8 अप्रैल 2018। इंदौर (मध्य प्रदेश)। प्रगतिशील लेखक संघ के स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर सिमरोल के सागरपैसा गाँव में किसानों, मेहनतकशों और मजदूरों के साथ उनकी समस्या पर परिचर्चा की।
प्रधानमंत्री सड़क योजना को पन्द्रह साल होने को आए हैं लेकिन अभी तक कोई भी सड़क सागरपैसा गाँव नहीं पहुँच सकी। गर्मी आते ही सिमरोल के जंगल सूखे पत्तों से भर जाते हैं। मुख्य सड़क को छोड़कर जब हम इन्हीं जंगलों से होते हुए तकरीबन दस किलोमीटर कच्ची, उबड़-खाबड़ सड़क पर चलते हैं तब जाकर आदिवासी बहुल गाँव सागरपैसा आता है। गाँव के कुछ बाशिंदे आस-पास के बड़े किसानों के यहाँ खेतिहर मजदूरी करते हैं तो कुछ पास के शहरों में मजदूरी।
तेज़ धूप, गर्म हवाएँ, कच्ची सड़क और मोटर साइकिल पर युवा तो तूफान(गाड़ी) में उम्रदराज साथियों का उत्साह। बीच की पीढ़ी नदारत थी लेकिन हम सब दोस्त बन गए थे।
कौन कहता है कि युवा और किशोर अपनी मस्ती में मग्न रहते हैं। हमारे साथ शामिल इन कमसिन उम्र के बाशिंदों को पता था कि वो कहाँ, किस उद्देश्य से और किन लोगों के बीच जा रहे हैं। और उंन्होने अपना किरदार बखूबी निभाया भी।
सफदर हाशमी द्वारा लिखे गीत पढ़ना-लिखना सीखो से जनविकास सोसायटी पालदा के किशोर साथियों ने कार्यक्रम का आगाज़ किया और नुक्कड़ नाटक के जरिए किसानों की समस्याओं पर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश और किसानों की माँगों को लोगों के सामने रखा। और अदम गोंडवी रचित जनगीत "दिल पर रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है" के बाद गुलरेज खान के निर्देशन में प्रेमचंद की कहानी कफ़न पर नुक्कड़ नाटक वर्चुअल वॉइस के युवाओं द्वारा खेल गया।
कॉ हरिनारायण टेलर, गाँव के मुखिया हँसराजजी और दिनेश के सहयोग से गाँव के विद्यालय के सामने ग्रामवासियों के साथ कॉ एस के दुबे, कॉ कैलाश गोठानिया, कॉ अरविंद पोरवाल, रामआसरे पांडे, केसरीसिंह चिडार, शोभना जोशी, सुलभा लागू, कामना शर्मा, सारिका श्रीवास्तव बातचीत करके उनकी परेशानियों, दिक्कतों से रूबरू हुए।
मंदसौर प्रलेसं से कॉ हरनाम सिंह विशेष रूप से इस परिचर्चा में शामिल होने मंदसौर से आए। उन्होंने मंदसौर किसान आंदोलन की जानकारी देते हुए लोगों को बताया की जब नगदी फसल को लगातार उचित मूल्य नहीं मिला और किसान घाटे में जाने लगे तब उसे सड़क पर आना पड़ा। जिससे राजनीतिक फायदा उठाने के लिए गलत स्वरूप दे दिया गया। जिसे राजनीतिक साजिश रचकर गलत स्वरूप दे दिया गया। जहाँ महाराष्ट्र में इतने सारे किसान संगठित और संयमित रहे वहीं मध्य प्रदेश के मंदसौर का किसान आंदोलन राजनीतिक साजिश का शिकार बना डित गया।
कॉ अरविंद पोरवाल ने किसानों को सम्बोधित कर कहा कि वर्तमान में किसान आंदोलन केवल बड़े किसानों का आंदोलन रह गया है। 85 फीसदी छोटा किसान जो अब किसान न होकर केवल मजदूर रह गया है वो तो केवल अपने खाने लायक अनाज उपजा पाता है। उसे किसान आंदोलन की मांगों से न तो कोई फायदा है और न ही कोई लेना-देना। सागरपैसा गाँव के किसानों की समस्याएँ अच्छी शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था न होने औऱ बेरोजगारी की है। पानी की कमी से जूझ रहे लोग जो पानी की दिक्कत के कारण एक ही फसल ले पाते हैं उन्हें उचित समर्थन मूल्य के पहले पानी मिलना जरूरी है। जिससे निपटने के लिए एकजुट होकर अपना संघर्ष करना बहुत जरूरी है।
सारिका श्रीवास्तव ने संचालन करते हुए कहा कि हमारा फोकस जमीन पर हक़ के बजाए सहकारिता की खेती पर होना चाहिए। जो सबको बराबरी से काम करना भी सिखाती है। उंन्होने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश में दी गई किसानों की मांगों की जानकारी भी उपस्थित लोगों को दी।
गाँव के मुखिया हँसराज ने सबका स्वागत किया और कॉ हरिनारायण टेलर ने गाँव के इतिहास से अब तक कि जानकारी देते हुए बताया कि यह गाँव 70 के दशक में कम्युनिस्टों ने होलकर स्टेट की जमीन पर 130 आदिवासी परिवारों को बसाकर इस गाँव की नींव डाली थी।
परिचर्चा के बाद कामना शर्मा, सुलभा लागू और सारिका श्रीवास्तव ने महिलाओं से मिलकर लम्बी बातचीत की और उनकी समस्याओं को जाना।
कॉ कैलाश गोठानिया इस गाँव और लोगों से पहले से परिचित थे सो संघर्ष के पुराने दिनों की यादों को ताज़ा कर अपने अधिकारों के लिए पुनः संघर्ष करने को ग्राम वासियों को प्रेरित किया।
वहीं सर्व श्री एस के दुबे, केसरी सिंह चिडार, रामआसरे पांडे, हरनाम सिंह जी ने पुरुषों के साथ संवाद बनाया।
कार्यक्रम के अंत में आभार माना कॉ एस के दुबे और कार्यक्रम का संचालन सारिका ने किया।
सारिका श्रीवास्तव
प्रधानमंत्री सड़क योजना को पन्द्रह साल होने को आए हैं लेकिन अभी तक कोई भी सड़क सागरपैसा गाँव नहीं पहुँच सकी। गर्मी आते ही सिमरोल के जंगल सूखे पत्तों से भर जाते हैं। मुख्य सड़क को छोड़कर जब हम इन्हीं जंगलों से होते हुए तकरीबन दस किलोमीटर कच्ची, उबड़-खाबड़ सड़क पर चलते हैं तब जाकर आदिवासी बहुल गाँव सागरपैसा आता है। गाँव के कुछ बाशिंदे आस-पास के बड़े किसानों के यहाँ खेतिहर मजदूरी करते हैं तो कुछ पास के शहरों में मजदूरी।
तेज़ धूप, गर्म हवाएँ, कच्ची सड़क और मोटर साइकिल पर युवा तो तूफान(गाड़ी) में उम्रदराज साथियों का उत्साह। बीच की पीढ़ी नदारत थी लेकिन हम सब दोस्त बन गए थे।
कौन कहता है कि युवा और किशोर अपनी मस्ती में मग्न रहते हैं। हमारे साथ शामिल इन कमसिन उम्र के बाशिंदों को पता था कि वो कहाँ, किस उद्देश्य से और किन लोगों के बीच जा रहे हैं। और उंन्होने अपना किरदार बखूबी निभाया भी।
सफदर हाशमी द्वारा लिखे गीत पढ़ना-लिखना सीखो से जनविकास सोसायटी पालदा के किशोर साथियों ने कार्यक्रम का आगाज़ किया और नुक्कड़ नाटक के जरिए किसानों की समस्याओं पर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश और किसानों की माँगों को लोगों के सामने रखा। और अदम गोंडवी रचित जनगीत "दिल पर रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है" के बाद गुलरेज खान के निर्देशन में प्रेमचंद की कहानी कफ़न पर नुक्कड़ नाटक वर्चुअल वॉइस के युवाओं द्वारा खेल गया।
कॉ हरिनारायण टेलर, गाँव के मुखिया हँसराजजी और दिनेश के सहयोग से गाँव के विद्यालय के सामने ग्रामवासियों के साथ कॉ एस के दुबे, कॉ कैलाश गोठानिया, कॉ अरविंद पोरवाल, रामआसरे पांडे, केसरीसिंह चिडार, शोभना जोशी, सुलभा लागू, कामना शर्मा, सारिका श्रीवास्तव बातचीत करके उनकी परेशानियों, दिक्कतों से रूबरू हुए।
मंदसौर प्रलेसं से कॉ हरनाम सिंह विशेष रूप से इस परिचर्चा में शामिल होने मंदसौर से आए। उन्होंने मंदसौर किसान आंदोलन की जानकारी देते हुए लोगों को बताया की जब नगदी फसल को लगातार उचित मूल्य नहीं मिला और किसान घाटे में जाने लगे तब उसे सड़क पर आना पड़ा। जिससे राजनीतिक फायदा उठाने के लिए गलत स्वरूप दे दिया गया। जिसे राजनीतिक साजिश रचकर गलत स्वरूप दे दिया गया। जहाँ महाराष्ट्र में इतने सारे किसान संगठित और संयमित रहे वहीं मध्य प्रदेश के मंदसौर का किसान आंदोलन राजनीतिक साजिश का शिकार बना डित गया।
कॉ अरविंद पोरवाल ने किसानों को सम्बोधित कर कहा कि वर्तमान में किसान आंदोलन केवल बड़े किसानों का आंदोलन रह गया है। 85 फीसदी छोटा किसान जो अब किसान न होकर केवल मजदूर रह गया है वो तो केवल अपने खाने लायक अनाज उपजा पाता है। उसे किसान आंदोलन की मांगों से न तो कोई फायदा है और न ही कोई लेना-देना। सागरपैसा गाँव के किसानों की समस्याएँ अच्छी शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था न होने औऱ बेरोजगारी की है। पानी की कमी से जूझ रहे लोग जो पानी की दिक्कत के कारण एक ही फसल ले पाते हैं उन्हें उचित समर्थन मूल्य के पहले पानी मिलना जरूरी है। जिससे निपटने के लिए एकजुट होकर अपना संघर्ष करना बहुत जरूरी है।
सारिका श्रीवास्तव ने संचालन करते हुए कहा कि हमारा फोकस जमीन पर हक़ के बजाए सहकारिता की खेती पर होना चाहिए। जो सबको बराबरी से काम करना भी सिखाती है। उंन्होने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश में दी गई किसानों की मांगों की जानकारी भी उपस्थित लोगों को दी।
गाँव के मुखिया हँसराज ने सबका स्वागत किया और कॉ हरिनारायण टेलर ने गाँव के इतिहास से अब तक कि जानकारी देते हुए बताया कि यह गाँव 70 के दशक में कम्युनिस्टों ने होलकर स्टेट की जमीन पर 130 आदिवासी परिवारों को बसाकर इस गाँव की नींव डाली थी।
परिचर्चा के बाद कामना शर्मा, सुलभा लागू और सारिका श्रीवास्तव ने महिलाओं से मिलकर लम्बी बातचीत की और उनकी समस्याओं को जाना।
कॉ कैलाश गोठानिया इस गाँव और लोगों से पहले से परिचित थे सो संघर्ष के पुराने दिनों की यादों को ताज़ा कर अपने अधिकारों के लिए पुनः संघर्ष करने को ग्राम वासियों को प्रेरित किया।
वहीं सर्व श्री एस के दुबे, केसरी सिंह चिडार, रामआसरे पांडे, हरनाम सिंह जी ने पुरुषों के साथ संवाद बनाया।
कार्यक्रम के अंत में आभार माना कॉ एस के दुबे और कार्यक्रम का संचालन सारिका ने किया।
सारिका श्रीवास्तव
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