25 मई 2019
आज भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की घाटशिला इकाई ने इप्टा के 76वें स्थापना दिवस को जन संस्कृति दिवस के तौर पर मनाया। कार्यक्रम की शुरुआत में विषय प्रवेश कराते हुए इप्टा घाटशिला के सचिव शेखर मल्लिक ने कहा कि, इप्टा की नायक जनता है और इसी स्परिट से इप्टा अपने स्थापना काल से प्रतिरोध का रंगमंच बनी हुई है। यह 1943 में इसके स्थापना से पूर्व से ही जो कल्चरल स्क़वाड देश के अनेक जगहों, खासकर भूख से बिलखते बंगाल में जनता को अपने नाटकों से जगा ही नहीं रही थी, बल्कि इंसानियत की मिसालें पैदा कर रही थीं। बंगाल की विभीषिका, अकाल, तो वहां से इसकी शुरुआत होती है।
25 मई, 1943 को इसका पहला सम्मेलन हुआ जहां प्रो. हीरेन मुखर्जी ने आह्वान किया यह, आप सब, जो कुछ भी हमारे भीतर सबसे अच्छा है, उसे अपनी जनता के लिए अर्पित कर दें. लेखक और कलाकार आओ, आओ अभिनेता और नाटककार, तुम सारे लोग, जो हाथ या दिमाग से काम करते हो, आगे आओ और अपने आपको आज़ादी और सामाजिक न्याय का एक नया वीरत्वपूर्ण समाज बनाने के लिए समर्पित कर दो।
इप्टा में सीपीआई के प्रथम महासचिव पूरन चन्द जोशी का योगदान महत्वपूर्ण था।
हम पर एक विरासत की जिम्मेदारी है। आज इप्टा क्यों, क्योंकि आज का जो समय है उसमें हमारे सामने जो 23 मई के बाद परिस्थितियां हैं। इप्टा प्रतिरोध का मंच रहा है। शोषितों और हाशिये के लोगों कब लिए जब आप पक्ष चुनेंगे तो आपको विरोध झेलना पड़ेगा। इंसानियत के लिये हम जब खुद महसूस करते हैं कि सही क्या और गलत क्या है, झूठ और सच क्या है। तो जब हमें सही रास्ते की पहचान हो जाती है तो उस रास्ते को पकड़ कर चलना चाहिए, छोड़ नहीं देना चाहिए।
इसलिये इप्टा के साथ हम यह प्रतिरोध खड़ा करना है। राजनीति से अछूता कुछ नहीं है।
इप्टा के साथ बलराज साहनी, उत्पल दत्त, एके हंगल,रहे तो, पंडित रविशंकर, शंकर शैलेन्द्र, प्रेमधवन जिन्होंने कई देशभक्ति के गीतों की रचना की, जिन्हें रफ़ी साहब ने आवाज़ दी, चित्तो प्रसाद जैसे चित्रकार जिन्होंने इप्टा का लोगो *कॉल ऑफ द ड्रम* बनाया। सुनील जाना जैसे फ़ोटोग्राफ़र रहे। बंगाल की प्राकृतिक नहीं, बनी बनाई आपदा, जैसे आज कई चीजें बनाई जा रही हैं, का जो चित्र इन्होंने पेश किया उससे हम आज उस त्रासदी को देख समझ सकते हैं। *सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा* की धुन रविशंकर ने बनाई थी। इप्टा अपने देश से प्रेम किया है। चूंकि वह आज़ादी के संघर्ष का दौर था, इप्टा ने भी इसमें योगदान दिया है। इसलिये आज जो हमें देशद्रोही कहते हैं, उन्हें देखना चाहिए। इप्टा ने 75 वर्ष पूरे कर लिए हैं। इतने वक़्त तक हाशिये के समाज, शोषितों और उत्पीड़ितों की आवाज़ इप्टा ही बना रहा है।
सबके लिए एक सुंदर दुनिया का ख़्वाब वो साझा ख्वाब है, जिसे हर इप्टकर्मी देखता और जिता है। इसके बाद राजा(भिंचे हुए जबड़े दर्द कर रहे हैं), सत्यम (तू़फ़ानों ने कभी मात नहीं खायी और यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश), लक्ष्मी(क्रूरता!), शेखर(शीशों का मसीहा कोई नहीं), शुभम (उजले दिन जरुर आयेंगे) और कॉम. सुनीता मुर्मू (राजनीति से परहेज करनेवाले बुद्धिजीवी) ने क्रमश: अनिल राकेशी (पार्टी फ़िल्म में प्रयुक्त कविता) पाश, नवारुण भट्टाचार्य, कुमार अम्बुज, फ़ैज़, वीरेन ढंगवाल, और आतो रीनी कास्तिलो(1934 -1967) (दक्षिण अमेरिका के देश गुआटेमाला के महत्वपूर्ण क्रांतिकारी और कवि) की रचनाओं का पाठ किया।
इसके बाद इप्टा के साथियों ने जनगीतों की प्रस्तुतियां दीं। प्रेमधवन के गीत ये वक़्त की आवाज़ है मिलके चलो, कविवर कन्हैया के प्रसिद्ध गीत फिर नए संघर्ष का न्यौता मिला है और कवि यश मालवीय की कविता दबे पैरों से उजाला आ रहा है जनगीतों ने उपस्थित लोगों में वैचारिक उद्विग्नता भर दी। गीतों की प्रस्तुति में शेखर मल्लिक, ज्योति मल्लिक, श्रद्धा कुमारी, मानसी कुमारी, मल्लिका प्रधान, गणेश मुर्मू, कार्तिक चौधरी, भूमि महाकुड़, राजा, अनुज, और ए आई एस एफ़ के साथी सुनीता मुर्मू, विक्रम कुमार आदि ने स्वर दिया।
इसके बाद कार्यक्रम के दूसरे हिस्से में संवाद सत्र का सिलसिला चला। इप्टा के इतिहास और वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता व चुनौतियों पर, जिनकी चर्चा शेखर ने शुरू में कई थी, इप्टा क्यों? सत्र में परिचर्चा के अंतर्गत स्वस्थ व सारगर्भित चर्चा हुई।
युवा साथी सत्यम ने कहा कि फासीवाद के ख़िलाफ़ प्रतिरोध के जो तरीके हैं, उनमें हिंसा से ज्यादा श्रेष्ठ तरीका कला का माध्यम है।
इप्टा झारखंड के संरक्षक और वरिष्ठ रंगकर्मी शशि कुमार ने कहा, नाटक की सबसे बड़ी खूबी है कि बिना पढ़े लिखे, यानी वर्ण व्यवस्था में हाशिये के लोगों को जो ज्ञान प्राप्ति के माध्यमों से दूर रखा गया, वे भी नाटक के जरिये, जैसे सुनकर और संवाद बोलने से, ज्ञान हासिल कर सकते थे। इप्टा जीवंत संगठन है, यह जिंदा है क्योंकि इसके पीछे विचार है। नाटक करने वाला, गीत संगीत गाने वाला युवा कभी अपराधी नहीं हो सकता। यह नाटक की खूबी है। हो सकता है वह सफ़दर हाशमी या केन सरो वाइवा की तरह मारा जाय पर वह क्रिमिनल नहीं बन सकता! इप्टा कहती है कि हमारी नायक जनता है। इप्टा के साथ व्यक्तित्व का निर्माण और कैरियर का भी निर्माण भी होता है। कैफ़ी हों या संजीव कुमार, उन्होंने अपना जीवन यापन के लिए ढंग से कैरियर भी बनाया। लेकिन मूल्यों से समझौता किये बग़ैर। शशि जी ने वाकया सुनाया कि ए के हंगल साहब सेट पर राजकपूर से नाराज हो गए कि मैं कल से नहीं आऊँगा।आपके देर से आने से मेरा इप्टा का नाटक छूट गया। तो यह कमिटमेंट था।
कार्यक्रम में इप्टा घाटशिला के साथी ज्योति मल्लिक, कार्तिक चौधरी, तुहीन मंडल, बाल कलाकारों के अलावा प्रो नरेश कुमार, रवि सिंह, रंगकर्मी सुजन सरकार, सुभम, अंकित, रुपाली बारीक, लखिन्द्र प्रधान, संजीव घोष, संजय मुखी, लक्ष्मी कुदादा, साकरो मुर्मू, ए आई एस एफ़ की जमशेदपुर इकाई की उपाध्यक्ष कॉम सुनीता मुर्मू और कॉम विक्रम कुमार भी मौजूद थे।
संचालन कार्तिक चौधरी ने किया। कार्यक्रम बिल्कुल अनौपचारिक ढंग से आयोजित हुआ। बिछी हुई दरी पर घेरा बनाकर साथी बैठे और संवाद हुआ।
कार्यक्रम के उपरांत साथी सुभम के प्रश्नो और जिज्ञासाओं को संतुष्ट किया गया।
- रिपोर्ट: ज्योति मल्लिक, शेखर मल्लिक
आज भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की घाटशिला इकाई ने इप्टा के 76वें स्थापना दिवस को जन संस्कृति दिवस के तौर पर मनाया। कार्यक्रम की शुरुआत में विषय प्रवेश कराते हुए इप्टा घाटशिला के सचिव शेखर मल्लिक ने कहा कि, इप्टा की नायक जनता है और इसी स्परिट से इप्टा अपने स्थापना काल से प्रतिरोध का रंगमंच बनी हुई है। यह 1943 में इसके स्थापना से पूर्व से ही जो कल्चरल स्क़वाड देश के अनेक जगहों, खासकर भूख से बिलखते बंगाल में जनता को अपने नाटकों से जगा ही नहीं रही थी, बल्कि इंसानियत की मिसालें पैदा कर रही थीं। बंगाल की विभीषिका, अकाल, तो वहां से इसकी शुरुआत होती है।
25 मई, 1943 को इसका पहला सम्मेलन हुआ जहां प्रो. हीरेन मुखर्जी ने आह्वान किया यह, आप सब, जो कुछ भी हमारे भीतर सबसे अच्छा है, उसे अपनी जनता के लिए अर्पित कर दें. लेखक और कलाकार आओ, आओ अभिनेता और नाटककार, तुम सारे लोग, जो हाथ या दिमाग से काम करते हो, आगे आओ और अपने आपको आज़ादी और सामाजिक न्याय का एक नया वीरत्वपूर्ण समाज बनाने के लिए समर्पित कर दो।
इप्टा में सीपीआई के प्रथम महासचिव पूरन चन्द जोशी का योगदान महत्वपूर्ण था।
हम पर एक विरासत की जिम्मेदारी है। आज इप्टा क्यों, क्योंकि आज का जो समय है उसमें हमारे सामने जो 23 मई के बाद परिस्थितियां हैं। इप्टा प्रतिरोध का मंच रहा है। शोषितों और हाशिये के लोगों कब लिए जब आप पक्ष चुनेंगे तो आपको विरोध झेलना पड़ेगा। इंसानियत के लिये हम जब खुद महसूस करते हैं कि सही क्या और गलत क्या है, झूठ और सच क्या है। तो जब हमें सही रास्ते की पहचान हो जाती है तो उस रास्ते को पकड़ कर चलना चाहिए, छोड़ नहीं देना चाहिए।
इसलिये इप्टा के साथ हम यह प्रतिरोध खड़ा करना है। राजनीति से अछूता कुछ नहीं है।
इप्टा के साथ बलराज साहनी, उत्पल दत्त, एके हंगल,रहे तो, पंडित रविशंकर, शंकर शैलेन्द्र, प्रेमधवन जिन्होंने कई देशभक्ति के गीतों की रचना की, जिन्हें रफ़ी साहब ने आवाज़ दी, चित्तो प्रसाद जैसे चित्रकार जिन्होंने इप्टा का लोगो *कॉल ऑफ द ड्रम* बनाया। सुनील जाना जैसे फ़ोटोग्राफ़र रहे। बंगाल की प्राकृतिक नहीं, बनी बनाई आपदा, जैसे आज कई चीजें बनाई जा रही हैं, का जो चित्र इन्होंने पेश किया उससे हम आज उस त्रासदी को देख समझ सकते हैं। *सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा* की धुन रविशंकर ने बनाई थी। इप्टा अपने देश से प्रेम किया है। चूंकि वह आज़ादी के संघर्ष का दौर था, इप्टा ने भी इसमें योगदान दिया है। इसलिये आज जो हमें देशद्रोही कहते हैं, उन्हें देखना चाहिए। इप्टा ने 75 वर्ष पूरे कर लिए हैं। इतने वक़्त तक हाशिये के समाज, शोषितों और उत्पीड़ितों की आवाज़ इप्टा ही बना रहा है।
सबके लिए एक सुंदर दुनिया का ख़्वाब वो साझा ख्वाब है, जिसे हर इप्टकर्मी देखता और जिता है। इसके बाद राजा(भिंचे हुए जबड़े दर्द कर रहे हैं), सत्यम (तू़फ़ानों ने कभी मात नहीं खायी और यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश), लक्ष्मी(क्रूरता!), शेखर(शीशों का मसीहा कोई नहीं), शुभम (उजले दिन जरुर आयेंगे) और कॉम. सुनीता मुर्मू (राजनीति से परहेज करनेवाले बुद्धिजीवी) ने क्रमश: अनिल राकेशी (पार्टी फ़िल्म में प्रयुक्त कविता) पाश, नवारुण भट्टाचार्य, कुमार अम्बुज, फ़ैज़, वीरेन ढंगवाल, और आतो रीनी कास्तिलो(1934 -1967) (दक्षिण अमेरिका के देश गुआटेमाला के महत्वपूर्ण क्रांतिकारी और कवि) की रचनाओं का पाठ किया।
इसके बाद इप्टा के साथियों ने जनगीतों की प्रस्तुतियां दीं। प्रेमधवन के गीत ये वक़्त की आवाज़ है मिलके चलो, कविवर कन्हैया के प्रसिद्ध गीत फिर नए संघर्ष का न्यौता मिला है और कवि यश मालवीय की कविता दबे पैरों से उजाला आ रहा है जनगीतों ने उपस्थित लोगों में वैचारिक उद्विग्नता भर दी। गीतों की प्रस्तुति में शेखर मल्लिक, ज्योति मल्लिक, श्रद्धा कुमारी, मानसी कुमारी, मल्लिका प्रधान, गणेश मुर्मू, कार्तिक चौधरी, भूमि महाकुड़, राजा, अनुज, और ए आई एस एफ़ के साथी सुनीता मुर्मू, विक्रम कुमार आदि ने स्वर दिया।
इसके बाद कार्यक्रम के दूसरे हिस्से में संवाद सत्र का सिलसिला चला। इप्टा के इतिहास और वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता व चुनौतियों पर, जिनकी चर्चा शेखर ने शुरू में कई थी, इप्टा क्यों? सत्र में परिचर्चा के अंतर्गत स्वस्थ व सारगर्भित चर्चा हुई।
युवा साथी सत्यम ने कहा कि फासीवाद के ख़िलाफ़ प्रतिरोध के जो तरीके हैं, उनमें हिंसा से ज्यादा श्रेष्ठ तरीका कला का माध्यम है।
इप्टा झारखंड के संरक्षक और वरिष्ठ रंगकर्मी शशि कुमार ने कहा, नाटक की सबसे बड़ी खूबी है कि बिना पढ़े लिखे, यानी वर्ण व्यवस्था में हाशिये के लोगों को जो ज्ञान प्राप्ति के माध्यमों से दूर रखा गया, वे भी नाटक के जरिये, जैसे सुनकर और संवाद बोलने से, ज्ञान हासिल कर सकते थे। इप्टा जीवंत संगठन है, यह जिंदा है क्योंकि इसके पीछे विचार है। नाटक करने वाला, गीत संगीत गाने वाला युवा कभी अपराधी नहीं हो सकता। यह नाटक की खूबी है। हो सकता है वह सफ़दर हाशमी या केन सरो वाइवा की तरह मारा जाय पर वह क्रिमिनल नहीं बन सकता! इप्टा कहती है कि हमारी नायक जनता है। इप्टा के साथ व्यक्तित्व का निर्माण और कैरियर का भी निर्माण भी होता है। कैफ़ी हों या संजीव कुमार, उन्होंने अपना जीवन यापन के लिए ढंग से कैरियर भी बनाया। लेकिन मूल्यों से समझौता किये बग़ैर। शशि जी ने वाकया सुनाया कि ए के हंगल साहब सेट पर राजकपूर से नाराज हो गए कि मैं कल से नहीं आऊँगा।आपके देर से आने से मेरा इप्टा का नाटक छूट गया। तो यह कमिटमेंट था।
कार्यक्रम में इप्टा घाटशिला के साथी ज्योति मल्लिक, कार्तिक चौधरी, तुहीन मंडल, बाल कलाकारों के अलावा प्रो नरेश कुमार, रवि सिंह, रंगकर्मी सुजन सरकार, सुभम, अंकित, रुपाली बारीक, लखिन्द्र प्रधान, संजीव घोष, संजय मुखी, लक्ष्मी कुदादा, साकरो मुर्मू, ए आई एस एफ़ की जमशेदपुर इकाई की उपाध्यक्ष कॉम सुनीता मुर्मू और कॉम विक्रम कुमार भी मौजूद थे।
संचालन कार्तिक चौधरी ने किया। कार्यक्रम बिल्कुल अनौपचारिक ढंग से आयोजित हुआ। बिछी हुई दरी पर घेरा बनाकर साथी बैठे और संवाद हुआ।
कार्यक्रम के उपरांत साथी सुभम के प्रश्नो और जिज्ञासाओं को संतुष्ट किया गया।
- रिपोर्ट: ज्योति मल्लिक, शेखर मल्लिक
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