सरोकार जो मेरे हैं,
तुम्हारे आदर्शों के खोखलेपन
और हिंसा के सभी तरीकों
के सीधे-सीधे खिलाफ़ हैं !
सारे झूठ और
गढ़ी हुई मर्यादाएं तुम्हारी पैदाईश हैं
लेकिन मेरी आस्था
सिर्फ धूप की पहली किरण
बारिश की पहली बौछार
और ठण्ड की पहली सिहरन में है
इसलिए खालिस हैं... प्रकृत हैं...
तुम मुझे
कमजोर, प्रकृतिवादी,
गल्पवादी, सिरफिरा, नपुंसक घोषित कर
हाशिए से बाहर फेंक सकते हो,
संतुष्ट हो सकते हो
अपनी जीत के भ्रम का
उत्सव मना सकते हो
या इस तरह एक
गोलबंदी में अपने किये पर वाह-वाही
लूट सकते हो...
लेकिन,
मैं जब कहता हूँ --
रौंदे जाने से पहले
घास में जीवन था
मैं मानता हूँ की
तुम समूचा रौंद कर भी
घास को
उगने से
रोक नहीं सकते--
तुम तिलमिला उठते हो...
तुम्हारे संस्कार में सच
को बर्दाश्त करना
कोई चीज ही नहीं है !
या उसे नकारना ही अपनी
बुजदिली को ढांपकर
बहादुर बन जाने की
एक युक्ति है !
तुम समझो कि
मुझे तकलीफ में डालना
तुम्हारे शातिर दिमाग की
सबसे बड़ी जीत हैं, मगर
तुम समझ नहीं सकते कि
तकलीफ में होना ही
असल में
चीजों को बदलने की
ज़मीन तैयार करता है !
मेरे सरोकार
तुमसे मिले चोटों
का हिसाब दर्ज करते हुए
उसके पाई-पाई
चुकता करने के हैं
यह तुम
जानते नहीं हो अभी
यही तुम्हारी ताकत की
सबसे बचकानी भूल है !
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