माँ के गर्भ से ही लड़की का संघर्ष शुरू हो जाता है – डॉ. सुनीता
भारतीय महिला फ़ेडरेशन, घाटशिला इकाई ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
8 मार्च, 2018. घाटशिला. भारतीय महिला फ़ेडरेशन कि घाटशिला इकाई द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में महिलाओं के अधिकारों और उसकी सामाजिक अवस्था को रेखांकित करते हुए उस ध्यान दिए जाने की बात कही गयी. आई.सी.सी. मजदूर यूनियन, मऊभंडार के कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत समूह गीत "औरतें उठीं नहीं तो ज़ुल्म बढ़ता जायेगा” से हुई जिसे स्वर दिया छिता हांसदा, दीपाली, लतिका और रुपाली ने. सचिव ज्योति मल्लिक ने अपने वक्तव्य फ़ेडरेशन के उद्येश्यों की चर्चा करते हुए कहा कि भारतीय महिला फ़ेडरेशन महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक समता की पक्षधर है. लिंग आधारित भेदभाव, घरेलू और यौन हिंसा के विरुद्ध आवाज़ उठाने की जरूरत है जिसे हम एक जुट होकर उठा सकते हैं. शिक्षा, सामान वेतन और समय पर वेतन, मातृत्व अवकाश, सामाजिक सुरक्षा, महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण आदि कई मुद्दे हैं, जहाँ स्त्रियां भेदभाव की शिकार और वंचित हैं. हमें एक बराबरी का समाज बनाने के लिए महिलाओं को सम्मान और अधिकार देना होगा. जब तक एसा नहीं होता, हमारा संघर्ष समाज और व्यवस्था से रहेगा. लड़कियां
आगे बढ़ सकती हैं। वे अनथक बढ़ती हैं। उन्होंने खुद के उदहारण द्वारा बताया कि विवाह पूर्व वे भी अपने परिवार में सिमटी हुई थीं लेकिन विवाहोपरांत उन्हें उनका स्पेस दिया गया तो वे बढ़ी हैं. नौकरी कर रही हैं, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा ले रही हैं.
कार्यक्रम में स्त्री विषयक कविताओं का पाठ किया गया. सह सचिव लतिका पात्र ने रंजना जयसवाल की कविता "बागी" और निर्मला पुतुल की "क्या हूँ मैं तुम्हारे लिये" पढ़ी तो छिता हांसदा ने अपनी स्वरचित संथाली कविता "मिरु चेड़ें" सुनाई. श्वेता दुबे ने फ़िल्म लेखिका मधु जी की कविता 'बचा लेती है' पढ़ा. वहीँ स्कूल की बच्चियों ने भी कविता पाठ में सहभागिता करते हुए कुछ चुनिंदा कविताओं का पाठ किया. दीपाली साह ने कात्यायनी की कविता "इस स्त्री से डरो" और मधुरिमा मजुमदार ने तस्लीमा नसरीन की कविताएं "चरित्र" और "प्रेरित नारियां" सुनाई. शेखर मल्लिक ने मजाज़ की नज़्म "नौजवान ख़ातून से" और गौहर रज़ा की नज़्म "दुआ" सुनाई. और कहा कि कविता तेज मार करती है.
संवाद सत्र में इकाई की सचिव ज्योति मल्लिक ने कहा कि हम स्त्रियों के सामने सदियों से चुनौतियां बनी हुई हैं. इधर कुछ दशकों से जरुर महिलाओं ने शिक्षा के सहारे अपनी स्थिति को बेहतर किया लेकिन आम स्त्री आज भी शोषित है, दोयम दर्जे की नागरिक है. हमें समझना और समझाना है कि स्त्री भी मनुष्य है. सामान अधिकारों को हासिल करने की चुनौती हमारे सामने है.
उपाध्यक्षा सुनैन हांसदा ने स्त्री अधिकारों की वास्तविक स्थिति पर अपने विचार रखे. कानून और कागज पर महिलाओं को दिए गए तमाम अधिकारों के बारे में स्त्री नहीं जानती या उसे जानने दिया जाता है. 33 प्रतिशत भी हमलोग ने काफी लड़ाई से हासिल किया. हमें पैतृक सम्पति पर भी आसानी से अधिकार नहीं मिल पाता. घर बाहर के कई तरह का शोषण और संघर्ष है. यह बिडम्वना है. निर्भया काण्ड के बाद स्त्रियों की सुरक्षा के बाबत कई कानून बने हैं लेकिन आज भी स्त्री यौन शोषण झेल रही है, उसकी हत्या हो रही है. भारत में बलात्कार का दर सबसे भयानक है और यौन हिंसा प्राय: हर लड़की और स्त्री झेलती ही है. घर और बाहर हम जिस माहौल में रहते हैं वह हमलोगों के लिए संघर्षशील है. अधिकारों को भेदभाव पूर्वक छिनना हमारे समाज में आम बात है और कोई उधर ध्यान नहीं देता. महिलाओं की सुरक्षा ही नहीं, रोजगार और स्वतन्त्रता के जो संवैधानिक अधिकार हैं, वे भी उसे नहीं दिए जाते. कुछ उच्च वर्ग की महिलाओं की समृद्धि आम भारतीय महिलाओं की वास्तविक स्थिति का द्योतक नहीं है.
शिक्षिका नीलिमा सरकार ने अपने माता पिता को अपने आज़ाद जीवन का श्रेय दिया. यदि उनके माता पिता उन्हें सपोर्ट नहीं करते, स्पेस नहीं देते तो वे आज इस सफलता तक नहीं पहुँचती. उन्हें याद करते हुए वे भावुक हो गईं.
संचालन कर रही छिता हांसदा ने अपने जीवन अनुभव बताते हुए कहा कि समाज में लोग किस प्रकार चीजें समझते नहीं और उन्हें सिखाने को मेहनत करना पड़ता है. उन्होंने संथाली में गीत "एहो आदिम एभेनो मे" भी सुनाया. स्थानीय महिला महाविद्यालय की पुस्तकालयाध्यक्षा राखी पूर्णिमा मजुमदार ने "कोमल है कमज़ोर नहीं तू" गीत प्रस्तुत किया.
समाज और स्त्री के सम्बन्धों और सच्चाई पर लतिका पात्र ने अपने विचार रखे. रोज रोज एक लड़की एक औरत किस प्रकार समाज से जूझती है. उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए उसके गाँव से मनरेगा की मजदूरिनें आने वाली थीं लेकिन वापसी के लिए सवारी गाड़ी की उपलब्धता का संकट रहता है इसलिए वे आ नहीं सकीं. ऐसी और भी समस्याएं हैं.
प्रोफ. पुष्पा गुप्ता ने कहा कि फेडरेशन के सामने चुनौतियाँ हैं. लेकिन ये युवा लोग करेंगे. उन्होंने अपने जीवन के अनुभव बताये । छात्रा रुपाली साह ने भी अपनी बात रखी.
अध्यक्ष डॉ सुनीता सोरेन ने कहा कि माँ के गर्भ से ही लड़की का संघर्ष शुरू हो जाता है. घर और बाहर दोनों जगह लड़कियां संघर्ष झेलती हैं। आज की स्त्री को समाज की दोहरी मानसिकता और दोहरे चरित्र का सामना करना पड़ता है, ऐसी मानसिकता से स्त्री को खुद को बचाना है. आज की नारी को जिम्मेदार माँ बनना होगा चूंकि वही बच्चे की गुरु होती है. एक सभ्य और समतामूलक समाज के गुण बच्चों में माँ दे सकती हैं. महिलाएं अपने सन्तानों में समता की भावना डालें, जिससे स्त्री के प्रति मर्द की सोच बदलना सम्भव हो सकेगा. हम आज एक दूसरे का साथ देंगे तो हर मायने में बराबरी का अधिकार मिलेगा. आप आज यहां आये आपकी सोच की जीत है, आप घर से बाहर काम कर रही है ये भी आपकी जीत है. शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है. एक मर्द केवल अपने लिए शिक्षित होता है, लेकिन महिला एक समाज को शिक्षित कर सकती है. एक डॉ होने नाते कहूंगी कि आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें. हमें एक दूसरे का साथ देना होगा. उन्होंने अपनी कुछ पंक्तियाँ भी सुनायीं,
नारी तुम वरदान हो
नारी तुम प्रकाश हो
नारी तुम कविता हो
नारी तुम सरिता हो
तुम ही श्रष्टि हो
तुम सम्पूर्ण हो
कार्यक्रम में घाटशिला के गांवों की मनरेगा मजदूरिन, आई सी सी की महिला श्रमिक और कर्मचारी, बड़ी संख्या में आस पास मोहल्ले की स्त्रियाँ और युवतियां मौजूद थीं. नारीवादी कविता पोस्टर प्रदर्शनी भी की गयी. सीरिया में बमबारी से मारे गए निर्दोष बच्चों, महिलाओं के लिए इस बीच एक मिनट का मौन रखा गया.
अंत में सभी ने मिलकर "हम होंगे कामयाब गाया" जो एकजुटता और विश्वास का संकेत देता है.
सचिव ज्योति मल्लिक ने धन्यवाद ज्ञापन दिया, कहा कि साथी साथ आयें और फेडरेशन को मजबूत करें. अब हम जो महिला साथी हम तक नहीं पहुँच पाए, उन तक जायेंगे. यही हमारी योजना है.
कार्यक्रम का संचालन छिता हांसदा ने किया.
भारतीय महिला फ़ेडरेशन की घाटशिला इकाई ने इस कार्यक्रम के साथ अपनी गतिविधियों का आगाज़ किया है. (रिपोर्ट : शेखर मल्लिक)
भारतीय महिला फ़ेडरेशन, घाटशिला इकाई ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
8 मार्च, 2018. घाटशिला. भारतीय महिला फ़ेडरेशन कि घाटशिला इकाई द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में महिलाओं के अधिकारों और उसकी सामाजिक अवस्था को रेखांकित करते हुए उस ध्यान दिए जाने की बात कही गयी. आई.सी.सी. मजदूर यूनियन, मऊभंडार के कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत समूह गीत "औरतें उठीं नहीं तो ज़ुल्म बढ़ता जायेगा” से हुई जिसे स्वर दिया छिता हांसदा, दीपाली, लतिका और रुपाली ने. सचिव ज्योति मल्लिक ने अपने वक्तव्य फ़ेडरेशन के उद्येश्यों की चर्चा करते हुए कहा कि भारतीय महिला फ़ेडरेशन महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक समता की पक्षधर है. लिंग आधारित भेदभाव, घरेलू और यौन हिंसा के विरुद्ध आवाज़ उठाने की जरूरत है जिसे हम एक जुट होकर उठा सकते हैं. शिक्षा, सामान वेतन और समय पर वेतन, मातृत्व अवकाश, सामाजिक सुरक्षा, महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण आदि कई मुद्दे हैं, जहाँ स्त्रियां भेदभाव की शिकार और वंचित हैं. हमें एक बराबरी का समाज बनाने के लिए महिलाओं को सम्मान और अधिकार देना होगा. जब तक एसा नहीं होता, हमारा संघर्ष समाज और व्यवस्था से रहेगा. लड़कियां
आगे बढ़ सकती हैं। वे अनथक बढ़ती हैं। उन्होंने खुद के उदहारण द्वारा बताया कि विवाह पूर्व वे भी अपने परिवार में सिमटी हुई थीं लेकिन विवाहोपरांत उन्हें उनका स्पेस दिया गया तो वे बढ़ी हैं. नौकरी कर रही हैं, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा ले रही हैं.
कार्यक्रम में स्त्री विषयक कविताओं का पाठ किया गया. सह सचिव लतिका पात्र ने रंजना जयसवाल की कविता "बागी" और निर्मला पुतुल की "क्या हूँ मैं तुम्हारे लिये" पढ़ी तो छिता हांसदा ने अपनी स्वरचित संथाली कविता "मिरु चेड़ें" सुनाई. श्वेता दुबे ने फ़िल्म लेखिका मधु जी की कविता 'बचा लेती है' पढ़ा. वहीँ स्कूल की बच्चियों ने भी कविता पाठ में सहभागिता करते हुए कुछ चुनिंदा कविताओं का पाठ किया. दीपाली साह ने कात्यायनी की कविता "इस स्त्री से डरो" और मधुरिमा मजुमदार ने तस्लीमा नसरीन की कविताएं "चरित्र" और "प्रेरित नारियां" सुनाई. शेखर मल्लिक ने मजाज़ की नज़्म "नौजवान ख़ातून से" और गौहर रज़ा की नज़्म "दुआ" सुनाई. और कहा कि कविता तेज मार करती है.
संवाद सत्र में इकाई की सचिव ज्योति मल्लिक ने कहा कि हम स्त्रियों के सामने सदियों से चुनौतियां बनी हुई हैं. इधर कुछ दशकों से जरुर महिलाओं ने शिक्षा के सहारे अपनी स्थिति को बेहतर किया लेकिन आम स्त्री आज भी शोषित है, दोयम दर्जे की नागरिक है. हमें समझना और समझाना है कि स्त्री भी मनुष्य है. सामान अधिकारों को हासिल करने की चुनौती हमारे सामने है.
उपाध्यक्षा सुनैन हांसदा ने स्त्री अधिकारों की वास्तविक स्थिति पर अपने विचार रखे. कानून और कागज पर महिलाओं को दिए गए तमाम अधिकारों के बारे में स्त्री नहीं जानती या उसे जानने दिया जाता है. 33 प्रतिशत भी हमलोग ने काफी लड़ाई से हासिल किया. हमें पैतृक सम्पति पर भी आसानी से अधिकार नहीं मिल पाता. घर बाहर के कई तरह का शोषण और संघर्ष है. यह बिडम्वना है. निर्भया काण्ड के बाद स्त्रियों की सुरक्षा के बाबत कई कानून बने हैं लेकिन आज भी स्त्री यौन शोषण झेल रही है, उसकी हत्या हो रही है. भारत में बलात्कार का दर सबसे भयानक है और यौन हिंसा प्राय: हर लड़की और स्त्री झेलती ही है. घर और बाहर हम जिस माहौल में रहते हैं वह हमलोगों के लिए संघर्षशील है. अधिकारों को भेदभाव पूर्वक छिनना हमारे समाज में आम बात है और कोई उधर ध्यान नहीं देता. महिलाओं की सुरक्षा ही नहीं, रोजगार और स्वतन्त्रता के जो संवैधानिक अधिकार हैं, वे भी उसे नहीं दिए जाते. कुछ उच्च वर्ग की महिलाओं की समृद्धि आम भारतीय महिलाओं की वास्तविक स्थिति का द्योतक नहीं है.
शिक्षिका नीलिमा सरकार ने अपने माता पिता को अपने आज़ाद जीवन का श्रेय दिया. यदि उनके माता पिता उन्हें सपोर्ट नहीं करते, स्पेस नहीं देते तो वे आज इस सफलता तक नहीं पहुँचती. उन्हें याद करते हुए वे भावुक हो गईं.
संचालन कर रही छिता हांसदा ने अपने जीवन अनुभव बताते हुए कहा कि समाज में लोग किस प्रकार चीजें समझते नहीं और उन्हें सिखाने को मेहनत करना पड़ता है. उन्होंने संथाली में गीत "एहो आदिम एभेनो मे" भी सुनाया. स्थानीय महिला महाविद्यालय की पुस्तकालयाध्यक्षा राखी पूर्णिमा मजुमदार ने "कोमल है कमज़ोर नहीं तू" गीत प्रस्तुत किया.
समाज और स्त्री के सम्बन्धों और सच्चाई पर लतिका पात्र ने अपने विचार रखे. रोज रोज एक लड़की एक औरत किस प्रकार समाज से जूझती है. उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए उसके गाँव से मनरेगा की मजदूरिनें आने वाली थीं लेकिन वापसी के लिए सवारी गाड़ी की उपलब्धता का संकट रहता है इसलिए वे आ नहीं सकीं. ऐसी और भी समस्याएं हैं.
प्रोफ. पुष्पा गुप्ता ने कहा कि फेडरेशन के सामने चुनौतियाँ हैं. लेकिन ये युवा लोग करेंगे. उन्होंने अपने जीवन के अनुभव बताये । छात्रा रुपाली साह ने भी अपनी बात रखी.
अध्यक्ष डॉ सुनीता सोरेन ने कहा कि माँ के गर्भ से ही लड़की का संघर्ष शुरू हो जाता है. घर और बाहर दोनों जगह लड़कियां संघर्ष झेलती हैं। आज की स्त्री को समाज की दोहरी मानसिकता और दोहरे चरित्र का सामना करना पड़ता है, ऐसी मानसिकता से स्त्री को खुद को बचाना है. आज की नारी को जिम्मेदार माँ बनना होगा चूंकि वही बच्चे की गुरु होती है. एक सभ्य और समतामूलक समाज के गुण बच्चों में माँ दे सकती हैं. महिलाएं अपने सन्तानों में समता की भावना डालें, जिससे स्त्री के प्रति मर्द की सोच बदलना सम्भव हो सकेगा. हम आज एक दूसरे का साथ देंगे तो हर मायने में बराबरी का अधिकार मिलेगा. आप आज यहां आये आपकी सोच की जीत है, आप घर से बाहर काम कर रही है ये भी आपकी जीत है. शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है. एक मर्द केवल अपने लिए शिक्षित होता है, लेकिन महिला एक समाज को शिक्षित कर सकती है. एक डॉ होने नाते कहूंगी कि आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें. हमें एक दूसरे का साथ देना होगा. उन्होंने अपनी कुछ पंक्तियाँ भी सुनायीं,
नारी तुम वरदान हो
नारी तुम प्रकाश हो
नारी तुम कविता हो
नारी तुम सरिता हो
तुम ही श्रष्टि हो
तुम सम्पूर्ण हो
कार्यक्रम में घाटशिला के गांवों की मनरेगा मजदूरिन, आई सी सी की महिला श्रमिक और कर्मचारी, बड़ी संख्या में आस पास मोहल्ले की स्त्रियाँ और युवतियां मौजूद थीं. नारीवादी कविता पोस्टर प्रदर्शनी भी की गयी. सीरिया में बमबारी से मारे गए निर्दोष बच्चों, महिलाओं के लिए इस बीच एक मिनट का मौन रखा गया.
अंत में सभी ने मिलकर "हम होंगे कामयाब गाया" जो एकजुटता और विश्वास का संकेत देता है.
सचिव ज्योति मल्लिक ने धन्यवाद ज्ञापन दिया, कहा कि साथी साथ आयें और फेडरेशन को मजबूत करें. अब हम जो महिला साथी हम तक नहीं पहुँच पाए, उन तक जायेंगे. यही हमारी योजना है.
कार्यक्रम का संचालन छिता हांसदा ने किया.
भारतीय महिला फ़ेडरेशन की घाटशिला इकाई ने इस कार्यक्रम के साथ अपनी गतिविधियों का आगाज़ किया है. (रिपोर्ट : शेखर मल्लिक)
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