इंदौर में प्रगतिशील लेखक संघ ने दुनिया भर में फैल रही कट्टरता पर आयोजित की परिचर्चा 
इंदौर। प्रगतिशील लेखक संघ की इंदौर इकाई ने पाकिस्तान में सूफी कव्वाल अमजद साबरी की हत्या और बांग्लादेश में पिछले दिनों में ब्लाॅगरों, लेखक व पत्रकारों की हत्या की निंदा करते हुए एक परिचर्चा का आयोजन अनंत थिएटर सुखशांति नगर इंदौर में किया। इसमें भारतीय उपमहाद्वीप में कट्टरपंथी ताकतों के उभार पर वक्ताओं ने अपनी बात रखी। इस मौके पर इंदौर के नाट्य समूह सबरंग ने नाटक 'अजातघर' पेश किया। यह नाटक दंगे और सांप्रदायिकता की पृष्ठभूमि में आम आदमी की विचार प्रक्रिया और उसके द्वारा उठाए गए सवालों के बारे में था। परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में सूफी कव्वाल और ब्लागरों की हत्या के बाद भी इंसानियत का पैगाम देना रुकेगा नहीं। कट्टरपंथी विचारधारा के खिलाफ प्रतिरोध जारी रहेगा।
 प्रगतिशील लेखक संघ के उपाध्यक्ष कामरेड चुन्नीलाल वाधवानी ने पाकिस्तान में अपने संपर्कों के हवाले से कहा कि अमजद साबरी पाकिस्तान में सूफियाना परंपरा के कव्वाल थे। वे नात गाते थे। जिसमें पैगंबर की प्रशंसा होती है। वे भगत कंवर राम की परंपरा के थे। भगत कंवर राम सिंध के थे। 1935 में उनकी भी हत्या कर दी गई थी। कंवर राम के भजन इतने मधुर होते थे कि उन्हें सुनने आसपास के गांवों के लोग तक आते थे। वे भजन के बाद अपनी झोली फैलाते थे। इसमें जो कुछ भी इकट्ठा होता था उसे वे वहां भजन सुनने आए गरीबों और जरूरतमंदों में बांट दिया करते थे। इसमें से भी ज्यादातर मुस्लिम गरीब किसान होते थे। कंवर राम की हत्या इसलिए कर दी गई थी क्योंकि वे समाज में भाईचारा बढ़ा रहे थे। अमजद साबरी भी पाकिस्तान में कम से कम 250 परिवारों का पालन-पोषण करते थे उनके संरक्षक थे। उनके वालिद गुलाम फरीद भी सूफी कव्वाल थे। अमजद साबरी के परिवार वालों का कहना है कि उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। फिर साबरी को किसने मारा यह सवाल लोगों की जुबान पर है। पाकिस्तान में सुन्नी बहुल मस्लिम हैं। अमजद भी सुन्नी थे। लेकिन सुन्नियों में वे बरेलवी थे। बरेलवी सुन्नी दरगाह, मजार पर जाते हैं,  संगीत के जरिए आराधना में विश्वास रखते हैं, वहीं कट्टरपंथी दरगाह, संगीत आदि में यकीन नहीं रखते हैं। वे कहते हैं कि सिर्फ एक ही अल्लाह है उसी के आगे सिर झुकाना चाहिए। अमजद साबरी के श्रोताओं में हिंदू-मुसलमान और सिख भी हैं। ये सभी दरगाहों और मजारों पर भी जाते थे। कट्टरपंथी एसा मानते हैं कि बरेलवियों से इस्लाम खतरे में पड़ता है। इसलिए पाकिस्तान में बाबा फरीद की मजार, अब्दाल शाह गाजी की मजार पर बम फेंकने की घटनाएं भी हो चुकी हैं। कट्टरपंथियों के अनुयायी पाकिस्तान के फाटा यानी कि फेडरल एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरियास के मदरसों में पनप रहे हैं। फाटा में वजीरिस्तान, मालकंड, चित्राल, स्वात, डीर शहर आते हैं। ये जनजातीय कबीलों के स्वायत्त इलाके हैं। 1948 में पाकिस्तान की एक संधि के तहत फाटा के इलाकों को विशेष दर्जा मिला है। यहां पर शिक्षा व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है। मदरसों में बच्चों को पढ़ाया जाता है। उन्हें सिर्फ मजहबी शिक्षा दी जाती है। पाकिस्तान में परिवार नियोजन नहीं हैं। वहां के मुसलमान और हिंदुओं के घर में पांच-पांच बच्चे पैदा होना आम बात है। बड़े परिवारों में बच्चों की सही परवरिश न होने और अशिक्षा के चलते सभी बच्चे मदरसों का रुख करते हैं और यहां उन्हें कट्टर बनाया जाता है। इन्हें यही बताया जाता है कि उनके धर्म का शासन ही दुनिया में कायम रखना है।
प्रगतिशील लेखक संघ के उपाध्यक्ष कामरेड चुन्नीलाल वाधवानी ने पाकिस्तान में अपने संपर्कों के हवाले से कहा कि अमजद साबरी पाकिस्तान में सूफियाना परंपरा के कव्वाल थे। वे नात गाते थे। जिसमें पैगंबर की प्रशंसा होती है। वे भगत कंवर राम की परंपरा के थे। भगत कंवर राम सिंध के थे। 1935 में उनकी भी हत्या कर दी गई थी। कंवर राम के भजन इतने मधुर होते थे कि उन्हें सुनने आसपास के गांवों के लोग तक आते थे। वे भजन के बाद अपनी झोली फैलाते थे। इसमें जो कुछ भी इकट्ठा होता था उसे वे वहां भजन सुनने आए गरीबों और जरूरतमंदों में बांट दिया करते थे। इसमें से भी ज्यादातर मुस्लिम गरीब किसान होते थे। कंवर राम की हत्या इसलिए कर दी गई थी क्योंकि वे समाज में भाईचारा बढ़ा रहे थे। अमजद साबरी भी पाकिस्तान में कम से कम 250 परिवारों का पालन-पोषण करते थे उनके संरक्षक थे। उनके वालिद गुलाम फरीद भी सूफी कव्वाल थे। अमजद साबरी के परिवार वालों का कहना है कि उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। फिर साबरी को किसने मारा यह सवाल लोगों की जुबान पर है। पाकिस्तान में सुन्नी बहुल मस्लिम हैं। अमजद भी सुन्नी थे। लेकिन सुन्नियों में वे बरेलवी थे। बरेलवी सुन्नी दरगाह, मजार पर जाते हैं,  संगीत के जरिए आराधना में विश्वास रखते हैं, वहीं कट्टरपंथी दरगाह, संगीत आदि में यकीन नहीं रखते हैं। वे कहते हैं कि सिर्फ एक ही अल्लाह है उसी के आगे सिर झुकाना चाहिए। अमजद साबरी के श्रोताओं में हिंदू-मुसलमान और सिख भी हैं। ये सभी दरगाहों और मजारों पर भी जाते थे। कट्टरपंथी एसा मानते हैं कि बरेलवियों से इस्लाम खतरे में पड़ता है। इसलिए पाकिस्तान में बाबा फरीद की मजार, अब्दाल शाह गाजी की मजार पर बम फेंकने की घटनाएं भी हो चुकी हैं। कट्टरपंथियों के अनुयायी पाकिस्तान के फाटा यानी कि फेडरल एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरियास के मदरसों में पनप रहे हैं। फाटा में वजीरिस्तान, मालकंड, चित्राल, स्वात, डीर शहर आते हैं। ये जनजातीय कबीलों के स्वायत्त इलाके हैं। 1948 में पाकिस्तान की एक संधि के तहत फाटा के इलाकों को विशेष दर्जा मिला है। यहां पर शिक्षा व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है। मदरसों में बच्चों को पढ़ाया जाता है। उन्हें सिर्फ मजहबी शिक्षा दी जाती है। पाकिस्तान में परिवार नियोजन नहीं हैं। वहां के मुसलमान और हिंदुओं के घर में पांच-पांच बच्चे पैदा होना आम बात है। बड़े परिवारों में बच्चों की सही परवरिश न होने और अशिक्षा के चलते सभी बच्चे मदरसों का रुख करते हैं और यहां उन्हें कट्टर बनाया जाता है। इन्हें यही बताया जाता है कि उनके धर्म का शासन ही दुनिया में कायम रखना है।  

प्रगतिशील लेखक संघ की इंदौर इकाई के सचिव अभय नेमा ने बांग्लादेश पर अपनी बात केन्द्रित की। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में 2013 से अब तक 30 ब्लागरों, लेखकों, संपादकों की हत्या की जा चुकी है। इनमें अनीश्वरवादी, धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों के साथ ही वे धर्मनिरेपक्ष मुसलमान भी शामिल हैं जो बांग्लादेश मे कट्टरपंथियों का समर्थन नहीं करते। इनसे कट्टरपंथी इसलिए नाराज हैं कि ये लोग `मुक्त मन' नामक वेबसाइट पर लिखते हैं। इस साइट पर लेखकों ने धार्मिक आस्था समेत सभी तरह की आस्थाओं पर, धर्म की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। बांग्लादेश में अवामी लीग की नेता शेख हसीना की सरकार है। वहीं विपक्ष में बेगम खालिदा जिया की बांगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी है। आवामी लीग 1971 में स्वाधीनता मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान की ओर से बांग्लादेश की मुक्ति के खिलाफ लड़ने वालों पर एक-एक कर युद्ध अपराध के मुकदमों में सजा सुना रही है। बांग्लादेश की बहुसंख्यक आबादी सजा के समर्थन में है। अब तक आधा दर्जन से ज्यादा को मौत की सजा या उम्रकैद हो चुकी है। जिन्हें सजा मिली है वे कट्टरपंथी हैं और कई जमात-ए-इस्लामी के नेता हैं। उन्हें बीएनपी का समर्थन है। बीएनपी को जमात-ए-इस्लामी का भी समर्थन है। बीएनपी शेख हसीना को सत्ता से बाहर करने के लिए कट्टरपंथियों का समर्थऩ कर रही है। इन राजनीतिक हालात के कारण इस वक्त बांग्लादेश की हालत विकट है। इसके अलावा भारत में भी कलबुर्गी, पानसरे और दाभोलकर की हत्या में कट्टरपंथियों का हाथ होने की बात जांच में सामने आ रही है। कट्टरपंथी नहीं चाहते कि कोई प्रगतिशील विचारधारा पनपे और फैले। इस तरह भारतीय उपमहाद्वीप में कट्टरपंथी रुझान हावी होने की कोशिश की जा रही है। यह भारतीय उपमहाद्वीप तक ही यह सीमित नहीं है। योरप में भी दक्षिणपंथी रुझान नजर आ रहा है। आस्ट्रिया, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, इटली में दक्षिणपंथी रुझान हावी होते नजर आ रहे हैं। ब्रेक्सिट में योरपीय संघ से ब्रिटेन का अलग होना भी इसी रुझान को इंगित करता है। योरप के लोग नहीं चाहते कि वे समाज के प्रतिफल को सीरिया के शरणार्थियों के साथ बांटे। अपने कर की राशि से शिक्षा-चिकित्सा, रोजगार और कल्याणकारी राज्य की तमाम सुविधाएं वे शरणार्थियों के साथ बांटना नहीं चाहते हैं। अमेरिका में भी राष्ट्रपति पद की दावेदारी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप मुस्लिम विरोधी बयान इसी दक्षिणपंथी मानसिकता के तहत दे रहे हैँ।
प्रगतिशील लेख संघ के अध्यक्ष एस के दुबे ने कहा कि भारत में जातियों के बीच संघर्ष हो रहे हैं। गुजरात में पाटीदार और हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन इसका उदाहरण है। इसके पीछे आर्थिक सवाल हैं। नौकरियां नहीं है। असल मुद्दों को न छूते हुए गैर जरूरी मुद्दे लेकर देश में आंतरिक हिंसा हो रही है। हमारे सामाजिक ताने-बाने को खत्म किया जार रहा है। इसके पीछे यहां की कट्टरपंथी ताकतें हैं।
इस अवसर पर नाट्य संस्था सबरंग द्वारा दंगों और साम्प्रदायिकता के विषय पर केंद्रित रामेश्वर प्रेम लिखित नाटिका 'अजात घर' का मंचन भी हुआ। इस नाटक को रामेश्वर प्रेम ने लिखा है। प्रांजल श्रोत्रिय द्वारा निर्देशित नाटक में सर्वश्री शाकिर हुसैन और श्रवण गढ़वाल ने भावप्रवण अभिनय किया। नाटक में दो आम आदमियों की मनः स्थिति का चित्रण हैं जो दंगों में जान बचाने के लिए एक घर में छिपे हैं। इस दौरान उनके बीच जातिगत और सांप्रदायिक मसलों को लेकर रोचक संवाद होता है। कहानी इस बात पर खत्म होती है कि दंगों में सब डर छिप रहे हैं तो फिर मार कौन रहा है। निर्देश श्रोत्रिय ने सुविचारित ढंग से दंगे की मानसिकता को उघाड़ा। गोष्ठी में सबरंग से जुड़े रंगकर्मियों सहित सर्वश्री अनन्त श्रोत्रिय,एस के दुबे, संजय वर्मा,सारिका श्रीवास्तव,ब्रजेश कानूनगो,सुरेश पटेल,केसरीसिंह चिडार आदि भी उपस्थित थे।
इंदौर। प्रगतिशील लेखक संघ की इंदौर इकाई ने पाकिस्तान में सूफी कव्वाल अमजद साबरी की हत्या और बांग्लादेश में पिछले दिनों में ब्लाॅगरों, लेखक व पत्रकारों की हत्या की निंदा करते हुए एक परिचर्चा का आयोजन अनंत थिएटर सुखशांति नगर इंदौर में किया। इसमें भारतीय उपमहाद्वीप में कट्टरपंथी ताकतों के उभार पर वक्ताओं ने अपनी बात रखी। इस मौके पर इंदौर के नाट्य समूह सबरंग ने नाटक 'अजातघर' पेश किया। यह नाटक दंगे और सांप्रदायिकता की पृष्ठभूमि में आम आदमी की विचार प्रक्रिया और उसके द्वारा उठाए गए सवालों के बारे में था। परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में सूफी कव्वाल और ब्लागरों की हत्या के बाद भी इंसानियत का पैगाम देना रुकेगा नहीं। कट्टरपंथी विचारधारा के खिलाफ प्रतिरोध जारी रहेगा।
 प्रगतिशील लेखक संघ के उपाध्यक्ष कामरेड चुन्नीलाल वाधवानी ने पाकिस्तान में अपने संपर्कों के हवाले से कहा कि अमजद साबरी पाकिस्तान में सूफियाना परंपरा के कव्वाल थे। वे नात गाते थे। जिसमें पैगंबर की प्रशंसा होती है। वे भगत कंवर राम की परंपरा के थे। भगत कंवर राम सिंध के थे। 1935 में उनकी भी हत्या कर दी गई थी। कंवर राम के भजन इतने मधुर होते थे कि उन्हें सुनने आसपास के गांवों के लोग तक आते थे। वे भजन के बाद अपनी झोली फैलाते थे। इसमें जो कुछ भी इकट्ठा होता था उसे वे वहां भजन सुनने आए गरीबों और जरूरतमंदों में बांट दिया करते थे। इसमें से भी ज्यादातर मुस्लिम गरीब किसान होते थे। कंवर राम की हत्या इसलिए कर दी गई थी क्योंकि वे समाज में भाईचारा बढ़ा रहे थे। अमजद साबरी भी पाकिस्तान में कम से कम 250 परिवारों का पालन-पोषण करते थे उनके संरक्षक थे। उनके वालिद गुलाम फरीद भी सूफी कव्वाल थे। अमजद साबरी के परिवार वालों का कहना है कि उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। फिर साबरी को किसने मारा यह सवाल लोगों की जुबान पर है। पाकिस्तान में सुन्नी बहुल मस्लिम हैं। अमजद भी सुन्नी थे। लेकिन सुन्नियों में वे बरेलवी थे। बरेलवी सुन्नी दरगाह, मजार पर जाते हैं,  संगीत के जरिए आराधना में विश्वास रखते हैं, वहीं कट्टरपंथी दरगाह, संगीत आदि में यकीन नहीं रखते हैं। वे कहते हैं कि सिर्फ एक ही अल्लाह है उसी के आगे सिर झुकाना चाहिए। अमजद साबरी के श्रोताओं में हिंदू-मुसलमान और सिख भी हैं। ये सभी दरगाहों और मजारों पर भी जाते थे। कट्टरपंथी एसा मानते हैं कि बरेलवियों से इस्लाम खतरे में पड़ता है। इसलिए पाकिस्तान में बाबा फरीद की मजार, अब्दाल शाह गाजी की मजार पर बम फेंकने की घटनाएं भी हो चुकी हैं। कट्टरपंथियों के अनुयायी पाकिस्तान के फाटा यानी कि फेडरल एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरियास के मदरसों में पनप रहे हैं। फाटा में वजीरिस्तान, मालकंड, चित्राल, स्वात, डीर शहर आते हैं। ये जनजातीय कबीलों के स्वायत्त इलाके हैं। 1948 में पाकिस्तान की एक संधि के तहत फाटा के इलाकों को विशेष दर्जा मिला है। यहां पर शिक्षा व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है। मदरसों में बच्चों को पढ़ाया जाता है। उन्हें सिर्फ मजहबी शिक्षा दी जाती है। पाकिस्तान में परिवार नियोजन नहीं हैं। वहां के मुसलमान और हिंदुओं के घर में पांच-पांच बच्चे पैदा होना आम बात है। बड़े परिवारों में बच्चों की सही परवरिश न होने और अशिक्षा के चलते सभी बच्चे मदरसों का रुख करते हैं और यहां उन्हें कट्टर बनाया जाता है। इन्हें यही बताया जाता है कि उनके धर्म का शासन ही दुनिया में कायम रखना है।
प्रगतिशील लेखक संघ के उपाध्यक्ष कामरेड चुन्नीलाल वाधवानी ने पाकिस्तान में अपने संपर्कों के हवाले से कहा कि अमजद साबरी पाकिस्तान में सूफियाना परंपरा के कव्वाल थे। वे नात गाते थे। जिसमें पैगंबर की प्रशंसा होती है। वे भगत कंवर राम की परंपरा के थे। भगत कंवर राम सिंध के थे। 1935 में उनकी भी हत्या कर दी गई थी। कंवर राम के भजन इतने मधुर होते थे कि उन्हें सुनने आसपास के गांवों के लोग तक आते थे। वे भजन के बाद अपनी झोली फैलाते थे। इसमें जो कुछ भी इकट्ठा होता था उसे वे वहां भजन सुनने आए गरीबों और जरूरतमंदों में बांट दिया करते थे। इसमें से भी ज्यादातर मुस्लिम गरीब किसान होते थे। कंवर राम की हत्या इसलिए कर दी गई थी क्योंकि वे समाज में भाईचारा बढ़ा रहे थे। अमजद साबरी भी पाकिस्तान में कम से कम 250 परिवारों का पालन-पोषण करते थे उनके संरक्षक थे। उनके वालिद गुलाम फरीद भी सूफी कव्वाल थे। अमजद साबरी के परिवार वालों का कहना है कि उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। फिर साबरी को किसने मारा यह सवाल लोगों की जुबान पर है। पाकिस्तान में सुन्नी बहुल मस्लिम हैं। अमजद भी सुन्नी थे। लेकिन सुन्नियों में वे बरेलवी थे। बरेलवी सुन्नी दरगाह, मजार पर जाते हैं,  संगीत के जरिए आराधना में विश्वास रखते हैं, वहीं कट्टरपंथी दरगाह, संगीत आदि में यकीन नहीं रखते हैं। वे कहते हैं कि सिर्फ एक ही अल्लाह है उसी के आगे सिर झुकाना चाहिए। अमजद साबरी के श्रोताओं में हिंदू-मुसलमान और सिख भी हैं। ये सभी दरगाहों और मजारों पर भी जाते थे। कट्टरपंथी एसा मानते हैं कि बरेलवियों से इस्लाम खतरे में पड़ता है। इसलिए पाकिस्तान में बाबा फरीद की मजार, अब्दाल शाह गाजी की मजार पर बम फेंकने की घटनाएं भी हो चुकी हैं। कट्टरपंथियों के अनुयायी पाकिस्तान के फाटा यानी कि फेडरल एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरियास के मदरसों में पनप रहे हैं। फाटा में वजीरिस्तान, मालकंड, चित्राल, स्वात, डीर शहर आते हैं। ये जनजातीय कबीलों के स्वायत्त इलाके हैं। 1948 में पाकिस्तान की एक संधि के तहत फाटा के इलाकों को विशेष दर्जा मिला है। यहां पर शिक्षा व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है। मदरसों में बच्चों को पढ़ाया जाता है। उन्हें सिर्फ मजहबी शिक्षा दी जाती है। पाकिस्तान में परिवार नियोजन नहीं हैं। वहां के मुसलमान और हिंदुओं के घर में पांच-पांच बच्चे पैदा होना आम बात है। बड़े परिवारों में बच्चों की सही परवरिश न होने और अशिक्षा के चलते सभी बच्चे मदरसों का रुख करते हैं और यहां उन्हें कट्टर बनाया जाता है। इन्हें यही बताया जाता है कि उनके धर्म का शासन ही दुनिया में कायम रखना है।  
प्रगतिशील लेखक संघ की इंदौर इकाई के सचिव अभय नेमा ने बांग्लादेश पर अपनी बात केन्द्रित की। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में 2013 से अब तक 30 ब्लागरों, लेखकों, संपादकों की हत्या की जा चुकी है। इनमें अनीश्वरवादी, धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों के साथ ही वे धर्मनिरेपक्ष मुसलमान भी शामिल हैं जो बांग्लादेश मे कट्टरपंथियों का समर्थन नहीं करते। इनसे कट्टरपंथी इसलिए नाराज हैं कि ये लोग `मुक्त मन' नामक वेबसाइट पर लिखते हैं। इस साइट पर लेखकों ने धार्मिक आस्था समेत सभी तरह की आस्थाओं पर, धर्म की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। बांग्लादेश में अवामी लीग की नेता शेख हसीना की सरकार है। वहीं विपक्ष में बेगम खालिदा जिया की बांगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी है। आवामी लीग 1971 में स्वाधीनता मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान की ओर से बांग्लादेश की मुक्ति के खिलाफ लड़ने वालों पर एक-एक कर युद्ध अपराध के मुकदमों में सजा सुना रही है। बांग्लादेश की बहुसंख्यक आबादी सजा के समर्थन में है। अब तक आधा दर्जन से ज्यादा को मौत की सजा या उम्रकैद हो चुकी है। जिन्हें सजा मिली है वे कट्टरपंथी हैं और कई जमात-ए-इस्लामी के नेता हैं। उन्हें बीएनपी का समर्थन है। बीएनपी को जमात-ए-इस्लामी का भी समर्थन है। बीएनपी शेख हसीना को सत्ता से बाहर करने के लिए कट्टरपंथियों का समर्थऩ कर रही है। इन राजनीतिक हालात के कारण इस वक्त बांग्लादेश की हालत विकट है। इसके अलावा भारत में भी कलबुर्गी, पानसरे और दाभोलकर की हत्या में कट्टरपंथियों का हाथ होने की बात जांच में सामने आ रही है। कट्टरपंथी नहीं चाहते कि कोई प्रगतिशील विचारधारा पनपे और फैले। इस तरह भारतीय उपमहाद्वीप में कट्टरपंथी रुझान हावी होने की कोशिश की जा रही है। यह भारतीय उपमहाद्वीप तक ही यह सीमित नहीं है। योरप में भी दक्षिणपंथी रुझान नजर आ रहा है। आस्ट्रिया, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, इटली में दक्षिणपंथी रुझान हावी होते नजर आ रहे हैं। ब्रेक्सिट में योरपीय संघ से ब्रिटेन का अलग होना भी इसी रुझान को इंगित करता है। योरप के लोग नहीं चाहते कि वे समाज के प्रतिफल को सीरिया के शरणार्थियों के साथ बांटे। अपने कर की राशि से शिक्षा-चिकित्सा, रोजगार और कल्याणकारी राज्य की तमाम सुविधाएं वे शरणार्थियों के साथ बांटना नहीं चाहते हैं। अमेरिका में भी राष्ट्रपति पद की दावेदारी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप मुस्लिम विरोधी बयान इसी दक्षिणपंथी मानसिकता के तहत दे रहे हैँ।
प्रगतिशील लेख संघ के अध्यक्ष एस के दुबे ने कहा कि भारत में जातियों के बीच संघर्ष हो रहे हैं। गुजरात में पाटीदार और हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन इसका उदाहरण है। इसके पीछे आर्थिक सवाल हैं। नौकरियां नहीं है। असल मुद्दों को न छूते हुए गैर जरूरी मुद्दे लेकर देश में आंतरिक हिंसा हो रही है। हमारे सामाजिक ताने-बाने को खत्म किया जार रहा है। इसके पीछे यहां की कट्टरपंथी ताकतें हैं।
इस अवसर पर नाट्य संस्था सबरंग द्वारा दंगों और साम्प्रदायिकता के विषय पर केंद्रित रामेश्वर प्रेम लिखित नाटिका 'अजात घर' का मंचन भी हुआ। इस नाटक को रामेश्वर प्रेम ने लिखा है। प्रांजल श्रोत्रिय द्वारा निर्देशित नाटक में सर्वश्री शाकिर हुसैन और श्रवण गढ़वाल ने भावप्रवण अभिनय किया। नाटक में दो आम आदमियों की मनः स्थिति का चित्रण हैं जो दंगों में जान बचाने के लिए एक घर में छिपे हैं। इस दौरान उनके बीच जातिगत और सांप्रदायिक मसलों को लेकर रोचक संवाद होता है। कहानी इस बात पर खत्म होती है कि दंगों में सब डर छिप रहे हैं तो फिर मार कौन रहा है। निर्देश श्रोत्रिय ने सुविचारित ढंग से दंगे की मानसिकता को उघाड़ा। गोष्ठी में सबरंग से जुड़े रंगकर्मियों सहित सर्वश्री अनन्त श्रोत्रिय,एस के दुबे, संजय वर्मा,सारिका श्रीवास्तव,ब्रजेश कानूनगो,सुरेश पटेल,केसरीसिंह चिडार आदि भी उपस्थित थे।
 
