जब लैटिन अमेरिका के मुश्किल हालात पर बात करने
के लिए और वहां की जनता के साथ अपनी एकजुटता ज़ाहिर करने के लिए
जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट ने पुणे मे सभा की तो ये एक मौका था जिसमे हम
समाजवाद की मंज़िल, उस तक पहुंचने के अपने रास्ते और अपने कदमों की परख
भी कर सकते थे।
दुनिया
के दूसरे गोलार्ध मे मौजूद क्रांतिकारी संघर्षरत जनता के साथ अपनी एकजुटता
ज़ाहिर करने के लिए जोशी-अधिकारी इंस्टीट्यूट अॉफ सोशल स्टडीज द्वारा शंकर
ब्रह्मे समाज विज्ञान ग्रंथालय के सहयोग से पुणे मे १७ जून २०१६ को एक सभा
का अायोजन किया गया। लोकायत के सभागृह मे अायोजित इस सभा मे मुख्य अतिथि के
तौर पर भारत मे वेनेज़ुएला के राजदूत श्री अॉगुस्तो मोंतीएल और उनकी
जीवनसाथी सुश्री मिली मोंतीएल शरीक हुए। स्वागत किया अद्वैत पेडनेकर ने
और अतिथयों का परिचय दिया विनीत तिवारी ने। श्री अॉगुस्तो मोंतीएल और उनकी
जीवनसाथी सुश्री मिली मोंतीएल को स्मृति चिन्ह भेंट किए सीपीअाई की वरिष्ठ
कॉमरेड शांता रानाडे और भारतीय महिला फेडरेशन की सक्रिय कार्यकर्ता कॉमरेड
लता भिसे ने।
विषय
प्रवर्तन करते हुए अर्थशास्त्री व जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट के शोध विभाग
की प्रमुख डॉ जया मेहता ने कहा कि जब हम पूँजीवाद का विरोध कर रहे हैं तो
ये स्पष्ट होना चाहिए कि हमारा अाशय उसके विकल्प के तौर पर समाजवादी
व्यवस्था से है। सोवियत संघ जैसी अर्थव्यवस्थाओं के ढहने के बाद क्यूबा
समाजवादी विचारधारा के पक्ष मे मजबूती से खड़ा हुअा और क्यूबा की ये बहुत
अहम भूमिका रही है। क्यूबा के बाद वेनेज़ुएला में उगो चावेज़ ने २१वीं सदी के
समाजवाद का परचम लहराया और उससे समाजवाद के भविष्य मे नई उम्मीद और
वर्तमान मे नए उत्साह का संचार किया। वेनेज़ुएला, बोलीविया, इक्वेडोर अादि
लैटिन अमेरिकी देशों में चल रहा संघर्ष साम्राज्यवादी पूँजीवादी उत्पादन के
संबंधों के विकल्प में नए समाजवादी संबंधों की स्थापना की कोशिश है। जब हम
समाजवाद की बात करते हैं तो केवल सत्ता पर कौन काबिज़ हुअा, उतनी ही बात
नही करते बल्कि उत्पादन संबंधों मे होने वाले परिवर्तनों की बात भी करते
हैं। उन्हीं अर्थों में चावेज़ ने कहा था कि हम वो नही कर सकते जो सोवियत
संघ ने किया था यानी सारे उत्पादन अाधार का राष्ट्रीयकरण लेकिन हम मौजूदा
पूंजीवादी अाधार को तमाम कोआपरेटिव बनाकर चुनौती दे सकते हैं। उन्होंने कहा
कि कोआपरेटिव्ज़ के ज़रिए पूरी समाज व्यवस्था के उत्पादन संबंध बदले जा सकते
हैं। चावेज़ की ये बात मुझे समाजवाद को कामयाब बनाने के लिए बहुत कल्पनाशील
लगती है और में इसे इसलिए भी सलाम करती हूँ क्योंकि ये भारत के लिए भी
बहुत प्रासंगिक है। फिलहाल इन मुल्कों को अमेरिकी साज़िशें अस्थिर करने की
कोशिशें कर रही हैं। ऐसे मे हम सभी जो इंसानियत के भविष्य के लिए फ़िक्रमंद
हैं, उन्हें इन देशों की समाजवादी व्यवस्थाएं और विचारधारा बचाने की पूरी
कोशिश करनी चाहिए। इस कार्यक्रम का मकसद भी यही है कि लोगो के सामने सच्चाई
अाये और वे समझ सकें कि समाजवाद ही मनुष्यता के बचे रहने की गारंटी है।
श्री अॉगुस्तो
मोंतीएल ने वेनेज़ुएला तथा अन्य लैटिन अमेरिकी देशों के वास्तविक हालात के
बारे मे जानकारी दी। पिछले दिनों वाशिंगटन पोस्ट अखबार मे संपादकीय
प्रकाशित हुअा कि वेनेज़ुएला के हालात खराब हैं कि वहां विदेशी हस्तक्षेप की
जरूरत है। देखा-देखी कुछ भारत के अखबारों ने भी इसी तरह के विचार ज़ाहिर
किए। ये नतीजा है ओबामा सरकार की उन लगातार कोशिशों का जो वे वेनेज़ुएला को
बदनाम करने के लिए कर रहे हैं। ओबामा प्रशासन ने हाल मे एक अादेश जारी करके
वेनेज़ुएला को अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया है। ये पहला
कदम है वेनेज़ुएला के खिलाफ प्रतिबंध लागू करने का। उन्होंने विस्तार से
बताया कि अमेरिकी तथा अन्य पश्चिमी देशों की साम्राज्यवादी साज़िशों के तहत
तेल की कीमतों को अस्थिर कर वेनेज़ुएला मे अस्थिरता पैदा करने की कोशिश की
जा रही है। कॉर्पोरेट नियंत्रण वाले मीडिया के ज़रिए ये झूठ प्रचारित करने
की कोशिश की जा रही है कि देश मे अराजकता का माहौल है और उसे दुरुस्त करने
के लिए बाहरी हस्तक्षेप की जरूरत है। लेकिन सच्चाई ये है कि हाल मे
अमेरिकी देशों के संघ के भीतर हुए मतदान मे वेनेज़ुएला के पक्ष मे २९ और
अमेरिका के पक्ष मे सिर्फ अमेरिका, कनाडा और पैराग्वे के तीन ही मत पड़े।
दुनिया के तमाम देशों की न्यायप्रिय जनता का समर्थन हमें मिल रहा है। भारत
के साथ भी हमारा बहुत नजदीकी संबंध है। भारत के तेल की करीब एक तिहाई जरूरत
वेनेज़ुएला से पूरी होती है। साम्राज्यवाद इस प्राकृतिक संसाधन का
इस्तेमाल दूसरों पर कब्ज़ा करने के लिए करता है जबकि हम इसे सहयोग के मौके
के तौर पर देखते हैं। उन्होंने पिछले २० वर्षों मे राष्ट्रपति चावेज़
और राष्ट्रपति मादुरो के शासन के दौरान लिए गए जनहितैषी कदमों का विस्तृत
ब्योरा दिया। उन्होंने कहा कि वेनेज़ुएला, बोलीविया और इक्वेडोर ने क्यूबा
की तरह ही विकास का अपना अलग नजरिया चुना जो अमेरिकी साम्राज्यवाद के हुक्म
से नही चलता है। इसीलिए हमारे इस प्रयोग और कोशिश के खिलाफ अमेरिका
और उसके समर्थक देशों ने विभिन्न स्तरों पर मोर्चा खोल रखा है। इनमे हमारे
देशों पर अार्थिक प्रतिबंध लगाने से लेकर राष्ट्रीय - अंतरराष्ट्रीय मीडिया
मे भ्रामक और तथ्यहीन झूठी जानकारी फैलाने से लेकर देश के भीतर मौजूद
पूंजीवाद समर्थक दक्षिणपंथी समूहों को मदद देना भी शामिल है। उन्होंने कहा
कि जैसे पश्चिम एशिया मे, इराक मे और लीबिया मे पहले उनके बारे मे भ्रम
फैलाया गया और फिर उन्हें नेस्तनाबूद कर दिया, वैसा ही खेल वेनेज़ुएला के
साथ खेलने की कोशिश की जा रही है। उनका कॉर्पोरेट मीडिया वेनेज़ुएला से बनने
वाली विश्व सुंदरी के बारे में तो बताता है लेकिन ये नही बताता कि
वेनेज़ुएला का संविधान शायद दुनिया का एकमात्र संविधान होगा जो महिलाओं के
लिए संसद में ५० फीसदी अारक्षण दे चुका है।
करीब
दो घंटे चले सूचनाओं और विश्लेषण से भरे व्याख्यान के बाद डॉक्टर अभय
शुक्ला ने वेनेजुएला के चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम के बारे मे बताया कि
वहां चिकित्सक को केवल दवा अदि की तकनीकी शिक्षा नही दी जाती बल्कि उन्हें
सामाजिक परिप्रेक्ष से भी गंभीरता से वाकिफ कराया जाता है। उन्होंने
बोलीविया के हालात पर भी अपनी बात रखी। इसी तरह अर्चिष्मान राजू ने ब्राजील
के भीतर हो रही हालिया उथल-पुथल पर सवाल पूछे।
सभा
की अध्यक्षता करते हुए जोशी-अधिकारी इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष और पूर्व
वित्त व वाणिज्य सचिव श्री एस पी शुक्ला ने कहा कि सन २००८ से संकट मे फंसा
हुअा पूंजीवाद अब तक उबर नही सका है और वित्तीय संकट पहले की तुलना मे
और गहरा हुअा है। बदलावकारी ताकतों को इस स्थिति को अपनी शक्ति संचयन का
अवसर बनाकर इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि वेनेज़ुएला ने हमें
उम्मीद की एक राह बताई है और ये हम सभी का कर्तव्य है कि हम वेनेज़ुएला
और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों के समर्थन मे खड़े हो ताकि दुनिया के लिए बेहतर
भविष्य की उम्मीद बचाई जा सके।
सभा
मे वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं चिंतक डॉक्टर सुलभा ब्रह्मे, नंदिनी ओझा,
श्रीपाद धर्माधिकारी, नीरज जैन, बाज़िल शेख, मेघा पानसरे, राकेश शुक्ला,
विनया मा
लती, नीरज वाघोलीकर, मिलिंद, शर्मिला बेओ, नीमा अठकब्रूम, अभिजित, सुहास पोलेकर, सीमा कुलकर्णी, युवराज एवं अन्य अनेक बुद्धिजीवी कार्यकर्ता अांदोलनों से जुड़े लोगों ने हिस्सा लिया। सभा के अंत मे वेनेज़ुएला की क्रांतिकारी जनता के साथ एकजुटता ज़ाहिर करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया।
लती, नीरज वाघोलीकर, मिलिंद, शर्मिला बेओ, नीमा अठकब्रूम, अभिजित, सुहास पोलेकर, सीमा कुलकर्णी, युवराज एवं अन्य अनेक बुद्धिजीवी कार्यकर्ता अांदोलनों से जुड़े लोगों ने हिस्सा लिया। सभा के अंत मे वेनेज़ुएला की क्रांतिकारी जनता के साथ एकजुटता ज़ाहिर करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया।
तस्वीर
मे : अतिथियों का स्वागत करतीं वरिष्ठ सीपीअाई नेता कॉमरेड शांता रानाडे
और मंच पर मौजूद श्री एस पी शुक्ला एवं डॉक्टर जया मेहता।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-07-2016) को "आदमी का चमत्कार" (चर्चा अंक-2390) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'