रिपोर्ट "काफिला तो चले..." प्रलेस झारखण्ड का तीसरा प्रांतीय सम्मेलन 27 - 28 जुलाई 2019, घाटशिला प्रगतिशील लेखक संघ का तीसरे झारखण्ड राज्य सम्मेलन घाटशिला के मऊभंडार स्थित आई.सी.सी. स्पोर्ट्स क्लब (विभूति भूषण बंद्योपाध्याय परिसर, डॉ. नामव र सिंह मंच, प्रेमचंद नगर) में आयोजित हुआ. इस सम्मेलन का उद्घाटन लखनऊ से आये प्रसिद्ध साहित्यकार और महात्मा गाँधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति विभूति नारायण राय ने किया. उद्घाटन सत्र में प्रलेस के राष्ट्रीय महासचिव राजेन्द्र राजन, बिहार प्रलेस के महासचिव रबिन्द्र नाथ राय, वरिष्ठ लेखक खगेन्द्र ठाकुर, झारखंड प्रलेस के अध्यक्ष जयनन्दन, राकेश मिश्र, घाटशिला प्रलेस के अध्यक्ष शेखर मल्लिक, कॉम. बस्ता सोरेन, एटक के महासचिव कॉम. ओमप्रकाश सिंह, प्रलेस के राष्ट्रीय सचिव मंडल के विनीत तिवारी, सुधीर सुमन (जसम), उपेन्द्र (इप्टा), अशोक शुभदर्शी (जलेस) प्रलेस और इप्टा, घाटशिला की संरक्षिका डॉ सुनीता देवदूत सोरेन आदि मंच पर मौजूद थे. इप्टा द्वारा जनगीतों से शुरुआत होने के पश्चात सबका स्वागत करते हुए आयोजक शेखर मल्लिक ने घाटशिला का इतिहास, भौगोलिक -सांस्कृतिक ख़ासियतों, जन संघर्षों और क्रांतिकारी व्यक्तित्वों और घाटशिला प्रलेस के सफर के बारे में बताया और कैफी आज़मी की नज़्म “नई सुबह" के कुछ पंक्तियों को उधृत कर बातें रखीं और आयोजन के एतिहासिक होने की उम्मीद की । उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता राजेन्द्र राजन, खगेन्द्र ठाकुर और जयनंदन ने की और प्रगतिशील लेखकों के समकालीन खतरों और कर्तव्यों के बारे में बताया । अन्य वक्ताओं ने भी इस पर चर्चा करते हुए प्रेमचंद से लेकर ब्रेख़्त तक को याद किया । जसम, जलेस, इप्टा एवं एटक के साथियों ने भी एकजुटता व्यक्त की। महासचिव और सत्र संचालक डॉ मिथिलेश ने सम्मेलन को चुप्पी के दौर में एक आवाज़ बताया । धन्यवाद ज्ञापन शशि कुमार ने फैज़ के प्रासंगिक शेर से किया : “माना कि ये सुनसान घड़ी सख़्त घड़ी है ,लेकिन मिरे दिल ये तो फ़क़त इक ही घड़ी है ,हिम्मत करो जीने को तो इक उम्र पड़ी है “ दूसरा सत्र (ख़ार औ ख़स तो उठे रास्ता तो चले) कैफ़ी आज़मी और रजिया सज्जाद जहीर पर केन्द्रित था, जिनका जन्मशती वर्ष मनाया जा रहा है. इस सत्र में अध्यक्षता की विभूति नारायण राय ने की और संचालन किया अर्पिता श्रीवास्तव ने. वक्ताओं सुधीर सुमन, अहमद बद्र, विनीत तिवारी, सारिका श्रीवास्तव और शशी कुमार ने दोनो महानुभावों के नायाब लेखन के साथ उनकी जिंदगियों और विचारों पर भी बात रखी । शशि कुमार जी ने बताया कि कैसे फिल्मी हस्ती कहे जाने पर ऐतराज जता कर कैफ़ी ने कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यता को अपने जिन्दगी का हासिल बताया था । साथ ही सारिका श्रीवास्तवजी ने बताया कि 1953 में प्रेमचंद की कहानी ‘ईदगाह’ पर नाटक लिखने और खेलने के जुर्म में रजिया सज्जाद ज़हीर पर मुकदमा दर्ज़ हुआ जिसके बाद अदालत में फैसला आया कि कलाकारों, लेखकों को अभिव्यक्ति की आज़ादी होनी चाहिए । “अस्मिता के सवाल, संघर्ष और आदिवासी” विषय पर विमर्श सत्र और आदिवासी कविता पाठ का संचालन डॉ. सुनीता देवदूत सोरेन ने किया। युवा कवियत्री जसिंता केरकेट्टा ने बुलंद कविता – ‘राष्ट्रवाद’ से सत्र शुरु किया : जब मेरा पड़ोसी मेरे खून का प्यासा हो गया मैं समझ गया राष्ट्रवाद आ गया अनुज लुगुन, जमुना बीनी, नीतिशा खलको. चन्द्रमोहन किस्कू, श्याम चन्द्र टुडू और महादेव टोप्पो ने कवितायेँ सुनाईं. डॉ. सुनीता ने भी अपनी कविताओं का पाठ किया. इसके पश्चात हुए विमर्श में वक्ताओं ने काफी कड़े प्रश्न उठाए । जमुना बीनी ने उत्तर पूर्व के आदिवासियों के सांस्कृतिक अस्मिता और आस्तित्व पर हमलों की बात की. आदिवासी कविता को मूलतः अस्मिता की खोज बताते हुए ही अनुज लुगुन ने अस्मितावादी आंदोलन (अस्मिता का संघर्ष) और प्रगतिशीलों के आंदोलन(सर्वहारा वर्ग का संघर्ष) में एकजुटता महत्वपूर्ण होने की बात रखी । जसिंता केरकेट्टा के अनुसार, पहाड़, जंगल लोगों से वो जज्बा लेना चाहिए, वो सीखना चाहिए और ऐसी धरती जहाँ पे मनुष्य और मनुष्यता बची रहे... हमें उसी दिशा में बढ़ना चाहिए. नीतिशा खलको ने कहा आदिवासी अस्मिता के सवाल की जब हम बात कर रहे हैं, तो हमें इनके लोकगीतों के पास जाके बात करनी होगी, सम्वाद करना होगा. आदिवासी सभ्यता के अस्तित्व पर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एवं सांस्कृतिक साम्राज्यवाद को खतरा माना गया । महादेव टोप्पो जी ने प्रश्न उठाया कि ये धरतीखोर और आदमखोर विकास क्यों है ? उनकी अध्यक्षता में हुआ ये सत्र प्रलेस झारखण्ड के महासचिव मिथलेश जी के धन्यवाद ज्ञापन से समाप्त हुआ । शाम्भवी प्रियदर्शना ने अगला सत्र संचालित किया जिसमें झारखण्ड इप्टा की घाटशिला इकाई द्वारा जनगीतों की प्रस्तुति हुई। आदिवासी संघर्ष का गीत 'गाँव छोड़ब नहीं' भी काफी उत्साहपूर्वक नृत्य के साथ पेश किया गया । इस के पश्चात भागीरथी प्रधान के निर्देशन में जमशेदपुर इकाई ने वीरेन डंगवाल की कविता "हमारा समाज" का नाट्य रूपांतरण पेश किया । दूसरे दिन के कार्यक्रम की शुरुआत मऊभंडार आई सी सी कम्पनी गेट स्थित शहीद बिरसा मुंडा की प्रतिमा से डॉ.भीमराव आंबेडकर चौक तक लेखकों, कवियों, रंगकर्मियों, बुद्धिजीवियों, छात्र – छात्राओं का सद्भाव, एकजुटता और सांस्कृतिक बहुलता के लिए सांस्कृतिक मार्च निकाल कर हुई. मार्च की अगुवाई इप्टा के कलाकारों ने लोकनृत्यों और वादन से की. तुम्दा. मादल, धमसा. घंटी, झांझ के साथ झूमते उत्साही कलाकारों का समूह भी देशज नृत्य करते हुए साथ चला । दूसरे दिन के पहले सत्र “प्रेमचंद की विरासत: एक परिचर्चा” में प्रेमचंद की रचनाओं, विचारों और उनके साहित्य के आज के दौर में प्रासंगिकता पर गम्भीर चर्चा हुई। डॉ• के के लाल ने प्रेमचंद के विचारों को आगे ले जाने के लिए इंटरनेट और अन्य आधुनिक माध्यमों के उपयोग का सुझाव दिया । प्रेमचंद के साहित्यक के सौन्दर्य के साथ ही 1936 में दिए गए उनके अध्यक्षीय भाषण और उनके राजनीतिक व सामाजिक नज़रिए पर गंभीर विचार य विमर्श हुआ । कृपाशंकर जी द्वारा संचालित सत्र खगेन्द्र ठाकुर जी की अध्यक्षता में हुआ, जिन्होंने प्रगतिशीलता के विचारों और नए समाज की कल्पना को ही प्रेमचंद की विरासत बताया । इसके बाद "कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जायेगी " नाम से अतिथि कवियों द्वारा हिन्दी-ऊर्दू कविता पाठ का सत्र चला जिसका संचालन सत्यम श्रीवास्तव ने किया । विभिन्न राज्यों के कवियों ने अलग-अलग ढ़ंग से अलग-अलग विषयों पर , अलग रसों की यथार्थवादी कविताओं का पाठ किया । सत्र की अध्यक्षता कर रहे अहमद बद्र साहब ने "सबके मुंह में तलवारें हैं, तलवारों पर धार नहीं है.. मैं हूँ उनकी खोज में जिनके आँगन में दीवार नहीं है " जैसे शेर सुनाकर श्रोताओं को अविभूत किया। इसके बाद प्रलेस के राज्य कार्यकारिणी की सांगठनिक बैठक हई. प्रलेस के सभी पदाधिकारी इसमें मौजूद रहे. इसका संयोजन शशि कुमार ने किया. राज्य महासचिव मिथिलेश ने प्रतिवेदन प्रस्तुत किया और उसके बाद प्रलेस झारखण्ड की ओर से कुछ प्रस्ताव व्यक्त किये गये : • झारखण्ड सरकार से अविलंब भाषा एवं साहित्य अकादमी के गठन की मांग • एक हिंदी अकादमी और झारखंडी भाषाओँ के लिए एक अलग अकादमी की स्थापना की माँग • विश्विद्यालयों एवं शिक्षण संस्थानों में पाठ्यक्रमों के साथ की जा रही छेड़ छाड़ की निंदा करते हुए ऐसी प्रवृतियों पर रोक लगाने की मांग • उन्मादी हिंसा पर अविलंब रोक लगाने की मांग • समाज में बढ़ रही हिंसक प्रवृति के विरुद्ध प्रेमभाव के प्रति पक्षधरता की वकालत करते हुए, इसका अपने लेखन व कर्म के साथ ही भौतिक भागीदारी देकर सक्रिय विरोध का संकल्प • सोनभद्र में हुए आदिवासियों के नरसंहार समेत देशभर में हुए दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यों समेत जन संघर्षों में शहीदों के प्रति श्रद्धांजली अर्पण • ऐसे नरसंहारों की निंदा करते हुए सरकार से इन पर अंकुश लगाने की मांग • एक वेबसाइट शुरू करने का संकल्प सम्मेलन के बाद गठित झारखण्ड प्रलेस की नयी समिति इस प्रकार है : संरक्षक : डॉ. खगेन्द्र ठाकुर, शशि कुमार अध्यक्ष: जयनन्दन कार्यकारी अध्यक्ष :महादेव टोप्पो महासचिव : मिथिलेश सिंह उप महासचिव : शेखर मल्लिक उपाध्यक्ष : अहमद बद्र , राकेश मिश्र, रामनंदन सिंह, पंकज मित्र और डॉ. सुनीता देवदूत सोरेन सचिव मंडल : प्रवीण परिमल, अर्पिता श्रीवास्तव , नुदरत नवाज़, कृपाशंकर और के के लाल कोषाध्यक्ष :भारती कार्यकारिणी :पंकज श्रीवस्तव, मुकेश कुमार, सूरज श्रीवास्तव, विनय कुमार, नियाज़ अख्तर, विजय पियूष, विनय सौरभ, कमल, संतोष कुमार और शिवशंकर - रिपोर्ट : सत्यम
कुछ बातें जो रह जाती हैं कभी मन में, अनकही- अनसुनी... शब्दों के माध्यम से रखी जा सकती हैं,बरक्स... मेरे-तेरे मन की कई बातें... कई सारे अनुभव, कई सारे स्पंदन, कई सारे घाव और मरहम... व्यक्त होते हैं शब्दों के माध्यम से... मेरा मुझी से है साक्षात्कार, शब्दों के माध्यम से... तू भी मेरे मनमीत, है साकार... शब्दों के माध्यम से...
गठरी...
25 मई
(1)
३१ जुलाई
(1)
अण्णाभाऊ साठे जन्मशती वर्ष
(1)
अभिव्यक्ति की आज़ादी
(3)
अरुंधती रॉय
(1)
अरुण कुमार असफल
(1)
आदिवासी
(2)
आदिवासी महिला केंद्रित
(1)
आदिवासी संघर्ष
(1)
आधुनिक कविता
(3)
आलोचना
(1)
इंदौर
(1)
इंदौर प्रलेसं
(9)
इप्टा
(4)
इप्टा - इंदौर
(1)
इप्टा स्थापना दिवस
(1)
उपन्यास साहित्य
(1)
उर्दू में तरक्कीपसंद लेखन
(1)
उर्दू शायरी
(1)
ए. बी. बर्धन
(1)
एटक शताब्दी वर्ष
(1)
एम् एस सथ्यू
(1)
कम्युनिज़्म
(1)
कविता
(40)
कश्मीर
(1)
कहानी
(7)
कामरेड पानसरे
(1)
कार्ल मार्क्स
(1)
कार्ल मार्क्स की 200वीं जयंती
(1)
कालचिती
(1)
किताब
(2)
किसान
(1)
कॉम. विनीत तिवारी
(6)
कोरोना वायरस
(1)
क्यूबा
(1)
क्रांति
(3)
खगेन्द्र ठाकुर
(1)
गज़ल
(5)
गरम हवा
(1)
गुंजेश
(1)
गुंजेश कुमार मिश्रा
(1)
गौहर रज़ा
(1)
घाटशिला
(3)
घाटशिला इप्टा
(2)
चीन
(1)
जमशेदपुर
(1)
जल-जंगल-जमीन की लड़ाई
(1)
जान संस्कृति दिवस
(1)
जाहिद खान
(2)
जोश मलीहाबादी
(1)
जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल स्टडीज
(1)
ज्योति मल्लिक
(1)
डॉ. कमला प्रसाद
(3)
डॉ. रसीद जहाँ
(1)
तरक्कीपसंद शायर
(1)
तहरीर चौक
(1)
ताजी कहानी
(4)
दलित
(2)
धूमिल
(1)
नज़्म
(8)
नागार्जुन
(1)
नागार्जुन शताब्दी वर्ष
(1)
नारी
(3)
निर्मला पुतुल
(1)
नूर जहीर
(1)
परिकथा
(1)
पहल
(1)
पहला कविता समय सम्मान
(1)
पाश
(1)
पूंजीवाद
(1)
पेरिस कम्यून
(1)
प्रकृति
(3)
प्रगतिशील मूल्य
(2)
प्रगतिशील लेखक संघ
(4)
प्रगतिशील साहित्य
(3)
प्रगतिशील सिनेमा
(1)
प्रलेस
(2)
प्रलेस घाटशिला इकाई
(5)
प्रलेस झारखंड राज्य सम्मेलन
(1)
प्रलेसं
(12)
प्रलेसं-घाटशिला
(3)
प्रेम
(17)
प्रेमचंद
(1)
प्रेमचन्द जयंती
(1)
प्रो. चमन लाल
(1)
प्रोफ. चमनलाल
(1)
फिदेल कास्त्रो
(1)
फेसबुक
(1)
फैज़ अहमद फैज़
(2)
बंगला
(1)
बंगाली साहित्यकार
(1)
बेटी
(1)
बोल्शेविक क्रांति
(1)
भगत सिंह
(1)
भारत
(1)
भारतीय नारी संघर्ष
(1)
भाषा
(3)
भीष्म साहनी
(3)
मई दिवस
(1)
महादेव खेतान
(1)
महिला दिवस
(1)
महेश कटारे
(1)
मानवता
(1)
मार्क्सवाद
(1)
मिथिलेश प्रियदर्शी
(1)
मिस्र
(1)
मुक्तिबोध
(1)
मुक्तिबोध जन्मशती
(1)
युवा
(17)
युवा और राजनीति
(1)
रचना
(6)
रूसी क्रांति
(1)
रोहित वेमुला
(1)
लघु कथा
(1)
लेख
(3)
लैटिन अमेरिका
(1)
वर्षा
(1)
वसंत
(1)
वामपंथी आंदोलन
(1)
वामपंथी विचारधारा
(1)
विद्रोह
(16)
विनीत तिवारी
(2)
विभाजन पर फ़िल्में
(1)
विभूति भूषण बंदोपाध्याय
(1)
व्यंग्य
(1)
शमशेर बहादुर सिंह
(3)
शेखर
(11)
शेखर मल्लिक
(3)
समकालीन तीसरी दुनिया
(1)
समयांतर पत्रिका
(1)
समसामयिक
(8)
समाजवाद
(2)
सांप्रदायिकता
(1)
साम्प्रदायिकता
(1)
सावन
(1)
साहित्य
(6)
साहित्यिक वृतचित्र
(1)
सीपीआई
(1)
सोशल मीडिया
(1)
स्त्री
(18)
स्त्री विमर्श
(1)
स्मृति सभा
(1)
स्वास्थ्य सेवाओं का राष्ट्रीयकरण
(1)
हरिशंकर परसाई
(2)
हिंदी
(42)
हिंदी कविता
(41)
हिंदी साहित्य
(78)
हिंदी साहित्य में स्त्री-पुरुष
(3)
ह्यूगो
(1)
गुरुवार, 12 सितंबर 2019
"काफिला तो चले..."
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें