प्रेमचंद जयंती पर प्रलेस इंदौर ने किया कहानी पाठ और चर्चा का कार्यक्रम
इंदौर। प्रेमचंद जयंती के मौके पर केंद्रीय अहिल्या ग्रंथालय के अध्ययन कक्ष में 3 जुलाई को प्रेमचंद की कहानी घासवाली के पाठ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुकेश पाटीदार ने आधार वक्तव्य रखा। सौरव दास ने प्रेमचंद के कृतित्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में शामिल साथियों ने घासवाली कहानी के विभिन्न पहलुओं पर अपना नजरिया जाहिर किया।
मुकेश पाटीदार ने आधार वक्तव्य में कहा कि प्रेमचंद ने तत्कालीन समाज में व्याप्त, छुआछूत, सांप्रदायिकता, हिंदू-मुस्लिम एकता, दलितों के प्रति सामाजिक समरसता जैसे मुद्दों पर अपनी कलम से समाज को दिशा देने का महत्वपूर्ण कार्य किया। प्रेमचंद का पूरा साहित्य ही दलित, स्त्री, किसान और मजदूरों की लडा़ई का साहित्य है। इसमें समता, न्याय और सामाजिक परिवर्तन की घोषणा है। उनकी रचनाओं के पात्र आज भी हमे आसपास दिखाई देते हैं। प्रेमचंद ने उपन्यास निर्मला में दहेज प्रथा व बेमेल विवाह की समस्या पर प्रकाश डालकर समाज में महिलाओं की स्थिति का उल्लेख किया। वे सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जमींदारी, कर्जखोरी के खिलाफ और गरीबी तथा नारी समस्याओं पर आजन्म लिखते रहे।
युवा साथी सौरव दास ने कहा कि प्रेमचंद ने अय्यारी, कल्पना लोक, राजा-रानी से इतर यथार्थवादी कहानियों की परंपरा विकसित की। उन्होंने किसानों, मजदूरों के जीवन और उनकी त्रासदियों का मेलोड्रामा रचा। उनके उपन्यासों पर हिन्दी में ही नहीं, उड़िया, कन्नड़ व् बांग्ला में भी फ़िल्में बनीं।
प्रलेस मध्यप्रदेश के महासचिव विनीत तिवारी ने प्रेमचंद की कहानी घासवाली का पाठ किया। यह कहानी प्रो. शोभना जोशी ने उपलब्ध कराई थी।
इस कहानी पर चर्चा का आरंभ करते हुए श्री कृष्णकांत श्रीवास्तव ने कहा कि कहानी में भाषा की सहजता, सरलता है। समाज में प्रतिरोध व सुधार को चिन्हित करने और उभारने की प्रेमचंद की कला अदभुत है। इंदौर इकाई के अध्यक्ष श्री एसके दुबे ने कहा कि कहानी में प्रेमचंद का पात्र चैनसिंह एकाएक कैसे परिवर्तित हो जाता है, परिवर्तन की प्रक्रिया बहुत तेज हुई है। श्री गणेश रायबोले ने कहा कि इस कहानी में जमींदारी प्रथा के अंतर्गत दलित वर्ग की पीड़ित शोषित महिला की मुक्ति की चाह मिलती है। बात को आगे बढ़ाते हुए श्री रामआसरे पांडे ने कहा कि कहानी गांधीवादी आदर्शवाद से प्रेरित है। कहानी के पात्र चैनसिंह का ह्रदयपरिवर्तन एक अपवाद है और अपवादों का सामान्यीकरण नहीं हो सकता। ह्रदयपरिवर्तन से समाज की समस्याओं का हल नहीं होता।
श्री सुरेश उपाध्याय ने कहा कि प्रेमचंद की पहली कहानी मेरे अनमोल रत्न थी और उनका आखिरी लेख महाजनी सभ्यता माना जाता है। इस आखिरी लेख में प्रेमचंद की अतंरराष्ट्रीय दृष्टि परिलक्षित होती है। प्रेमचंद ने प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के अध्यक्षीय उद्बबोधन में कहा था कि साहित्य राजनीति और समाज के आगे चलने वाली मशाल है। प्रेमचंद का साहित्य गति संघर्ष और बेचैनी देता है हमें सुलाता नहीं, चैतन्य करता है। इसमें संघर्ष और स्वाभिमान का सार है। घासवाली कहानी में भी यही बात दिखाई पड़ती है।इंदौर इकाई के सचिव श्री अभय नेमा ने कहा कि कहानी में कई तत्व हैं। यह तकनीक में बदलाव और इक्के वालों की आजीविका पर इसके असर के बारे में बताती है। मजदूर और दलित वर्ग की घास लाने वाली स्त्री के प्रतिरोध को बताती है। एक ठाकुर के ह्दय परिवर्तन के जरिए यह कहानी नए समाज के निर्माण की प्रक्रिया के एक महत्वपूर्ण बिंदु पर भी प्रकाश डालती है। इसके साथ ही जातिवाद का विद्रूप भी इस कहानी में जाहिर होता है। यह कहानी एक नए मनुष्य के निर्माण में मदद करती है। एनएफडब्ल्यूआई की सुश्री सचिव सारिका श्रीवास्तव ने कहा कि एक नारी के प्रति ठाकुर का व्यक्तित्व अचानक बदलना आसान नहीं है। कहानी में एक नारी का चरित्र अपनी पूर्णता के साथ आता है। श्री देवीलाल गुर्जर ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियां आम आदमी की कहानियां है।
विनीत तिवारी ने कहा कि कहानी का कालखंड ज्ञात नहीं है फिर भी यह प्रेमचंद की आरंभिक कहानी लगती है। बेशक कहानी में शोषण करने वाले ज़मींदार का हृदय परिवर्तन गया है वैसा असल ज़िंदगी में नहीं होता। प्रेमचंद इस कहानी को लिखते समय तक मनुष्य के व्यक्तिगत और अंतःकरण की पवित्रता पर विश्वास करते होंगे उन्होंने ऐसा लिखा। असल ज़िंदगी में दलितों और शोषितों को अपनी मुक्ति के लिए लड़ना पड़ता है। फिर भी यह कहानी भाषा के प्रवाह, अपने सुगठन और परिवेश के निर्माण की वजह से यादगार कहानी बन जाती है। उनकी महिला पात्र इतनी आत्मविश्वासी और मजबूत इरादों वाली होती थीं कि सहज ही औरतों के प्रति सम्मान जागृत हो जाता है। बीसवीं सदी के प्रारंभ में जातिवाद और नारी के बारे में प्रेमचंद की प्रगतिशील सोच उन्हें अपने समय से आगे देखने वाला कथाकार बनाती है। कहानी एक अमूर्तन में समाप्त होती है जो अनेक संभावनाएं सवाल छोड़ जाती है।
कार्यक्रम में ग्रंथालय के प्रमुख डॉ. जी. डी. अग्रवाल एवं प्रलेस के साथियों ने प्रेमचंद के पोस्टर का विमोचन किया। इस पोस्टर को इंदौर इकाई ने तैयार किया और इसे स्कूल, कालेजों में वितरित किया। प्रेमचंद जयंती के दिन 31 जुलाई को माहेश्वरी विद्यालय में असेंबली के दौरान सौरभ दास ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। इस कार्यक्रम में स्कूल के प्राचार्य, मैडम देशपांडे, श्रीमती पाठक, समेत कई अध्यापक मौजूद थे। श्रीमती पाठक ने प्रेमचंद के आवदान पर सारगर्भित वक्तव्य पेश किया। इस पोस्टर को बनाने में साथी अशोक दुबे का योगदान रहा। आभार प्रकट किया संयुक्त सचिव केसरीसिंह चिड़ार ने।
इंदौर। प्रेमचंद जयंती के मौके पर केंद्रीय अहिल्या ग्रंथालय के अध्ययन कक्ष में 3 जुलाई को प्रेमचंद की कहानी घासवाली के पाठ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुकेश पाटीदार ने आधार वक्तव्य रखा। सौरव दास ने प्रेमचंद के कृतित्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में शामिल साथियों ने घासवाली कहानी के विभिन्न पहलुओं पर अपना नजरिया जाहिर किया।
मुकेश पाटीदार ने आधार वक्तव्य में कहा कि प्रेमचंद ने तत्कालीन समाज में व्याप्त, छुआछूत, सांप्रदायिकता, हिंदू-मुस्लिम एकता, दलितों के प्रति सामाजिक समरसता जैसे मुद्दों पर अपनी कलम से समाज को दिशा देने का महत्वपूर्ण कार्य किया। प्रेमचंद का पूरा साहित्य ही दलित, स्त्री, किसान और मजदूरों की लडा़ई का साहित्य है। इसमें समता, न्याय और सामाजिक परिवर्तन की घोषणा है। उनकी रचनाओं के पात्र आज भी हमे आसपास दिखाई देते हैं। प्रेमचंद ने उपन्यास निर्मला में दहेज प्रथा व बेमेल विवाह की समस्या पर प्रकाश डालकर समाज में महिलाओं की स्थिति का उल्लेख किया। वे सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जमींदारी, कर्जखोरी के खिलाफ और गरीबी तथा नारी समस्याओं पर आजन्म लिखते रहे।
युवा साथी सौरव दास ने कहा कि प्रेमचंद ने अय्यारी, कल्पना लोक, राजा-रानी से इतर यथार्थवादी कहानियों की परंपरा विकसित की। उन्होंने किसानों, मजदूरों के जीवन और उनकी त्रासदियों का मेलोड्रामा रचा। उनके उपन्यासों पर हिन्दी में ही नहीं, उड़िया, कन्नड़ व् बांग्ला में भी फ़िल्में बनीं।
प्रलेस मध्यप्रदेश के महासचिव विनीत तिवारी ने प्रेमचंद की कहानी घासवाली का पाठ किया। यह कहानी प्रो. शोभना जोशी ने उपलब्ध कराई थी।
इस कहानी पर चर्चा का आरंभ करते हुए श्री कृष्णकांत श्रीवास्तव ने कहा कि कहानी में भाषा की सहजता, सरलता है। समाज में प्रतिरोध व सुधार को चिन्हित करने और उभारने की प्रेमचंद की कला अदभुत है। इंदौर इकाई के अध्यक्ष श्री एसके दुबे ने कहा कि कहानी में प्रेमचंद का पात्र चैनसिंह एकाएक कैसे परिवर्तित हो जाता है, परिवर्तन की प्रक्रिया बहुत तेज हुई है। श्री गणेश रायबोले ने कहा कि इस कहानी में जमींदारी प्रथा के अंतर्गत दलित वर्ग की पीड़ित शोषित महिला की मुक्ति की चाह मिलती है। बात को आगे बढ़ाते हुए श्री रामआसरे पांडे ने कहा कि कहानी गांधीवादी आदर्शवाद से प्रेरित है। कहानी के पात्र चैनसिंह का ह्रदयपरिवर्तन एक अपवाद है और अपवादों का सामान्यीकरण नहीं हो सकता। ह्रदयपरिवर्तन से समाज की समस्याओं का हल नहीं होता।
श्री सुरेश उपाध्याय ने कहा कि प्रेमचंद की पहली कहानी मेरे अनमोल रत्न थी और उनका आखिरी लेख महाजनी सभ्यता माना जाता है। इस आखिरी लेख में प्रेमचंद की अतंरराष्ट्रीय दृष्टि परिलक्षित होती है। प्रेमचंद ने प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के अध्यक्षीय उद्बबोधन में कहा था कि साहित्य राजनीति और समाज के आगे चलने वाली मशाल है। प्रेमचंद का साहित्य गति संघर्ष और बेचैनी देता है हमें सुलाता नहीं, चैतन्य करता है। इसमें संघर्ष और स्वाभिमान का सार है। घासवाली कहानी में भी यही बात दिखाई पड़ती है।इंदौर इकाई के सचिव श्री अभय नेमा ने कहा कि कहानी में कई तत्व हैं। यह तकनीक में बदलाव और इक्के वालों की आजीविका पर इसके असर के बारे में बताती है। मजदूर और दलित वर्ग की घास लाने वाली स्त्री के प्रतिरोध को बताती है। एक ठाकुर के ह्दय परिवर्तन के जरिए यह कहानी नए समाज के निर्माण की प्रक्रिया के एक महत्वपूर्ण बिंदु पर भी प्रकाश डालती है। इसके साथ ही जातिवाद का विद्रूप भी इस कहानी में जाहिर होता है। यह कहानी एक नए मनुष्य के निर्माण में मदद करती है। एनएफडब्ल्यूआई की सुश्री सचिव सारिका श्रीवास्तव ने कहा कि एक नारी के प्रति ठाकुर का व्यक्तित्व अचानक बदलना आसान नहीं है। कहानी में एक नारी का चरित्र अपनी पूर्णता के साथ आता है। श्री देवीलाल गुर्जर ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियां आम आदमी की कहानियां है।
विनीत तिवारी ने कहा कि कहानी का कालखंड ज्ञात नहीं है फिर भी यह प्रेमचंद की आरंभिक कहानी लगती है। बेशक कहानी में शोषण करने वाले ज़मींदार का हृदय परिवर्तन गया है वैसा असल ज़िंदगी में नहीं होता। प्रेमचंद इस कहानी को लिखते समय तक मनुष्य के व्यक्तिगत और अंतःकरण की पवित्रता पर विश्वास करते होंगे उन्होंने ऐसा लिखा। असल ज़िंदगी में दलितों और शोषितों को अपनी मुक्ति के लिए लड़ना पड़ता है। फिर भी यह कहानी भाषा के प्रवाह, अपने सुगठन और परिवेश के निर्माण की वजह से यादगार कहानी बन जाती है। उनकी महिला पात्र इतनी आत्मविश्वासी और मजबूत इरादों वाली होती थीं कि सहज ही औरतों के प्रति सम्मान जागृत हो जाता है। बीसवीं सदी के प्रारंभ में जातिवाद और नारी के बारे में प्रेमचंद की प्रगतिशील सोच उन्हें अपने समय से आगे देखने वाला कथाकार बनाती है। कहानी एक अमूर्तन में समाप्त होती है जो अनेक संभावनाएं सवाल छोड़ जाती है।
कार्यक्रम में ग्रंथालय के प्रमुख डॉ. जी. डी. अग्रवाल एवं प्रलेस के साथियों ने प्रेमचंद के पोस्टर का विमोचन किया। इस पोस्टर को इंदौर इकाई ने तैयार किया और इसे स्कूल, कालेजों में वितरित किया। प्रेमचंद जयंती के दिन 31 जुलाई को माहेश्वरी विद्यालय में असेंबली के दौरान सौरभ दास ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। इस कार्यक्रम में स्कूल के प्राचार्य, मैडम देशपांडे, श्रीमती पाठक, समेत कई अध्यापक मौजूद थे। श्रीमती पाठक ने प्रेमचंद के आवदान पर सारगर्भित वक्तव्य पेश किया। इस पोस्टर को बनाने में साथी अशोक दुबे का योगदान रहा। आभार प्रकट किया संयुक्त सचिव केसरीसिंह चिड़ार ने।
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