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रविवार, 12 अगस्त 2018

फासीवादी उभार और प्रतिरोध का अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य-नागासाकी दिवस पर हुई चर्चा


अरविंद पोरवाल
सारिका श्रीवास्तव

इंदौर, 12 अगस्त 2018।
इतिहास की सबसे भीषण और अमानवीय घटना हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमले को याद करते हुए अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता  संगठन ने 9 अगस्त 2018 को नागासाकी दिवस पर एक बैठक का आयोजन किया। विश्वशांति के संदेश के साथ परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसमें वेनेजुएला, क्यूबा, फिलीस्तीन, पाकिस्तान और बांगलादेश के हालिया घटनाक्रम और उसके भारत पर असर को लेकर बात की गई। विनीत तिवारी ने वेनेजुएला के हालातों पर कहा वेनेजुएला में चुनावों को प्रभावित करने की अमेरिका ने कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए। जिसमें राष्ट्रपति मदुरो के नेतृत्व में जनतांत्रिक सरकार जीतकर सत्ता में आ गई। सरकार को अस्थिर करने के लिए हाल ही में राष्ट्रपति की सभा में ड्रोन से विस्फोट करवाया गया। जबकि मीडिया द्वारा यह प्रचारित किया गया कि आसपास रखा कोई सिलेंडर फटा हो। जब वेनेजुएला ने वीडियो जारी किया तो सच्चाई सामने आई। कोलंबिया के ड्रग माफिया के जरिये अमेरिका ने इस कृत्य को अंजाम दिया था। इसको लेकर बैठक में वेनेजुएला के प्रति एकजुटता का संदेश और अमेरिका की साजिश के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया। फिलीस्तीन के बारे में डॉ. अर्चिष्मान राजू ने कहा फिलीस्तीन दुनिया में एक मात्र ऐसी जगह रह गई है जहां अभी तक अमेरिका की मदद से इजराइल ने उपनिवेश कायम कर रखा है। जबकि बाकी दुनिया में 20 वीं शताब्दी के अंत के साथ उपनिवेशवाद समाप्त हो गया है। नस्ल और मजहब के नाम पर फिलीस्तीन के लोगों को इजराइल ने अपनी ही जमीन पर बंधक बनाकर रखा है। नोम चोम्स्की सहित दुनिया के तमाम विद्वानों ने फिलीस्तीन के गाजा इलाके को खुली जेल का नाम दिया है। जहां लोग अपनी ही जमीन पर अपने ही घरों में आने जाने को स्वतंत्र नहीं है। नजदीकी भविष्य में फिलीस्तीनी लोगों के हालात सुधरने की उम्मीद कम है। वहां मानवाधिकारों को कुचला गया है। सारी दुनिया के विरोध के बावजूद इजराइल और अमेरिका अपने अमानवीय साजिशों के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। डॉ. राजू अमेरिका की कॉर्नेल युनिवर्सिटी में दक्षिण एशियाई विद्यार्थियों के द्वारा किए जा रहे विश्वशांति के आंदोलन के अध्ययन में सलंग्न है। सभा में उपस्थित लोगों ने संघर्ष के प्रतीक बन चुके फिलीस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता जाहिर की और इस बात की भर्त्सना भी की कि इजराइल के साथ भारत सरकार अपने व्यापारिक और सैन्य रिश्ते बढ़ाकर उस विदेश नीति को उलट रही है जो आजादी के पहले से गांधी और नेहरू ने फिलीस्तीन के पक्ष में निर्धारित की थी। *डॉ. राजू ने अफ्रीका और फिलिस्तीन के राजनीतिक परिदृश्य की तुलना करते हुए बताया कि अफ्रीका में भी रंगभेद के मुद्दे पर संघर्ष हुए। लेकिन अफ्रीका और फिलिस्तीन के हालात में बहुत अंतर है। जैसे अफ्रीका की रँगभेद नीति और नेल्सन मंडेला विश्व परिदृश्य में उभर आए थे वैसा फिलिस्तीन के साथ नहीं हुआ और उसका कारण है कि फिलिस्तीन में यहूदी और अरब के बीच का संघर्ष है और अमरीका के कॉरपोरेट में यहूदी कम्पनियाँ पावरफुल हैं। जिनके चलते अमरीका इजराइल के पक्ष में है और रहेगा। फिलिस्तीन के हालात सुधरें ऐसा मुश्किल ही लगता है।
सारिका श्रीवास्तव ने कहा कि पिछले दो दशकों में दुनिया मे जो माहौल मुस्लिमों के खिलाफ बनाया गया है उससे फिलिस्तीन के लोगों के संघर्ष को भी इस्लामिक आतंकवाद के तौर पर प्रचारित किया जाता है न कि मानवाधिकारों या अपनी संप्रभुता व आज़ादी को बचाने के संघर्ष के तौर पर।

क्यूबा के बारे में बात करते हुए बताया गया क्यूबा में 2013 से शुरू हुई संविधान निर्माण की प्रक्रिया अंतिम चरण में है और उसका पहला प्रारूप क्यूबा की सरकार ने सुझावों के लिए जारी किया है। प्रारूप को जारी करते हुए संविधान सभा के अध्यक्ष राहुल कारूरूत्रों ने बताया कि नए संविधान का निर्माण करते हुए हमने 21वीं शताब्दी की नई परिस्थितयों को ध्यान में रखा है। चीन, वियतनाम, वेनेजुएला आदि देशों के संविधान का संदर्भ भी रखा गया। बांगलादेश के बारे में सौरभ बनर्जी ने कहा गए चार दिनों से बांगलादेश में इंटरनेट सहित सभी तरह के संचार माध्यम बंद हैं। जो पिछली 28 जुलाई को ट्रेफिक की वजह से दो स्टूडेंट्स की मौत हो जाने पर हुए आंदोलन के उग्र हो जाने पर बंद है। हाईस्कूल के लाखों विद्यार्थी सड़क पर उतर आए। उनकी मांग थी कि ट्रेफिक नियमों को सुधारा जाए। बनर्जी ने बताया कि भले ही ऊपरी तौर पर देखने पर समस्या ट्रेफिक की नजर आए लेकिन लोगों के इस गुस्से के पीछे वहां फैली बदहाली, बेरोजगारी और सरकार के प्रति नाराजगी वजह थी। यह बताया कि बांग्लादेश सरकार हो या भारत सरकार दोनों ही बांग्लादेशियों के बीच हिंदु-मुस्लिम का ध्रुवीकरण कर रही है। सरकार सिर्फ अपना फायदा चाहती है। इसलिए यहां मजदूरों के साथ मिलकर विश्व शांति आंदोलन करने की जरूरत है। पाकिस्तान पर अजीत बजाज ने कहा पाकिस्तान के हाल पूरी तरह अमेरिका के रहमोकरम पर हैं। जो भी राष्ट्रपति अमेरिका को न पसंद होने वाले निणर्य लेता है वो तुरंत बदल दिया जाता है। फिर चाहे परवेज मुशर्रफ हो या नवाज शरीफ। इमरान के सरकार में आने से किसी तरह के बदलाव की उम्मीद करना बेमानी है। जो इंसान पहले सेक्युलर सोच का हुआ करता था वो राजनीति में मुनाफा देखकर फिरकापरस्ती की ओर मुड़ गया है। भले ही बयान में भारत के साथ समझौता करने की बात कहे लेकिन उनकी सरकार की लोकप्रियता भी भारत के साथ तनावपूर्ण रिश्ते बनाकर ही कायम रखी जा सकती है। डॉ. जया मेहता ने कहा यदि हम अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर अपनी राय कायम करते हैं तो अपनी ही देश की सरकार जो मानवाअधिकार के मामले में या लोगों के अधिकारों के हनन में शामिल हो उसे कैसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाया जा सकता है। यदि देश के लोग देश की सरकार से, उसके निर्णयों से इत्तेफाक नहीं रखते तो हमें देश के लोगों की आवाज उठाने के लिए एक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच को मजबूत करना चाहिए। पहले इस तरह का मंच विश्वशांति आंदोलन दिया करता था। आज के दौर में उस आंदोलन को नए सिरे से मजबूत करने की जरूरत है। बसंत शिंत्रे ने कहा कि नए लोगों तक अंतर्राष्ट्रीय मामलों की जानकारी पंहुचानी होगी। मुख्यधारा का मीडिया इन मसलों की सही जानकारी नहीं देता। इस मौके पर अजय लागू ने भी भागीदारी की। अरिवंद पोरवाल ने संचालन किया। शैला शिंत्रे, अशोक दुबे, श्याम सुंदर यादव, आदिल सईद, एस के दुबे, एस के पंडित, एच डी टोकरिया, एस के पांडे और शर्मिष्ठा बनर्जी सहित शहर के कई सजग नागरिक इस बैठक का हिस्सा बने।

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