आज राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित #कलाकार एकजुट अभियान में इप्टा, प्रलेसं और भारतीय महिला फ़ेडरेशन की घाटशिला इकाई के सदस्यों ने घाटशिला अनुमंडल के कदमडीह, बड़ाघाट, दक्षिण सुरदा और ऊपरबांधा आदि गांवों में जनगीत, पोस्टर प्रदर्शनी और स्पॉट पोस्टर मेकिंग, कविता पाठ (दक्षिण सुरदा) और शाम को ऊपरबांधा में इप्टा की फ़िल्म *धरती के लाल* का प्रदर्शन किया।
कॉम गणेश मुर्मू, कार्तिक, ज्योति मल्लिक और शेखर मल्लिक जनता से संवाद करते रहे। कविताओं के अर्थ और उनके बीच आने का प्रयोजन गणेश मुर्मू उन्हीं की जनभाषा, संथाली में समझाते, कार्तिक और ज्योति बंगला में, जब शेखर हिंदी में बताते। इस तरह , खासकर महिलाओं के बीच दल के गीतों और मौजूदगी का प्रभाव पड़ता दिख रहा था। वे ही खासी उत्सुक दिखे। दिनभर चले इस मुहिम में किसानों, मज़दूरों के लियेे गीत और अदम गोंडवी, राजेश जोशी, पाश और गोरख पांडेय के गीत व कविताओं का पाठ भी हुआ। "गांव छोड़ब नहीं", "चले चलो, दिलों के घाव लेके भी चले चलो","हाल चलाकर खेतों को मैंने ही सजाया रे","समय का पहिया" गीतों की प्रस्तुति हुई। इप्टा के साथी चित्रकार, संगीतकार, कवि-गीतकार और नृतक कार्तिक ने मुक्तिबोध की कविता का पोस्टर तांबे के खदान के बेल्ट, दक्षिण सुरदा, सुदूरवर्ती गाँव के चौक पर मज़दूरों, महिलाओं, बच्चों के बीच ऑन स्पॉट बनाया। साथी संगीता मानकी ने पाश की, लतिका ने राजेश जोशी की, शेखर ने अदम गोंडवी और गोरख पांडेय की और रुपाली बारीक ने भी गोरख की कविताओं का पाठ किया। इंसानी मुहब्बत, सौहार्द, भाईचारे, अभिव्यक्ति और असहमति के अधिकार के लिए, नफ़रत के ख़िलाफ़ सभी कलाकारों की सामूहिकता और एकजुटता ने एक मिसाल कायम की। शाम को जब प्रॉजेक्टर तकनीकी गड़बड़ी से बड़े पर्दे पर फ़िल्म दिखाना न हो सका तो लैपटॉप पर ही फ़िल्म *धरती के लाल* का प्रदर्शन हुआ। हम गौर किया कि विशेषकर बच्चे अंत तक पूरी फ़िल्म देखने को जुटे रहे।
इप्टा, प्रलेसं और महिला फेडरेशन के हमारे दल को हर जगह आदर और सम्मान के साथ बहुत अच्छे दर्शक, श्रोता मिले। दल में शामिल युवा साथियों का जोश बहुत ऊँचा रहा।
कार्यक्रम में लतिका पात्र, संगीता मानकी, नेहा, कार्तिक चौधरी, भूमि, वसुधा, राजशेखर, रूपाली बारीक, अनुज, अभिजीत, मानसी, मनीष, मनोहर, दीपक, लखिन्दर प्रधान, सुजन सरकार, गणेश मुर्मू, सोनाली शर्मा, नवमी, स्नेहज, ज्योति और शेखर मल्लिक आदि ने सक्रिय भागीदारी की। कार्यक्रम की तस्वीरें संलग्न हैं।
रिपोर्ट: ज्योति मल्लिक
कॉम गणेश मुर्मू, कार्तिक, ज्योति मल्लिक और शेखर मल्लिक जनता से संवाद करते रहे। कविताओं के अर्थ और उनके बीच आने का प्रयोजन गणेश मुर्मू उन्हीं की जनभाषा, संथाली में समझाते, कार्तिक और ज्योति बंगला में, जब शेखर हिंदी में बताते। इस तरह , खासकर महिलाओं के बीच दल के गीतों और मौजूदगी का प्रभाव पड़ता दिख रहा था। वे ही खासी उत्सुक दिखे। दिनभर चले इस मुहिम में किसानों, मज़दूरों के लियेे गीत और अदम गोंडवी, राजेश जोशी, पाश और गोरख पांडेय के गीत व कविताओं का पाठ भी हुआ। "गांव छोड़ब नहीं", "चले चलो, दिलों के घाव लेके भी चले चलो","हाल चलाकर खेतों को मैंने ही सजाया रे","समय का पहिया" गीतों की प्रस्तुति हुई। इप्टा के साथी चित्रकार, संगीतकार, कवि-गीतकार और नृतक कार्तिक ने मुक्तिबोध की कविता का पोस्टर तांबे के खदान के बेल्ट, दक्षिण सुरदा, सुदूरवर्ती गाँव के चौक पर मज़दूरों, महिलाओं, बच्चों के बीच ऑन स्पॉट बनाया। साथी संगीता मानकी ने पाश की, लतिका ने राजेश जोशी की, शेखर ने अदम गोंडवी और गोरख पांडेय की और रुपाली बारीक ने भी गोरख की कविताओं का पाठ किया। इंसानी मुहब्बत, सौहार्द, भाईचारे, अभिव्यक्ति और असहमति के अधिकार के लिए, नफ़रत के ख़िलाफ़ सभी कलाकारों की सामूहिकता और एकजुटता ने एक मिसाल कायम की। शाम को जब प्रॉजेक्टर तकनीकी गड़बड़ी से बड़े पर्दे पर फ़िल्म दिखाना न हो सका तो लैपटॉप पर ही फ़िल्म *धरती के लाल* का प्रदर्शन हुआ। हम गौर किया कि विशेषकर बच्चे अंत तक पूरी फ़िल्म देखने को जुटे रहे।
इप्टा, प्रलेसं और महिला फेडरेशन के हमारे दल को हर जगह आदर और सम्मान के साथ बहुत अच्छे दर्शक, श्रोता मिले। दल में शामिल युवा साथियों का जोश बहुत ऊँचा रहा।
कार्यक्रम में लतिका पात्र, संगीता मानकी, नेहा, कार्तिक चौधरी, भूमि, वसुधा, राजशेखर, रूपाली बारीक, अनुज, अभिजीत, मानसी, मनीष, मनोहर, दीपक, लखिन्दर प्रधान, सुजन सरकार, गणेश मुर्मू, सोनाली शर्मा, नवमी, स्नेहज, ज्योति और शेखर मल्लिक आदि ने सक्रिय भागीदारी की। कार्यक्रम की तस्वीरें संलग्न हैं।
रिपोर्ट: ज्योति मल्लिक
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