं अपने आप से भी लड़ना होता है ! मार्क्सवाद कोई धर्मग्रंथ नहीं है ! बिना प्रेक्टिस और बिना प्रयोग का मार्क्सवाद नहीं हो सकता. एक धार्मिक आदमी पूजा पाठ, दान करेगा तो धार्मिक है, लेकिन एक मार्क्सवादी घर में बैठा रहेगा तो मार्क्सवादी नहीं हो सकता ! 
समय एक गति है मार्क्सवाद के मुताबिक और समय की गति को डायलेक्टीकल तरीके से कैसे हम पकड़ते हैं, तभी मार्क्सवादी हैं. समय की गति के अंतर्गत उत्पादन के साधन हैं, उत्पादन की पद्धति है, इस पद्धति के ऊपर जो नैतिकता है,  साहित्य है, धर्म है, सारी चीजें है, समाजार्थिक व्यवस्था है और युग का बोध है. युग की चेतना को कैसे हम प्रभावित कर सकते हैं . अगर राजसत्ता में चले गए और युग की चेतना धार्मिक है. तो वह देखिये. मार्क्सवाद का दर्शन तदात्मक वैज्ञानिक है. 
साहित्य में भी वैज्ञानिक तरीका, मार्क्सवादी जो तरीका है देखने का वह साहित्य को समझने में मददगार होता है. इतिहास में भी वैज्ञानिक ढंग से देखने का तरीका मार्क्सवादी तरीका है. सब जगहों पर.  ग्रीक मिथकों में प्रोमेथ्यु का उदाहरण चीजों को समझने में सहायक है, इसलिए यह समझिये कि मार्क्स ने भी पूँजीवादी लोगों से वह “आग” निकालकर मेहनतकश लोगों के पास भेजा और खुद चालीस वर्षों तक बगैर किसी देश का नागरिक बने इस दुनिया को छोड़ दिया. 
कार्यक्रम में डॉ. देवदूत सोरेन, कॉम. भुवनेश्वर तिवारी, संतोष दास, प्रो. इंदल पासवान, प्रो. सुबोध सिंह, सुजन सरकार, भागवत दास, मनोहर बारीक, श्रमिक साथी जयकांत सिंह, श्रवण कुमार तथा इप्टा के साथी कार्तिक चन्द्र चौधरी, छीता हांसदा, रुपाली बारीक़, मानसी, राजशेखर, अनुज, सरीना, मनीष और अभिजित आदि मौजूद रहे. संचालन व् धन्यवाद ज्ञापन शेखर मल्लिक ने किया. 
साथी कार्तिक ने मार्क्स की उक्ति सहित उनका बैनर बनाया था. साथियों ने मार्क्स की उक्तियों के पोस्टर्स भी लगाये.   

- रिपोर्ट ज्योति मल्लिक

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