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मंगलवार, 19 फ़रवरी 2019

युद्धोन्माद के ख़िलाफ़ अमन की संस्कृति बनाएगी इप्टा

इप्टा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक की रिपोर्ट 
भोपाल।  17 फरवरी, 2019.  
भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की राष्ट्रीय समिति की बैठक 16 और 17 फरवरी, 2019 को भोपाल में गाँधी भवन में सम्पन्न हुई। बैठक में पुलवामा में हुए आतंकी हमले की भर्त्सना करते हुए हमले में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी गई। बैठक में शामिल सदस्यों ने दुःख की इस घड़ी में शहीदों एवं घायल सैनिकों के परिवारो के साथ एकजुटता व्यक्त की तथा घायल सैनिकों के शीघ्र स्वस्थ होने की शुभकामनाएँ दीं और देश में अमन का माहौल कायम करने के प्रयास का संकल्प लिया गया।
इस मौक़े पर 17 फरवरी को बैठक के अंत मे इप्टा के राष्ट्रीय सचिव और अर्थशास्त्री मनीष श्रीवास्तव (दिल्ली) और प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी (इंदौर) ने कश्मीर हिंसा और उसके बाद देश में बन रहे हालात पर प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसका इप्टा  की राष्ट्रीय कार्यसमिति और प्रगतिशील लेखक संघ के मौजूद सदस्यों ने पूर्ण समर्थन किया। प्रस्ताव के अनुसार इप्टा तथा प्रलेस का स्पष्ट मत है कि इस हमले की साजिश न सिर्फ़ राष्ट्रीय सुरक्षा,एकता और अखंडता को खतरे मे डालने के लिए थी बल्कि इससे देश के शान्ति और सद्भाव के ताने-बाने को भी चोट पहुँचाने का प्रयास किया गया है। प्रस्ताव में यह दुःख  भी व्यक्त किया गया है कि संकट के इस समय कुछ देशविरोधी, फ़िरकापरस्त एवं युद्धोन्मादी तत्व देश के विभिन्न हिस्सों मे रह रहे कश्मीरियों को निशाना बना कर एक तरह से आतंकवादी  मन्सूबों को मदद पहुँचा रहे हैं। 
प्रस्ताव में कहा गया है कि दुःख और संकट के समय हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश के बहादुर सिपाही न केवल देश की सीमाओं की सुरक्षा में बल्कि देश में शान्ति और सद्भाव  की  रक्षा में भी अपनी जान की बाजी लगाते हैं। इस शान्ति और  सद्भाव को कायम रख कर ही शहीदो का सच्चा सम्मान किया जा सकता है। प्रस्ताव में  स्पष्ट संकेत किया गया है कि कश्मीर हमले के बाद देश और विदेश की कॉर्पोरेट आर्म्स लॉबी द्वारा युद्ध को भड़काने तथा संघ गिरोह द्वारा इसके राजनीतिक इस्तेमाल की कोशिशें की जा रही हैं। एक समुदाय विशेष को निशाना बनाया जा रहा है जो निन्दनीय एवं दुर्भाग्यपूर्ण है। यह नहीं भूलना चाहिए कि युध्द ने हमेशा मानवता का नुकसान ही किया है। युद्ध ने लाखों निर्दोष लोगों की जाने लीं हैं और लाखों को जीवन भर के लिए अपंग बना दिया। युध्द समस्या का समाधान नहीं है बल्कि युद्ध खुद एक समस्या है। केन्द्र व राज्य सरकारों का यह दायित्व है कि वे शान्ति और सद्भाव बिगाड़ने की हर साज़िश को नाकाम करें तथा अल्पसन्ख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करें। प्रस्ताव में भारत और पाकिस्तान, दोनों ही देशों के नागरिकों से अपील की गयी है कि हमें उन्माद से बचने का हर सम्भव प्रयास करना होगा। 
इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश और प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने अपने सन्देश में कहा कि किश्वर नाहीद, फरीदा ख़ानम, मंटो, हबीब जालिब, कैफ़ी आज़मी, फैज़ अहमद फैज़, उस्ताद बिस्मिल्ला खान, मेहदी हसन, ग़ुलाम अली, बेगम अख़्तर, नूरजहाँ, मोहम्मद रफ़ी, नौशाद, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, खान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान और भी न जाने कितने कलाकार और विद्वान जितने भारत के हैं उतने ही पाकिस्तान के और जितने पाकिस्तान के हैं, उतने ही हिंदुस्तान के। हमें अपनी साझा संस्कृति को इंसानियत और अमन की संस्कृति बनाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। 
बैठक में इप्टा को विस्तार देने और मजबूती देने के लिए देश के चार हिस्सों में चार क्षेत्रीय सम्मलेन किए जाने का फैसला लिया गया। दक्षिणी राज्यों का सम्मेलन केरल में होगा, हिन्दी भाषी राज्यों का सम्मेलन छत्तीसगढ़ में किया जायेगा जिसमें महाराष्ट्र और गुजरात भी शामिल होंगे। पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी राज्यों का सम्मेलन गोवाहाटी या कोलकाता में एवं चौथा सम्मेलन पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और हरियाणा को जोड़कर जम्मू में होना प्रस्तावित है।
देश में खेती के विकराल संकट और ग्रामीण भारत की समस्याओं को केंद्र में रखकर इप्टा की एक सप्ताह की राष्ट्रीय कार्यशाला दिल्ली में किया जाना तय हुआ। जिसका संयोजन जया मेहता, विनीत तिवारी, मनीष श्रीवास्तव और नूर जहीर करेंगे और जिसमें देश के हर राज्य से गीतकार, लेखक और नाटककार शरीक होंगे। बैठक में ये भी तय किया गया कि इप्टा के पूर्व अध्यक्ष रहे सुविख्यात शायर कैफ़ी आज़मी, उर्दू की प्रसिद्द कथाकार रज़िया सज़्ज़ाद ज़हीर, वरिष्ठ नाट्य आलोचक, रंगकर्मी और इप्टा के प्रारम्भिक दिनों के साथी नेमीचंद जैन तथा इप्टा से गहरे जुड़े रहे महत्त्वपूर्ण इतिहासकार प्रोफेसर रामशरण शर्मा के जन्मशताब्दी वर्ष को देश के विभिन्न प्रमुख केंद्रों में मनाया जाएगा। इसी क्रम में लखनऊ में एक राष्ट्रीय सम्मेलन साझी संस्कृति, साझी शहादत और साझी विरासत आयोजित किया जायेगा। "नफरत के खिलाफ एकजुट कलाकार" के जरिये 2 व 3 मार्च 2019 को कलाकारों के देशव्यापी प्रदर्शन में इप्टा भी अपनी भरसक भागीदारी दर्ज करवाएगी। बैठक में शामिल हुए इप्टा के प्रशंसक और शुभचिंतक तथा केरल से राजयसभा संसद बिनॉय विस्वम ने कहा कि देश में मौजूदा राजनीतिक - सामाजिक माहौल देखते हुए देश को सम्प्रदायवादी फासीवाद से बचाने की लड़ाई में इप्टा की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। नए नाटक, नई तकनीक के साथ जनता तक पहुँचने वाले कलारूपों को अपनाकर सही विचार को जनता के बीच ले जाने का काम इप्टा जो जल्द से जल्द करना होगा। टी वी बालन ने बताया कि केरल इप्टा के एक एकपात्रीय नाटक "शवयात्रा" के पिछले कुछ वर्ष में 1000 से अधिक मंचन हो चुके हैं। 
बैठक में उपस्थित सभी सदस्यों ने इप्टा की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य और प्रलेस के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी तथा दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर नंदिनी सुन्दर, जेएनयू की प्रोफ़ेसर अर्चना प्रसाद, माकपा छत्तीसगढ़ के सचिव संजय पराते, भारतीय महिला फेडरेशन की नेत्री और गुफड़ी गाँव की सरपंच मंजू कवासी और नामा गाँव के निवासी मंगलाराम कर्मा को हत्या तथा यूएपीए के झूठे आरोपों से मुक्त होने और एसआईटी की जांच में निर्दोष पाए जाने पर बधाई दी और वंचितों के  की आवाज़ उठाने की खातिर जेलों में डाले गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, कवी, लेखक, कलाकारों को क़ैद किये जाने के खिलाफ रोष प्रकट किया ।  इप्टा की 75वीं  सालगिरह के समापन के पटना में आयोजित भव्य कार्यक्रम हेतु राष्ट्रीय कार्यसमिति ने बिहार इप्टा, श्री तनवीर अख्तर, फ़िरोज़ अशरफ खान, और उनके सभी साथियों की तारीफ की।   
यह साल रज़िया सज्जाद ज़हीर का जन्म शताब्दी वर्ष है जिसे देश भर की इप्टा एवं प्रलेस की इकाईयों में मनाया जा रहा है। 16 फरवरी की शाम को इसी कड़ी में भोपाल की प्रलेस एवं इप्टा इकाई की सहभागिता में रज़िया सज़्ज़ाद ज़हीर की रचनाओं और संस्मरणों को याद करते हुए उनकी लिखी दो कहानियों "दोशाला" एवं "यस सर" का प्रभावी नाट्य मंचन किया गया, जिसका निर्देशन दिनेश नायर ने किया। तत्पश्चात राकेश ने 1953 में ईदगाह नाटक पर लगे मुकदमे का प्रसंग सुनाया जिसका नाट्य रूपांतरण रज़िया सज़्ज़ाद ज़हीर एवं निर्देशन अमृतलाल नागर ने किया और विनीत तिवारी ने रज़िया सज़्ज़ाद ज़हीर के लेखन को जीवन के मामूली किरदारों के भीतर छिपे गैर मामूली गुणों को उद्घाटित करने वाला ईमानदार और धड़कं भरा गद्य बताया।  राकेश ने "नमक" और विनीत ने "सुतून" कहानी की चर्चा की। नूर ज़हीर ने उनके संस्मरणों पर लिखी किताब "स्याही की एक बूँद" से सज़्ज़ाद ज़हीर, मज़ाज़ लखनवी और अमृता प्रीतम से जुड़े ऐसे मार्मिक संस्मरण सुनाये कि लोगों की आँखें भीग गयीं।
17 फरवरी की शाम मुंबई इप्टा के सचिव और टी व्ही-फिल्म अभिनेता मसूद अख्तर ने एम एस सथ्यु के जीवन पर केंद्रित तथा इप्टा के विभिन्न आयाम और पहलुओं को उजागर करते एक घंटे की अवधि के अपने बनाये वृत्तचित्र "कहाँ-कहाँ से गुजरा" का प्रदर्शन किया।  इस वृत्तचित्र में एम एस सथ्यू की बनाई हुई फिल्मों "गरम हवा", "कहाँ-कहाँ से गुजर गए", "सूखा" आदि के अंश तथा मृणाल सेन, श्याम बेनेगल, ए के हंगल, हबीब तनवीर आदि सथ्यू के समकालीनों के संस्मरण बहुत रोचक अंदाज में प्रस्तुत किये गए।
उक्त बैठक में वरिष्ठ रंगकर्मी और अभिनेता तथा इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रनबीर सिंह (जयपुर), वरिष्ठ रंगकर्मी श्री तनवीर अख्तर, फ़िरोज़ अशरफ ख़ान (पटना), टी.वी. बालन  (कालीकट), के एल लक्ष्मीनारायणा (तेलंगाना), एस के गनी, जैकब (आंध्र प्रदेश), संतोष डे (उत्तर प्रदेश), बालचंद्रन (अलप्पुड़ा), अमिताभ चक्रवर्ती (कोलकाता), मसूद अख्तर (मुंबई), वरिष्ठ कवि श्री राजेश जोशी (भोपाल), लेखिका - रंगकर्मी और इप्टा की राष्ट्रीय सचिव नूर ज़हीर (दिल्ली), वेदा राकेश (लखनऊ), हिमांशु राय, वसंत काशीकर (जबलपुर), वरिष्ठ कवि कुमार अम्बुज (भोपाल), वरिष्ठ रंगकर्मी निसार अली , उषा आठले, अजय आठले, राजेश श्रीवास्तव, मृणमय चक्रवर्ती, (छत्तीसगढ़), अनिल रंजन भौमिक (इलाहाबाद), संजय गुप्ता (जम्मू), वरिष्ठ रंगकर्मी, कवि और इप्टा मध्य प्रदेश के अध्यक्ष हरिओम राजोरिया एवं सीमा (अशोकनगर),  शिवेंद्र शुक्ला (छतरपुर), सारिका श्रीवास्तव (इंदौर), योगेश दीवान (होशंगाबाद), राकेश दीवान (भोपाल), शैलेन्द्र शैली, दिनेश नायर, अनिल करमेले, ईश्वर सिंह दोस्त, आरती, रविंद्र स्वप्निल, सचिन श्रीवास्तव, सत्यम पाण्डे, संदीप कुमार, पूजा सिंह, दीपक विद्रोही, श्रद्धा श्रीवास्तव, प्रेम गुप्ता, अनुलेख त्रिवेदी, हर्ष अग्रवाल, विकास शर्मा, अम्बुज ठाकुर, पवित्र नसकर, अभिषेक ठाकुर  (भोपाल) एवं अन्य अनेक कवि, कहानीकार, नाटकककार, रंगकर्मी मौजूद थे।
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संलग्न : बैठक, नाटक और रज़िया सज्जाद ज़हीर स्मरण के। 

रिपोर्ट प्रस्तुति - विनीत तिवारी एवं सारिका श्रीवास्तव 

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

पसीने की प्रतिष्ठा का मतलब है वामपंथ! – कॉमरेड शशि कुमार

कार्ल मार्क्स के 200 वर्ष पूरे होने पर प्रगतिशील लेखक संघ घाटशिला द्वारा ‘मार्क्सवाद क्यों?’ – व्याख्यान का आयोजन
घाटशिला, 17 फ़रवरी 2019. प्रलेसं की घाटशिला इकाई ने कार्ल मार्क्स की 200 वीं जयंती पर देश भर में हुए कार्यक्रमों के सिलसिले में “मार्क्सवाद क्यों ?” विषय पर व्याख्यान का आयोजन आई.सी.सी. मजदूर यूनियन के दफ्तर के हॉल में आयोजित किया. सबसे पहले पुलवामा, कश्मीर में शहीद हुए सैनिकों और वरिष्ठ कवियत्री, सम्पादिका व आलोचक अर्चना वर्मा की स्मृति में एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजली दी गयी. 
कार्यक्रम का आगाज़ करते हुए इप्टा घाटशिला के साथियों ने लोककवि/गायक जमुई खां ‘आज़ाद’ के भोजपुरी गीत “बड़ी बड़ी कोठिया सजाया पूँजीपतिया” और हबीब ज़ालिब की नज़्म “दस्तूर” की प्रस्तुति दी.
संचालन और विषय प्रवेश करते हुए शेखर मल्लिक ने कहा कि मार्क्स ने सर्वहारा कौन हैं , वर्ग संघर्ष क्या है और द्वंद को बताया है. क्या मार्क्सवाद प्रासंगिक है ? इस प्रश्न पर भी लोगों के विपरीत मत हैं. मार्क्सवाद जीवन को समझने में मददगार है.  ह्रदय परिवर्तन की संकल्पना, ट्रस्टीशिप कामयाब नहीं हुए, नहीं हो सकते हैं. मार्क्स के अनुसार साम्यवाद में हर तरह की आज़ादी हासिल होगी. शेखर ने आगे अपना निजी उदहारण देकर मार्क्सवाद के प्रति रुझान और प्रेरणा को बताया ताकि मार्क्सवाद को लेकर इतने प्रतिकूल विचारों के बीच भी, और  जब वामपंथी होना गाली खाने का सबब है, मोटिवेशन को स्पष्ट किया. ताकि नए साथियों में निराशा न पनप जाय. हम शोषित और शोषक में से शोषित के पक्ष खड़े होंगे. यही मनुष्य का मूल स्वाभाव है कि वह अन्याय और अत्याचार के खिलाफ़ सहज ही प्रतिवाद करता है. इस अर्थ में सब मार्क्सवादी ही तो हैं. 
मज़दूर साथी और कार्यकर्ता कॉमरेड एस.एन. सिंह ने कहा, कि दुनिया में दुःख और पीड़ा का जो कारण है, तो निवारण भी होगा. मार्क्सवाद वह बताता है. हाल में आये आर्थिक महामंदी के बाद कार्ल मार्क्स  (की पुस्तक – “पूँजी”) को  खोजकर पढ़ा जाने लगा. संसार के संकटों और मनुष्य की समस्याओं का स्थायी समाधान मार्क्सवाद में है. 
इतिहास के पूर्व प्रोफ़ेसर व कवि मित्रेश्वर ने कहा कि खुद के परिवार में उन्हें वाम का माहौल मिला. लेकिन वे यद्यपि मार्क्स के उदात्त स्वप्नों की दुनिया के आकांक्षी हैं, वास्तव में कभी भी वैसा सपनों का समाजवाद नहीं देखा. मार्क्सवाद यूटोपिया की रचना करता है. उन्होंने अपनी कई असहमतियों का इज़हार करते हुए कहा कि मार्क्स सिद्धान्तकर थे और लेनिन राजनीतिज्ञ. लेनिन का ध्येय शासन करना है और उन्होंने मार्क्सवाद के विचार (धारा) को टूल्स की तरह इस्तेमाल किया !  रूस के वर्चस्व के बाद दुनिया में अन्य कई देशों जैसे, चेकोस्ल्वाकिया आदि में ‘आरोपित व्यवस्था’ बनीं. मित्रेश्वर ने मार्क्सवादियों के दोहरेपन की बात भी कही. उन्होंने आरोप लगाया कि मार्क्स ने भारत (की जाति आधारित व्यवस्था जैसे दलित. यहाँ आर्थिक नहीं बल्कि जातीय वर्ग का प्राधान्य है.) को नहीं देखा, समझा. (इसका आगे कॉमरेड शशि जी ने खंडन किया. मार्क्स ने भारत को समझा था. और ‘एशियाटिक मोड ऑफ़ प्रोडक्शन’ में अपनी बात कही थी.) उन्होंने मार्क्सवाद के सन्दर्भ में कई प्रश्न सामने रखे. अंतत: उन्होंने कहा कि वे चाहते है, मार्क्स के सपनों की दुनिया वास्तव में साकार हो.
अंग्रेजी के प्रोफ़. नरेश कुमार ने अपने सम्बोधन में संतुलन बनाते हुए कई बातें कहीं जो मार्क्स को मानने वालों से प्रश्न और 
स्पष्टीकरण की अपेक्षा रखती हैं. नरेश कुमार ने कहा कि मार्क्सवाद तो सभ्यता के आरम्भ से है. मार्क्स के उद्भव से नहीं. बुद्ध पहले मार्क्सवादी थे ! समानता का स्वप्न देखने वाली चेतना जब से है, यह है. जब तक दुःख है, पीड़ा है, शोषण है, मार्क्सवाद प्रासंगिक है. उनके दर्शन में जैसी व्याख्या की गयी है कि दुनिया को बदलना है. तो बदलने के लिए इसे समझना पड़ेगा. इतिहास, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र – ये तीन महत्वपूर्ण ज्ञान क्षेत्र हैं. मार्क्स पूर्णता में चीजों को देखते थे. उन्होंने इन सबका गहराई से अध्ययन किया. पूर्व के अध्ययनों और आकंड़ों का अध्ययन किया. उन्होंने कहा कि नॉन टेकनिकल भाषा में मार्क्स को लोगों तक पहुँचाया जाना जरुरी काम है. उन्होंने कहा कि वे मार्क्स के वर्गहीन समाज की कल्पना को नहीं मानते. मार्क्स का ज्ञान खंड, जहाँ वे सत्य की तलाश करते हैं यह वैज्ञानिक निष्कर्ष नहीं है, महज़ कल्पना है. प्रकृति में द्वन्द ख़त्म नहीं हो सकता.
प्रो. नरेश ने कहा कि यद्यपि कार्ल मार्क्स ईमानदार हैं. और मार्क्सवाद ऑफिशियल पार्टी पोजीशन नहीं है, वह लेनिन से शुरू हुआ. नये बच्चे मार्क्स को समझें, पार्टी की राजनीति, पार्टीलाइन को नहीं. उन्होंने कहा कि जब मार्क्सवादी सत्ता में नहीं होते तो लिबरल रहते हैं. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मूल्यों की वकालत करते हैं, मगर मार्क्सवादी व्यवस्था के अंदर वे तानाशाही रूप अख्तियार कर लेते हैं. इसलिए उदहारण के लिए देखें की रूस में सर्वश्रेष्ठ साहित्य उस दौर में लिखा गया जब संघर्ष था. जब कम्युनिस्ट व्यवस्था बन गयी तो एक भी विश्व स्तर का साहित्य नहीं दिखता ! क्यों? क्योंकि स्वतंत्र आवाजों का दमन किया गया. 
इसलिए मार्क्सवाद से सहानुभूति रखें, मार्क्सिस्ट सत्ता या शासन से नहीं ! क्योंकि वहां असहमति की कोई गुंजाईश नहीं रहती. ऐसे में कला खत्म हो जाती है. कलमकार पार्टी लाइन पर नहीं चल सकता.  पार्टी लाइन पर चलकर उत्कृष्ट लेखन नहीं हो सकता, ऐसा वे मानते हैं. 
कवियत्री डॉ. सुनीता देवदूत सोरेन ने कहा कि समानता हर क्षेत्र में आनी चाहिए. मार्क्सवाद में समानता के लिए लड़ने का जज्बा है. 

वरिष्ठ रंगकर्मी, कवि एवं मजदूर नेता कॉमरेड शशि कुमार ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में बहुत सी चीजों को साफ़ किया. मार्क्सवाद भेड़ियों की संस्कृति के बनिस्पत मनुष्य की संस्कृति का तरफ़दार है. दुनिया में दो तरह की दृष्टि थी कि चीजों को तर्क और विवेक के आधार पर देखेंगे या आस्था के आधार पर ? अगर तर्क और विवेक के आधार पर देखेंगे तो यही मार्क्सवाद है. मार्क्सवादियों के स्खलन को लेकर पूर्व वक्ताओं के आक्षेपों का जबाव देते हुए उन्होंने कहा कि मार्क्सवाद कोई मंतर या धर्मग्रंथ तो नहीं है. मार्क्सवाद एक जीवन दृष्टि है. कोई भी समाज किस पर खड़ा रहता है, उसे मार्क्स ने बहुत अच्छे से स्पष्ट किया. उसमें महत्वपूर्ण हैं, उत्पादन के औजार. जब लोग लकड़ी के हल से खेती करते थे तो उस समय किसी के पास फुलपैंट नहीं हुआ करता था. श्रम में लगे लोग कौन है और उसका फलाफल पाने वाला कौन है ? ‘प्रोडक्शन रिलेशन’ (उत्पादन सम्बन्ध) क्या है ?  आज के दौर में देखें तो तकनीक और कम्यूटर आदि में मानव श्रम है लेकिन अंतिम लाभ अंबानी जैसों को मिलता है. मार्क्स ने कहा कि जब उत्पादन की प्रक्रिया सामाजिक हो गयी है, तो उत्पादन सम्बन्ध क्यों नहीं सामाजिक हों ? 
दुनिया में कोई भी ऐसी वस्तु नहीं जो पसीने से न बनी हो. और पसीने की प्रतिष्ठा का मतलब है वामपंथ! कोई भी ऐसा समाज, कोई भी ऐसी चीज नहीं, जिसके अंदर अंतर्द्वंद न चलता हो. मार्क्स ने इसे भी स्पष्ट किया. ‘परिमाणात्मक परिवर्तन से गुणात्मक परिवर्तन’... कैसे मात्रा में परिवर्तन होता है तो गुण में परिवर्तन होता है. समाज में जब ‘गुण’ में परिवर्तन आता है, उसी को क्रांति कहते हैं. 
मार्क्स ने साफ़ कहा कि पूंजीवाद के केंद्र में आदमी नहीं, केंद्र में मुनाफा है. और जिस समाज में मूल में मुनाफा होगा, वह कभी मानवीय नहीं हो सकता. शशि जी ने कहा कि मार्क्सवाद जड़ नहीं है, उसमें भी विकास की सम्भावनाएं हैं. उन्होंने कहा कि अगर कंट्राडिक्शन नहीं रहेगा तो मार्क्सवाद नहीं रहेगा. प्रकृति के हर वस्तु में कंट्राडिक्शन है नहीं तो चने का बीज धरती का सीना फोड़कर बाहर कैसे आ जाता !
मार्क्स ने “एशियाटिक मोड ऑफ़ प्रोडक्शन” मे भारत (वर्ण व्यवस्था और सामाजिक स्थिति) के बारे में लिखा है. उन्होंने पूर्व वक्ता की स्थापना को कि मार्क्स ने भारत के बारे में नहीं सोचा, काटते हुए यह बात कही. इसमें उन्होंने (मार्क्स ने) बताया कि भारतीय गांव अपने आप में स्वावलंबी हैं. वर्ण आधार पर लोग विभिन्न पेशों से जुड़े हैं. स्वावलंबी हैं लेकिन, ये इसके विकास में बाधक है ! 
मार्क्स ने कहा कि पूंजीवाद की प्रवृति है मुनाफा कमाना और यह अपने नियमों पर चलकर ही मरेगा. मार्क्सवादी होने का मतलब सिर्फ़ समाज से नहीं अपने आप से भी लड़ना होता है ! मार्क्सवाद कोई धर्मग्रंथ नहीं है ! बिना प्रेक्टिस और बिना प्रयोग का मार्क्सवाद नहीं हो सकता. एक धार्मिक आदमी पूजा पाठ, दान करेगा तो धार्मिक है, लेकिन एक मार्क्सवादी घर में बैठा रहेगा तो मार्क्सवादी नहीं हो सकता ! 
समय एक गति है मार्क्सवाद के मुताबिक और समय की गति को डायलेक्टीकल तरीके से कैसे हम पकड़ते हैं, तभी मार्क्सवादी हैं. समय की गति के अंतर्गत उत्पादन के साधन हैं, उत्पादन की पद्धति है, इस पद्धति के ऊपर जो नैतिकता है,  साहित्य है, धर्म है, सारी चीजें है, समाजार्थिक व्यवस्था है और युग का बोध है. युग की चेतना को कैसे हम प्रभावित कर सकते हैं . अगर राजसत्ता में चले गए और युग की चेतना धार्मिक है. तो वह देखिये. मार्क्सवाद का दर्शन तदात्मक वैज्ञानिक है. 
साहित्य में भी वैज्ञानिक तरीका, मार्क्सवादी जो तरीका है देखने का वह साहित्य को समझने में मददगार होता है. इतिहास में भी वैज्ञानिक ढंग से देखने का तरीका मार्क्सवादी तरीका है. सब जगहों पर.  ग्रीक मिथकों में प्रोमेथ्यु का उदाहरण चीजों को समझने में सहायक है, इसलिए यह समझिये कि मार्क्स ने भी पूँजीवादी लोगों से वह “आग” निकालकर मेहनतकश लोगों के पास भेजा और खुद चालीस वर्षों तक बगैर किसी देश का नागरिक बने इस दुनिया को छोड़ दिया. 
कार्यक्रम में डॉ. देवदूत सोरेन, कॉम. भुवनेश्वर तिवारी, संतोष दास, प्रो. इंदल पासवान, प्रो. सुबोध सिंह, सुजन सरकार, भागवत दास, मनोहर बारीक, श्रमिक साथी जयकांत सिंह, श्रवण कुमार तथा इप्टा के साथी कार्तिक चन्द्र चौधरी, छीता हांसदा, रुपाली बारीक़, मानसी, राजशेखर, अनुज, सरीना, मनीष और अभिजित आदि मौजूद रहे. संचालन व् धन्यवाद ज्ञापन शेखर मल्लिक ने किया. 
साथी कार्तिक ने मार्क्स की उक्ति सहित उनका बैनर बनाया था. साथियों ने मार्क्स की उक्तियों के पोस्टर्स भी लगाये.   

- रिपोर्ट ज्योति मल्लिक

बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

जिनसे मिलकर मजबूत होता है विश्वास

गैर हिंदी प्रदेश में एक हिंदी के लेखक से परिचय 
                                                                        - विनीत तिवारी 

प्रगतिशील लेखक संघ  की आंध्र प्रदेश इकाई के 18वे राज्य सम्मलेन में 8 और 9 दिसंबर, 2018 को मुझे मुख्य अतिथि के यौर पर आमंत्रित किया गया था। मैं तेलुगु साहित्य का कोई छोटा - मोटा भी अध्येता नहीं लेकिन श्री श्री, चेराबंडा राजू, मखदूम मोइउद्दीन, राजबहादुर गौड़, और बाद के दिनों में वरवरा राव की क्रन्तिकारी उर्दू, हिंदी और तेलुगु कविताओं के अनुवाद भी पढ़कर एक दिलचस्पी तो रही ही है जानने में। और जब  हैदराबाद आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच एक ही राजधानी था, तब मखदूम के बेटे नुसरत मोइउद्दीन और उनके क़रीबी दोस्त और हिंदी के कवि स्वाधीन ने चारमीनार और हैदराबाद की मीठी जुबां के अलावा भी हैदराबाद से खासी मोहब्बत पैदा कर दी थी। 

हालाँकि ये सब पहचानें आज ज़्यादा तेलंगाना के हिस्से की हैं लेकिन कौन इस तरह जुडी हुई पहचानों को जुदा कर सकता है और कौन होगा जो तेलंगाना के हैदराबाद और से मोहब्बत करके श्रीकाकुलम और  ऐतिहासिक शहरों विजयवाड़ा और गुंटूर तथा कृष्णा  के अपने आकर्षण हैं।  

सबसे पहले मुझे आंध्र प्रदेश की प्रगतिशील लेखक संघ की इकाई की सक्रियता के बारे में गुंटूर के लेखक साथी और प्रलेस के राष्ट्रीय सचिव पेनुगोंडा लक्ष्मीनारायण के मार्फ़त ही जानकारी मिली थी। और चकित करने के लिए वो जानकारी भी पर्याप्त थी। 

प्रकाशन के क्षेत्र में आंध्र प्रदेश की प्रलेस इकाई देश की बाकी सभी इकाइयों से कहीं आगे है और इससे बाकी इकाइयों को सीखने की ज़रुरत है। उन्होंने 1973  से अभी तक 150 से अधिक पुस्तकें प्रकशित की हैं जिनमे आंध्र प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के इतिहास से लेकर पिछले सौ वर्षों में तेलुगू में प्रकाशित सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ, सर्वश्रेष्ठ कविताएँ, सर्वश्रेष्ठ नाटक, अनेक युवा और वरिष्ठ लेखकों के संग्रह और देश-विदेश के स्तर पर चल रहीं साहित्यिक बहसों एवं विचार- विमर्शों   प्रकाशित किया है। अकेले गुंटूर ज़िले की इकाई ने ही 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। विशाखापत्तनम ज़िले ने क़रीब 25 पुस्तकें, कड़पा ज़िले की इकाई ने 5, कुर्नूल इकाई ने 2, कृष्णा ज़िले की इकाई ने 4  और इसी तरह अन्य ज़िला इकाइयों ने भी कुछ - कुछ प्रकाशन किये हैं। अनेक पुस्तकें राज्य की केन्द्र इकाई से  की गईं हैं। निश्चित ही इस बड़े काम के पीछे बहुत से साथियों का सहयोग रहा होगा लेकिन मेरी अपनी सीमाओं की वजह से मैं इस कार्य के पीछे पेनुगोंडा लक्ष्मीनारायण, तेलुगु के प्रमुख कहानीकार-उपन्यासकार वल्लूरु शिवप्रसाद, वरिष्ठ आलोचक राच्छपालम चंद्रशेखर रेड्डी और कुछ ही लोगों को जानता हूँ। मेरे ख्याल से वल्लुरु शिवप्रसाद और  राच्छपालम चंद्रशेखर रेड्डी  तेलुगु साहित्य अकादमी के सम्मान से भी सम्मानित हैं। 

इस पुस्तक प्रकाशन अभियान में केवल  पुस्तकें ही प्रकाशित नहीं की जातीं, बल्कि उन्हें सस्ते दामों पर पाठकों को उपलब्ध कराया जाता है और प्रलेस की ओर से अनेक ज़िलों में एक सप्ताह से लेकर १ माह तक के पुस्तक मेले पूरे राज्य में आयोजित किये जाते हैं जिनसे किताबें छापने से लेकर लोगों तक  पहुँचाने का वृत्त पूरा होता है।

इसलिए जब मैं गुंटूर जा रहा था तो इन साहित्यिक आंदोलनकारियों  को सलाम करने भी जा रहा था। लेकिन वहाँ पहुंचकर मुझे और भी कुछ ऐसा मिला जिसने मेरी  जानकारी और तेलुगु आरसम  के प्रति सम्मान और बढ़ गया। 

वहाँ मुझे मिले एक बुजुर्गवार जिनका नाम था तक्कोलु माचि रेड्डी। उन्होंने हिंदी में मुझसे बात की और बताया कि उन्होंने दशकों पहले बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से पीएच. डी. की थी और उसके बाद उन्होंने अनेक पुस्तकों  और लेखों का हिंदी अनुवाद किया जिसका प्रकाशन साहित्य अकादमी ने किया। तेलुगु के महाकवि कहे जाने वाले श्री श्री के सर्वाधिक चर्चित कविता संग्रह "महाप्रस्थानम" का हिंदी अनुवाद किया।  निराला और मुक्तिबोध के अनेक निबंधों का हिंदी अनुवाद किया जिसका संकलन केंद्रीय साहित्य अकादमी ने प्रकाशित किया। उन्होंने लम्बे समय आकाशवाणी के केन्द्र निदेशक के रूप में काम किया और 2004 में वे सेवानिवृत्त हुए। 

उन्होंने मुझे अपनी दो किताबें भी भेंट कीं।  उनमें से एक किताब प्रगतिशील लेखक संघ, कड़पा इकाई, आंध्र प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गयी थी और उसका प्रकाशन 1984 में हुआ था में। किताब का शीर्षक आकर्षक है "हिंदी और तेलुगु की कविता में बिंब-विधान"। और दूसरी किताब थी साहित्य अकादमी से ही प्रकाशित राचमल्ल रामचंद्र रेड्डी जिन्हें "रारा" के  जाता है, उनके रचनाकर्म पर केंद्रित पुस्तक "भारतीय साहित्य के निर्माता - रारा" जिसका लेखन और अनुवाद दोनों ही माचि रेड्डी ने किया है। रारा ने बाल साहित्य का सृजन करने से लेकर आलोचना, अनुवाद, पत्रकारिता, कहानियाँ, नाटक अदि लिखे हैं।  श्री श्री उन्हें 'क्रूर आलोचक' कहा करते थे। उन्हें 1988 का साहित्य अकादमी सम्मान दिया गया था। 

बात चली तो उन्होंने ये दर्द भी व्यक्त किया कि अब लोग पढ़ते कम हैं।  पहले, उनके ज़माने में एक एक किताब पढ़ने के लिए लोग कितना भटका करते थे। उन्होंने मुझसे ये भी कहा कि उनके पास "हिंदी और तेलुगु की कविता में बिंब-विधान" की क़रीब 50 प्रतियाँ उपलब्ध हैं जिसकी क़ीमत मात्र रुपये 35.00 है और वे चाहते हैं कि वो हिंदी के ऐसे पाठकों तक पहुँच सके जो उसे वाक़ई पढ़ना चाहते हैं। वे उसे डाक से या कुरियर से भेजने का कष्ट भी उठाने को तैयार हैं बशर्ते लोग उसे पढ़ना चाहें। 

मैं यह वाकया लिखकर हिंदी साहित्य के अपने दोस्त पाठकों, लेखकों तक ये जानकारी तो पहुँचाना ही चाहता हूँ कि ऐसी किताब माचि रेड्डी के पास उपलब्ध है और साहित्य अकादमी में रारा की किताब भी उपलब्ध है।  साथ ही मैं ये अपील भी दोस्तों से करना चाहता हूँ कि हम माचि रेड्डी जी को इस ख़ुशी का एहसास करवाएं कि उनके इस श्रम साध्य शोधपूर्ण काम में हमारी भी दिलचस्पी है। न केवल दिलचस्पी है बल्कि एक गैर हिंदी भाषी प्रदेश में हिंदी और तेलुगु के बीच साहित्य के पल का काम करने के लिए हमारे दिलों में उनकी इज़्ज़त भी है। 

यहाँ मैं माचि रेड्डी जी का डाक का पता और फ़ोन नंबर दे रहा हूँ। जो उनसे संपर्क करेंगे, ख़त लिखेंगे, फ़ोन करेंगे, पुस्तक बुलाएँगे और पैसे भेजेंगे, उनके लिए तो ढेर सारा आभार।  लेकिन जिन्होंने मेरी ये पोस्ट पढ़ी और इस तरह माचि रेड्डी को, श्री श्री को, रारा को, पेनुगोंडा लक्ष्मीनारायण को, गुंटूर और आंध्र प्रदेश के प्रगतिशील लेखक संघ (आरसम) की गतिविधियों को जाना, उनका भी धन्यवाद। 
डॉ. तक्कोलु माचि रेड्डी 
40/39-2, मुत्थुरासु पल्ली,
जिला - कड़पा (आंध्र प्रदेश). पिन - 516002 
मोबाइल - 96666 26546  
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(खत लिखें तो पता अंग्रेजी में लिखने से मिलने की उम्मीद ज़्यादा रहेगी। )
Dr. Takkolu Machi Reddy
40/39-2, Mutturasu Palli, 
Kadapa District (Andhra Pradesh)
Pin 516002
Mobile: 96666 26546
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मप्र प्रगतिशील लेखक संघ की राज्य कार्यकारिणी की बैठक की रिपोर्ट

इकाई स्तर पर सक्रियता और जन संस्कृति के प्रसार के संकल्प के साथ आयोजित प्रलेस की राज्य कार्यकारिणी बैठक एवं कवि गोष्ठी सम्पन्न*

देवास, 4 फरवरी, 2019

साहित्य, संस्कृति और कला के प्रश्नों पर निरंतर सक्रिय मप्र प्रगतिशील लेखक संघ की राज्य कार्यकारिणी की बैठक देवास के चामुण्डा कॉम्प्लेक्स में स्थित ईटी कोचिंग के सभागृह में 3 फरवरी को आयोजित की गई। बैठक की अध्यक्षता संगठन के अध्यक्ष श्री राजेन्द्र शर्मा ने की। बैठक में संगठन की इकाई से लेकर राज्य तक निरंतर सक्रियता बढ़ाने, राज्य के साथ सम्बन्ध, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के राज्य द्वारा उत्पीड़न, अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों आदि पर गहन विचार किया गया तथा महत्वपूर्ण प्रस्ताव भी पारित किए गए। बैठक के आरंभ में विगत दिनों दिवंगत हुए महत्वपूर्ण लेखकों यथा कृष्णा सोबती, देवीशरण ग्रामीण, इक़बाल मजीद, कमल जैन और फिल्मकार मृणाल सेन को संगठन की ओर से आत्मीय श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

*रज़िया, कैफ़ी, नेमिचंद जैन और राहुल सांकृत्यायन पर कार्यक्रम*
बैठक में निर्णय लिया गया कि संगठन द्वारा महत्वपूर्ण साहित्यकारों राहुल सांकृत्यायन, रजिया सज्जाद जहीर, कैफ़ी आज़मी और रंगकर्मी नेमीचंद जैन के जन्मशती वर्ष के अवसर पर इस साल पूरे प्रदेश में इकाई स्तर पर इनके साहित्यिक अवदान को याद करने हेतु परिचर्चाएं आयोजित की जाएंगी तथा प्रमुख शहरों में बड़े कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे।

*वसुधा*
एक महत्त्वपूर्ण निर्णय संगठन की मुखपत्रिका और महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिका प्रगतिशील वसुधा के संबंध में भी लेते हुए यह तय किया गया कि अब विनीत तिवारी इसके संपादन और प्रकाशन की जिम्मेदारी देखेंगे। इसी वर्ष सितम्बर में जयपुर में प्रस्तावित संगठन के राष्ट्रीय सम्मेलन के पूर्व सभी इकाइयों को जीवंत और सक्रिय बनाया जाएगा और संभागीय सम्मेलन आयोजित किये जायेंगे। इस प्रक्रिया को गति प्रदान करने के उद्देश्य से राज्य सचिवमंडल के साथियों के मध्य इकाइयों की जिम्मेदारियों का विभाजन भी किया गया।

*प्रस्ताव*
प्रलेस बैठक में कुछ महत्वपूर्ण प्रस्ताव भी पारित किए गए। एक प्रस्ताव में हाल के दिनों में देश मे अलग-अलग बहानों से मानव अधिकार कार्यकर्ताओं और सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले बुद्धिजीवियों, संस्कृतिकर्मियों की प्रताड़ना और गिरफ्तारी आदि की तीव्र भर्त्सना की गई। सरकार से अपील की गई कि वह देश के संविधान में वर्णित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करे और लेखकों, संस्कृति कर्मियों, पत्रकारों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करना बंद करे। दूसरे प्रस्ताव में दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला में जनता द्वारा निर्वाचित राष्ट्रपति और प्रशासन को अस्थिर करने के लिये तथा उस देश के विशाल तेल भंडार पर कब्ज़ा करने हेतु अमरीकी सरकार द्वारा किये जा रहे षड्यंत्रों की निंदा की गई और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपेक्षा की गई कि वे वेनेजुएला की संप्रभुता और जनादेश की रक्षा हेतु आवश्यक क़दम उठायें।

*कवि गोष्ठी*
कार्यकारिणी बैठक के पश्चात शाम को 4 बजे से एक कविता पाठ का आयोजन भी किया गया जिसमें प्रदेश के कई जिलों से आये कवियों ने अपनी कविताएं सुनाईं।

कवि गोष्ठी की अध्यक्षता मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष, प्रगतिशील वसुधा के पूर्व संपादक एवं वरिष्ठ कवि राजेन्द्र शर्मा ने की। उन्होंने कवियों का संक्षिप्त परिचय देने के साथ ही गोष्ठी के अंत में कवि एवं सामाजिक कार्यकर्ता विनीत तिवारी को सर्वसम्मति से प्रगतिशील वसुधा के संपादक बनाये जाने की घोषणा की। राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि हरिशंकर परसाई, कमला प्रसाद और मेरे बाद प्रगतिशील वसुधा 101 वें अंक से विनीत तिवारी के सम्पादन में इंदौर से निकलेगी। विनीत अपनी संपादकीय टीम का गठन करेंगे। हम आशा करते हैं कि वसुधा में कुछ नया जुड़ने के साथ साथ यह अपनी विशिष्टता में वृद्धि भी करेगी।

कवि गोष्ठी में सतना से आये वरिष्ठ कवि बाबूलाल दाहिया के साथ शिवशंकर मिश्र सरस (सीधी), अरुण नामदेव (नागौद), विनीत तिवारी, अभय नेमा, सारिका श्रीवास्तव (इंदौर) शैलेन्द्र शैली, प्रज्ञा रावत, आरती, सत्यम (भोपाल), शशिभूषण (उज्जैन) आदि ने काव्य पाठ किये।

लोक कवि बाबूलाल दाहिया ने कृषि के अंतर्गत किसानी के साथ सामाजिक जीवन में आने वाले, शामिल शब्दों की कविता में जगह, उनकी अहमियत को रेखांकित करते हुए मेहनत, हक़ और मिल जुलकर संघर्ष करने की चेतना से भरी कविताएं सुनाईं। 'पसीना हमरे बद है' और उनकी अन्य मार्मिक कविताओं में श्रमिकों, किसानों के प्रति अटूट लगाव एवं कवि सरोकारों के लिए प्रतिबद्धता दिखी जिसे सुनने वालों ने खूब पसंद किया एवं प्रेरित हुए।

शिवशंकर मिश्र 'सरस' की कविताओं में धार्मिक पाखंड के उद्घाटन के साथ ग्रामीण आदिवासी श्रमिकों की पीड़ा एवं शोषण के प्रति प्रतिकार दिखे। अभय नेमा की कविताओं में कवि की पक्षधरता एवं सरोकारों की गूंज थी। सारिका की कविताओं में स्त्री चेतना के स्वर के साथ इंसानों के लिए संवेदना थी। प्रज्ञा रावत ने पिता भगवत रावत को याद करते हुए कविताएं सुनाईं और श्रोताओं का ध्यान आकर्षित किया। आरती ने छोटी छोटी सहज प्रेम कविताओं के साथ प्रतीकात्मकता से लबरेज़ स्मरणीय कविता का पाठ किया।

शैलेन्द्र शैली की कविताओं में परिवर्तनकामी चेतना, धार्मिक- सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अतिचारों के ख़िलाफ़ एकजुटता और संघर्षशीलता का स्वर मुख्य रहा। सत्यम की कविताओं में आसिफा के लिए न्याय को आवाज़ देती कविता ने सबका ध्यान खींचा। शशिभूषण ने 'अरुणाचल' एवं 'रहना मां से दूर' आदि कविताओं का पाठ किया जिन्हें श्रोताओं ने काफ़ी पसंद किया। विनीत तिवारी ने प्रसिद्ध चित्रकार पंकज दीक्षित को समर्पित एक यादगार कविता के साथ रवींद्रनाथ ठाकुर की स्मृति में लिखी कविता और 'जो सिर्फ़ ख़ुशी खोजते हैं उन्हें ख़ुशी कभी नहीं मिलती' कविता का पाठ किया। प्रतिबद्धता, संवेदना, भाषा शिल्प की सादगी के साथ मार्मिकता विनीत की कविताओं की खासियत है। उन्हें बड़ी पसंदगी के साथ सुना गया।

गोष्ठी के अंत में राजेंद्र शर्मा ने 'उठ बहना' को मिलाकर अपनी दो मार्मिक कविताएं सुनायीं। बौद्धिकता से आक्रांत समकालीन कविताओं के दौर में राजेंद्र शर्मा की कविताओं ने पीछे छूटती जा रही मार्मिक कविताई का एहसास कराया।

इस अवसर पर राजेन्द्र शर्मा, अध्यक्ष ने प्रलेसं मध्यप्रदेश की ओर से सभी का आभार जताया एवं इस महत्वपूर्ण आयोजन के लिए देवास इकाई को धन्यवाद दिया। इस एकदिवसीय कार्यकारिणी की बैठक एवं कवि गोष्ठी का संयोजन मेहरबान सिंह, अर्चना मित्तल, इक़बाल मोदी ने किया। गोष्ठी का संचालन किया अर्चना मित्तल ने। उपस्थित साहित्यकारों-कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों में प्रकाश कान्त, राजनारायण बोहरे, मुकेश बिजोले, सचिन श्रीवास्तव, एस के दुबे, अशोक दुबे, विक्रम सिंह गोहिल, ओम वर्मा, प्रताप राव कदम, विक्रम सिंह, चिराग, संदीप नाइक, बहादुर पटेल, ज्योति देशमुख, अमेय कांत, दिनेश पटेल, मनीष आदि रहे। बैठक एवं कवि गोष्ठी को सफल बनाने में श्री मेहरबान सिंह सहित देवास इकाई के साथियों ने अथक परिश्रम किया।

*रिपोर्ट: शशिभूषण और सत्यम*
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