इंदौर. ११ मई २०११
प्रगतिशील लेखक संघ की आन्ध्राप्रदेश इकाई के अध्यक्ष कामरेड लक्ष्मीनारायण ने प्रगतिशील लेखक संघ की इंदौर इकाई के साथियों को संबोधित करते हुए कहा कि साहित्य का गैर राजनीतिक होना हमारे लिए चुनौती है. उन्होंने कहा कि ऐसे दौर में जब लोग जनवाद और प्रगतिशीलता को पुरानी और ख़त्म हो चुकी चीज़ मानने लगे हैं और इसका प्रचार किया जा रहा है तो अपनी तरह से सोचने वाले साथियों के बीच आकर खुशी महसूस होती है. इंडियन कॉफ़ी हाउस में साथियों के साथ अनोपचारिक बातचीत करते हुए उन्होंने तेलगु साहित्य की प्रगतिशील धारा के बारे में जानकारी दी. १९१० में प्रगतिशील तेलगु साहित्य ने आकार लेना शुरू किया और १९३६ में जब लखनऊ में प्रगतिशील लेखक संघ का पहला सम्मलेन हुआ तो उसमें तेलगु साहित्य के तीन प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. इस तरह प्रगतिशील तेलूगु ने आकार लेना शुरू किया. १९३० का दशक तेलगु साहित्य के लिए काफी महत्वपूर्ण था. इसी दौरान आज़ादी की लड़ाई के साथ ही कम्युनिस्ट आन्दोलन की भी शुरआत हुई थी.
श्री लक्ष्मीनारायण ने कहां कि वह समय राजनीतिक लेखन का था. प्रगतिशील लेखक संघ का सदस्य होना उस दौर में फेशन होता था. आप तब तक लेखक नहीं माने जाते थे जब तक आप प्रगतिशील लेखक संघ के सदस्य नहीं होते. उसी दौरान तेलुगु साहित्य में मजदूर व शोषित के हक़ में आवाज बुलंद की गयी. उससे पहले तक तेलुगु साहित्य की भाषा भी संस्कृत की तरह थी जो बाद में आम लोगों की भाषा बनी.
उन्होंने ऐसे तेलुगु साहित्यकारों के बारे में भी बताया जो अधिक प्रसिद्ध नहीं हैं लेकिन तेलुगु साहित्य में जिन्होंने अपनी उपस्थिति दर्शायी. इनमें प्रमुख हैं शारदा व् श्री श्री.
आज़ादी के बाद हुक्मरानों को इस प्रभावशाली मुहिम से खतरा महसूस होने लगा. उनहोंने दमनकारी नीति अपनानी शुरू कर दी. तेलंगाना मुहिम को कुचलने के साथ-साथ प्रगतिशील लेखक संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया. कई लेखक चेन्नई भाग गए. इसके बावजूद प्रगतिशील लेखक संघ का प्रभाव कम नहीं हुआ. प्रगतिशील लेखक संघ की तेलुगु इकाई ने विश्व साहित्य और हिन्दी व बांग्ला के उत्कृष्ट साहित्य का भी अनुवाद तेलुगु में किया. इसमें विशाल आंध्रा पब्लिकेशन का काफी सहयोग रहा है.
गुंटूर जिले के निवासी कामरेड लक्ष्मीनारायण खुद भी अच्छे लेखक हैं व जिला बार एसोसिशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि कृष्णकांत निलोसे, इप्टा इंदौर इकाई के सचिव अशोक दुबे, वरिष्ट लेखक श्री एस के दुबे, सारिका श्रीवास्तव, युवा कवि रोशन नायर, अभय नेमा, विनोद बन्डावाला, मनीष पाण्डेय, सत्येन्द्र रघुवंशी आदि उपस्थित थे. प्रगतिशील लेखक संघ के राज्य महासचिव विनीत तिवारी ने श्री लक्ष्मीनारायण का परिचय दिया और बताया कि श्री लक्ष्मीनारायण भोपाल में राष्ट्रीय महासचिव श्री कमलाप्रसाद के निधन के उपरान्त उनके परिजनों से भेंट कर अपनी और आँध्रप्रदेश के अन्य साथियो की और से शोक संवेदनाएं देने भी गए थे और लौटते हुए इंदौर में उनहोंने साथियों से मिलने की इच्छा प्रकट की तो तत्काल ही हम लोग इकट्ठे हो गए. श्री लक्ष्मीनारायण ने तेलुगु साहित्य की प्रगतिशील धारा के बारे में विस्तार से परिचय कराया और श्री श्री व शारदा जैसे महान कवियों की कवितायें भी सुनाईं.
विनोद बन्डावाला
कुछ बातें जो रह जाती हैं कभी मन में, अनकही- अनसुनी... शब्दों के माध्यम से रखी जा सकती हैं,बरक्स... मेरे-तेरे मन की कई बातें... कई सारे अनुभव, कई सारे स्पंदन, कई सारे घाव और मरहम... व्यक्त होते हैं शब्दों के माध्यम से... मेरा मुझी से है साक्षात्कार, शब्दों के माध्यम से... तू भी मेरे मनमीत, है साकार... शब्दों के माध्यम से...
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