#DetoxifingSociety
#SaveHumanity
कोरोना वायरस के संक्रमण के इस कठिन वक्त में हमारे सभी बुजुर्गों, परिवारजनों और स्कूल के पुराने साथियों के लिये संदेश,
आप मेरे बड़े, सम्मानित और सम्बन्धी भी हैं. मैं आमतौर पर अपने बड़ों और रिश्तेदारों के विचारों में छेड़-छाड़ नहीं करता क्योंकि मेरे अपने कुछ खट्टे अनुभव रहे हैं. मैं उनका सम्मान जरूर करता हूँ पर अधिकतर मैं उनके साथ बहस में नहीं उलझता. मुझे वर्ण (जाति), स्त्री और धर्म को लेकर उनके विचार अवैज्ञानिक, अस्पष्ट, अहंकारी और आधारहीन लगते हैं. समाज में बेहतरी के विचार को लेकर भी मुझे उनके कई विचारों से विरोध है. उनके हिसाब से एक भौतिकवादी जीवन (बंगला, कार, कैरियर, बैंक बेलेंस, सम्पत्ति आदि) किसी जीवन की उपलब्धियों को मापने के पैमाने हैं. और वे ‘गीता’ और सन्यास तथा जीवन के ‘माया’ मात्र होने और जीवन की तुच्छता के बारे में बातें करते हैं. मैं ऐसे दोहरेपन से घृणा करता हूँ। इसलिए, मैं उनके साथ बहस में समय नष्ट नहीं करता. मैं समान्यत: सीमारेखा का उल्लंघन नहीं करता. उन्हें क्रोधित या दुखी करना मेरा उद्येश्य नहीं है. वे मेरे जीवन के चुनाव को नहीं समझ सकते।
मैं सोशल मीडिया में भी अपने रिश्तेदारों और बड़ों से बहस में नहीं उलझता क्योंकि वह एक सार्वजानिक मंच होता है. वहां वे लोग भी होंगे जो आपको फॉलो करते होंगे या आपको निजी तौर पर जानते होंगे और वे आपके गलत तर्कों में भी आपका पक्ष लेंगे, और ऐसे लोग भी होंगे जो मेरे तर्कों से इत्तिफ़ाक़ रखेंगे और कभी-कभी केवल मेरा पक्ष लेने के क्रम में आपसे अभद्र भाषा का व्यवहार कर सकते हैं, कठोर और अप्रिय शब्दों का इस्तेमाल आपके खिलाफ कर सकते हैं. जिसे मैं भी पसंद नहीं करूँगा. मैं ऐसी सावधानी अपने सम्मान को बचाए रखने के लिए भी करता हूँ. मैं दूसरों के वॉल पर नहीं जाता और उनके पोस्टों पर अपनी टिप्पणियों से उन्हें खिझाता नहीं हूँ.
कुछ सम्बन्धियों और दूसरे पुराने स्कूल/कॉलेज के दोस्तों ने यह गलती लगातार की और इसलिए कभी-कभी उन्हें कड़ी जुबान भी झेलनी पड़ी. मैं उनलोगों को समझाने की कोशिश करता हूँ जो अभी भी मेरे प्रति कुछ आदर रखते हैं और अपने जीवन के तथ्यों के प्रति कुछ विनम्रता रखते हैं.
दूसरे, मैं परिवारजनों और वरिष्ठों की विचारधारा और विचारों का अनुपालक सिर्फ इसलिए नहीं करता कि वे बड़े हैं और मेरे सम्बन्धी हैं. और मैं भी उन्हें यही अधिकार देता हूँ. मुझे मेरे वॉल पर अपने विचार प्रकट करने का पूरा अधिकार है, और अगर किसी को उससे असहमति हो तो वह अपनी वॉल पर इसका इज़हार कर सकता है. मैं निजता के क्षेत्र का सम्मान करता हूँ. यह सोशल मीडिया का पहला शिष्टाचार है. घुसपैठ न करें.
तीसरा, मैं विचारों में मतभेद का सम्मान करता हूँ. लेकिन मैं थोपे जाने की सराहना नहीं करता. कुछ पोस्टों में सगे-सम्बन्धी या स्कूल/कॉलेज के साथी मोदी का बचाव करने की या बिना किसी आधार या वज़ह के वामपंथ पर आक्रमण करने की कोशिश करते हैं. वे बस यह इच्छा रखते हैं कि हम हर उस बात पर विश्वास करें जो भी मोदी कहते हैं, क्योंकि वे प्रधानमन्त्री हैं. ये उनका सोचना हो सकता है. मैं तर्क या कारण समझे बिना किसी के साथ कभी सहमत नहीं हो सकता. मुझे उनके पूरे समर्पण के साथ मोदी या आर.एस.एस. के उत्साही और अंधानुयायी होने से कोई समस्या नहीं है, लेकिन वे मुझसे कैसे ये उम्मीद कर सकते हैं कि मैं सरकार /सत्ता पर कोई सवाल न उठाऊँ। मैं किसी युवतर साथी के साथ भी ऐसा नहीं करता. मैं तथ्यों को सीधे सामने रखता हूँ और उन्हें वैज्ञानिक तर्कों और तथ्यों के आधार पर अपना मत रखने की स्वतंत्रता देता हूँ, न कि केवल विश्वास और अंधविश्वास के सहारे.
चौथा, मेरा इन अधिकांश सगे-सम्बन्धियों, बड़ों और पुराने दोस्तों के राजनीति, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, विज्ञान, मनोविज्ञान आदि के ज्ञान को लेकर बहुत आदरभाव नहीं है. मैं उन्हें इनमें से किसी भी विषय का भी ज्ञाता नहीं मानता. अत: मेरे लिए, उनकी टिप्पणियाँ उन लोगों जैसी है जो ‘बाबाओं’ और ‘साधुओं’ के चमत्कारों से अविभूत हो जाते हैं. पहले ऐसे दौर भी थे जब देश में बुद्धिजीवियों का सम्मान था. प्रोफेसर, शिक्षक, वैज्ञानिक, अभियंता और इस तरह के लोग राष्ट्र के वास्तुकार हुआ करते थे. ये लोग देश की आम मेधा का प्रतिनिधित्व करते थे. अब इस स्थिति में एक गुणात्मक पतन हुआ है. आजकल तो हर प्रगतिविरोधी, बाबा, मदारी, व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के विद्वान, गूगल स्नातक, अमर्त्य सेन, होमी भाभा, रोमिला थापर, विक्रम साराभाई, नोम चोम्स्की, पॉल स्वीजी, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला, गाँधी, नेहरू को पढ़ा सकते हैं.
तो मेरे सम्मानीय सगे-सम्बन्धियों और पुराने दिनों के प्यारे दोस्तों, कृपया मेरी वॉल पर अवश्य आयें, यदि आप मेरे लिए कुछ मूल्यवान साझा करना चाहते हैं या आपको सचमुच कोई जिज्ञासा या प्रश्न हो. तो मैं अवश्य इसका समाधान करने के लिए अपना कुछ वक्त देकर अपना सर्वश्रेठ जतन करूंगा, लेकिन अगर आप मेरी वॉल पर मुझपर सिर्फ ‘मोदी विरोधी’, ‘देश विरोधी’ का इल्ज़ाम लगाने के लिए आते हैं या चाहते हैं कि जो शासन प्रशासन कर रहा है मैं उसकी बिना तर्क किए तस्दीक या प्रशंसा करूँ तो मुझे माफ़ करें। मैं आपकी टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया नहीं दूँगा और मेरी पोस्ट पर से उन्हें Hide कर दूँगा, क्योंकि उससे विषयांतर होता है। मैंने ऐसा मेरे बहुत से करीबी रिश्तेदारों के साथ पहले भी किया है, भले दुखी होकर।
और अंतिम मगर जरूरी बात, जब दिल्ली के निजामुद्दीन में मरकज़ में तबलीगी जमात के लोग इक्कठे होने की और इंदौर में मुसलमानों द्वारा डॉक्टरों और अन्य मेडिकल स्टाफ़ पर पत्थरबाजी की लगातार दो घटनाएँ सामने आईं तो अचानक सारे मुसलमान खलनायक बताये जाने लगे। मेरी एक पोस्ट जो कोरोना वायरस की महामारी में साम्प्रदायिकीकरण की प्रवृति से संबंधित थी, उस पर प्रतिक्रिया देते हुए मेरे सम्माननीय सगे-सम्बन्धी ने यह लिखा :
"जब तुम ऐसे लोगों के कई आंदोलनों में इनकी तरफदारी करने दौड़ के पहुँचते हो,
जब तुम ऐसे लोगों के साथ अपनी तस्वीरें खिंचवाते हो,
तब यह तुम्हारी जिम्मेदारी है कि ऐसे लोगों को समझाओ।"
कहने का मतलब समझो
"ऐसे लोगों" के समर्थन में दौड़कर पहुंचते हो
पोस्टर लेके फ़ोटो खिंचवाते हो
तो समझाओ भी (मूल संदेश)
ये सज्जन शायद यह कभी समझ नहीं पाएँगे कि इन तीन-चार पंक्तियों में क्या गलत उन्होंने लिखा है. ये चार पंक्तियाँ उनके दिमाग में भरे साम्प्रदायिक कचरे को स्पष्ट दिखाती हैं। "ऐसे लोगों" से उनका क्या मतलब है? वे पूरे मुस्लिम समाज के प्रति अपनी घृणा छिपा नहीं सके. क्या उनका मतलब है कि हर वह मुसलमान जिसका मैंने पक्ष लिया था, डॉक्टरों पर थूक या पत्थर चला रहा था? मुझे एक इंसान दिखाओ जो उनके इस "ऐसे लोगों" की श्रेणी में आता हो.
ऐसे सगे-संबंधी और बचपन के सहपाठी उन कुछ आर एस एस वालों से भी गये गुजरे हैं, जो दिन-रात भूखों को बिना उनकी जाति या धर्म पूछे भोजन पहुँचा रहे हैं. मैंने इन कर्फ्यू के दिनों में बहुतों को बिना उनका धर्म या जाति पूछे मदद पहुंचाई है. मैंने शोषितों के लिए काम किया है, चाहे वे आदिवासी, धार्मिक अल्पसंख्यक, दलित या स्त्री या LGBTQ++ समुदाय के हों या सामान्य कहे जाने वाले लोग हों, और कभी-कभी पशु-पक्षियों के लिए भी, चाहे वह सूअर हो या गाय, या कबूतर हो या चिड़िया।
भविष्य में ऐसे वक्त भी होंगे जब मैं आदिवासियों, मुसलमानों या अन्य शोषित व संघर्षरत लोगों के साथ फ़ोटो खिंचवाने में गर्व महसूस करूँगा, लेकिन वो वक्त कभी नहीं होगा कि मुझे किसी ऐसे व्यक्ति के साथ फ़ोटो खिंचवाने में किसी गर्व का अहसास होगा जिसने बहुत पैसा या कैरियर बनाया लेकिन जातिवादी, साम्प्रदायिक या पितृसत्तावादी बना रहा.
मैं कभी इतनी कठोर प्रतिक्रिया नहीं देना चाहता था, लेकिन क्षमा करें, कुछ सम्माननीय रिश्तेदारों और स्कूल के पुराने साथियों ने मुझे यह लिखने को बाध्य कर दिया. मैंने बहुत दिनों तक प्रतीक्षा की कि वे हस्तक्षेप करना बंद कर देंगे लेकिन वे नहीं रुके. और मैं ये बात साफ़ और बुलंद आवाज़ में कहना चाहता हूँ कि यदि आप दूसरे समुदाय के प्रति नफ़रत से बाज़ नहीं आते हैं, यदि आप ‘श्रेष्ठता’ के मिथ्या अहं से खुद को मुक्त नहीं कर लेते हैं, यदि आप आँखें नहीं खोलते हैं और आसपास की वैज्ञानिक सच्चाईयों को स्वीकार नहीं करते हैं और यदि आप तर्क की विनम्रता और संवाद की मूलभूत तमीज नहीं सीखते हैं, कृपया मेरी वॉल से दूर रहें अन्यथा मुझे आपको ‘ब्लॉक’ करना पड़ेगा.
बहुत आदर और सम्मान के साथ,
#VineetTiwari
#विनीततिवारी
मूल अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद:
शेखर मल्लिक
#SaveHumanity
कोरोना वायरस के संक्रमण के इस कठिन वक्त में हमारे सभी बुजुर्गों, परिवारजनों और स्कूल के पुराने साथियों के लिये संदेश,
आप मेरे बड़े, सम्मानित और सम्बन्धी भी हैं. मैं आमतौर पर अपने बड़ों और रिश्तेदारों के विचारों में छेड़-छाड़ नहीं करता क्योंकि मेरे अपने कुछ खट्टे अनुभव रहे हैं. मैं उनका सम्मान जरूर करता हूँ पर अधिकतर मैं उनके साथ बहस में नहीं उलझता. मुझे वर्ण (जाति), स्त्री और धर्म को लेकर उनके विचार अवैज्ञानिक, अस्पष्ट, अहंकारी और आधारहीन लगते हैं. समाज में बेहतरी के विचार को लेकर भी मुझे उनके कई विचारों से विरोध है. उनके हिसाब से एक भौतिकवादी जीवन (बंगला, कार, कैरियर, बैंक बेलेंस, सम्पत्ति आदि) किसी जीवन की उपलब्धियों को मापने के पैमाने हैं. और वे ‘गीता’ और सन्यास तथा जीवन के ‘माया’ मात्र होने और जीवन की तुच्छता के बारे में बातें करते हैं. मैं ऐसे दोहरेपन से घृणा करता हूँ। इसलिए, मैं उनके साथ बहस में समय नष्ट नहीं करता. मैं समान्यत: सीमारेखा का उल्लंघन नहीं करता. उन्हें क्रोधित या दुखी करना मेरा उद्येश्य नहीं है. वे मेरे जीवन के चुनाव को नहीं समझ सकते।
मैं सोशल मीडिया में भी अपने रिश्तेदारों और बड़ों से बहस में नहीं उलझता क्योंकि वह एक सार्वजानिक मंच होता है. वहां वे लोग भी होंगे जो आपको फॉलो करते होंगे या आपको निजी तौर पर जानते होंगे और वे आपके गलत तर्कों में भी आपका पक्ष लेंगे, और ऐसे लोग भी होंगे जो मेरे तर्कों से इत्तिफ़ाक़ रखेंगे और कभी-कभी केवल मेरा पक्ष लेने के क्रम में आपसे अभद्र भाषा का व्यवहार कर सकते हैं, कठोर और अप्रिय शब्दों का इस्तेमाल आपके खिलाफ कर सकते हैं. जिसे मैं भी पसंद नहीं करूँगा. मैं ऐसी सावधानी अपने सम्मान को बचाए रखने के लिए भी करता हूँ. मैं दूसरों के वॉल पर नहीं जाता और उनके पोस्टों पर अपनी टिप्पणियों से उन्हें खिझाता नहीं हूँ.
कुछ सम्बन्धियों और दूसरे पुराने स्कूल/कॉलेज के दोस्तों ने यह गलती लगातार की और इसलिए कभी-कभी उन्हें कड़ी जुबान भी झेलनी पड़ी. मैं उनलोगों को समझाने की कोशिश करता हूँ जो अभी भी मेरे प्रति कुछ आदर रखते हैं और अपने जीवन के तथ्यों के प्रति कुछ विनम्रता रखते हैं.
दूसरे, मैं परिवारजनों और वरिष्ठों की विचारधारा और विचारों का अनुपालक सिर्फ इसलिए नहीं करता कि वे बड़े हैं और मेरे सम्बन्धी हैं. और मैं भी उन्हें यही अधिकार देता हूँ. मुझे मेरे वॉल पर अपने विचार प्रकट करने का पूरा अधिकार है, और अगर किसी को उससे असहमति हो तो वह अपनी वॉल पर इसका इज़हार कर सकता है. मैं निजता के क्षेत्र का सम्मान करता हूँ. यह सोशल मीडिया का पहला शिष्टाचार है. घुसपैठ न करें.
तीसरा, मैं विचारों में मतभेद का सम्मान करता हूँ. लेकिन मैं थोपे जाने की सराहना नहीं करता. कुछ पोस्टों में सगे-सम्बन्धी या स्कूल/कॉलेज के साथी मोदी का बचाव करने की या बिना किसी आधार या वज़ह के वामपंथ पर आक्रमण करने की कोशिश करते हैं. वे बस यह इच्छा रखते हैं कि हम हर उस बात पर विश्वास करें जो भी मोदी कहते हैं, क्योंकि वे प्रधानमन्त्री हैं. ये उनका सोचना हो सकता है. मैं तर्क या कारण समझे बिना किसी के साथ कभी सहमत नहीं हो सकता. मुझे उनके पूरे समर्पण के साथ मोदी या आर.एस.एस. के उत्साही और अंधानुयायी होने से कोई समस्या नहीं है, लेकिन वे मुझसे कैसे ये उम्मीद कर सकते हैं कि मैं सरकार /सत्ता पर कोई सवाल न उठाऊँ। मैं किसी युवतर साथी के साथ भी ऐसा नहीं करता. मैं तथ्यों को सीधे सामने रखता हूँ और उन्हें वैज्ञानिक तर्कों और तथ्यों के आधार पर अपना मत रखने की स्वतंत्रता देता हूँ, न कि केवल विश्वास और अंधविश्वास के सहारे.
चौथा, मेरा इन अधिकांश सगे-सम्बन्धियों, बड़ों और पुराने दोस्तों के राजनीति, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, विज्ञान, मनोविज्ञान आदि के ज्ञान को लेकर बहुत आदरभाव नहीं है. मैं उन्हें इनमें से किसी भी विषय का भी ज्ञाता नहीं मानता. अत: मेरे लिए, उनकी टिप्पणियाँ उन लोगों जैसी है जो ‘बाबाओं’ और ‘साधुओं’ के चमत्कारों से अविभूत हो जाते हैं. पहले ऐसे दौर भी थे जब देश में बुद्धिजीवियों का सम्मान था. प्रोफेसर, शिक्षक, वैज्ञानिक, अभियंता और इस तरह के लोग राष्ट्र के वास्तुकार हुआ करते थे. ये लोग देश की आम मेधा का प्रतिनिधित्व करते थे. अब इस स्थिति में एक गुणात्मक पतन हुआ है. आजकल तो हर प्रगतिविरोधी, बाबा, मदारी, व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के विद्वान, गूगल स्नातक, अमर्त्य सेन, होमी भाभा, रोमिला थापर, विक्रम साराभाई, नोम चोम्स्की, पॉल स्वीजी, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला, गाँधी, नेहरू को पढ़ा सकते हैं.
तो मेरे सम्मानीय सगे-सम्बन्धियों और पुराने दिनों के प्यारे दोस्तों, कृपया मेरी वॉल पर अवश्य आयें, यदि आप मेरे लिए कुछ मूल्यवान साझा करना चाहते हैं या आपको सचमुच कोई जिज्ञासा या प्रश्न हो. तो मैं अवश्य इसका समाधान करने के लिए अपना कुछ वक्त देकर अपना सर्वश्रेठ जतन करूंगा, लेकिन अगर आप मेरी वॉल पर मुझपर सिर्फ ‘मोदी विरोधी’, ‘देश विरोधी’ का इल्ज़ाम लगाने के लिए आते हैं या चाहते हैं कि जो शासन प्रशासन कर रहा है मैं उसकी बिना तर्क किए तस्दीक या प्रशंसा करूँ तो मुझे माफ़ करें। मैं आपकी टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया नहीं दूँगा और मेरी पोस्ट पर से उन्हें Hide कर दूँगा, क्योंकि उससे विषयांतर होता है। मैंने ऐसा मेरे बहुत से करीबी रिश्तेदारों के साथ पहले भी किया है, भले दुखी होकर।
और अंतिम मगर जरूरी बात, जब दिल्ली के निजामुद्दीन में मरकज़ में तबलीगी जमात के लोग इक्कठे होने की और इंदौर में मुसलमानों द्वारा डॉक्टरों और अन्य मेडिकल स्टाफ़ पर पत्थरबाजी की लगातार दो घटनाएँ सामने आईं तो अचानक सारे मुसलमान खलनायक बताये जाने लगे। मेरी एक पोस्ट जो कोरोना वायरस की महामारी में साम्प्रदायिकीकरण की प्रवृति से संबंधित थी, उस पर प्रतिक्रिया देते हुए मेरे सम्माननीय सगे-सम्बन्धी ने यह लिखा :
"जब तुम ऐसे लोगों के कई आंदोलनों में इनकी तरफदारी करने दौड़ के पहुँचते हो,
जब तुम ऐसे लोगों के साथ अपनी तस्वीरें खिंचवाते हो,
तब यह तुम्हारी जिम्मेदारी है कि ऐसे लोगों को समझाओ।"
कहने का मतलब समझो
"ऐसे लोगों" के समर्थन में दौड़कर पहुंचते हो
पोस्टर लेके फ़ोटो खिंचवाते हो
तो समझाओ भी (मूल संदेश)
ये सज्जन शायद यह कभी समझ नहीं पाएँगे कि इन तीन-चार पंक्तियों में क्या गलत उन्होंने लिखा है. ये चार पंक्तियाँ उनके दिमाग में भरे साम्प्रदायिक कचरे को स्पष्ट दिखाती हैं। "ऐसे लोगों" से उनका क्या मतलब है? वे पूरे मुस्लिम समाज के प्रति अपनी घृणा छिपा नहीं सके. क्या उनका मतलब है कि हर वह मुसलमान जिसका मैंने पक्ष लिया था, डॉक्टरों पर थूक या पत्थर चला रहा था? मुझे एक इंसान दिखाओ जो उनके इस "ऐसे लोगों" की श्रेणी में आता हो.
ऐसे सगे-संबंधी और बचपन के सहपाठी उन कुछ आर एस एस वालों से भी गये गुजरे हैं, जो दिन-रात भूखों को बिना उनकी जाति या धर्म पूछे भोजन पहुँचा रहे हैं. मैंने इन कर्फ्यू के दिनों में बहुतों को बिना उनका धर्म या जाति पूछे मदद पहुंचाई है. मैंने शोषितों के लिए काम किया है, चाहे वे आदिवासी, धार्मिक अल्पसंख्यक, दलित या स्त्री या LGBTQ++ समुदाय के हों या सामान्य कहे जाने वाले लोग हों, और कभी-कभी पशु-पक्षियों के लिए भी, चाहे वह सूअर हो या गाय, या कबूतर हो या चिड़िया।
भविष्य में ऐसे वक्त भी होंगे जब मैं आदिवासियों, मुसलमानों या अन्य शोषित व संघर्षरत लोगों के साथ फ़ोटो खिंचवाने में गर्व महसूस करूँगा, लेकिन वो वक्त कभी नहीं होगा कि मुझे किसी ऐसे व्यक्ति के साथ फ़ोटो खिंचवाने में किसी गर्व का अहसास होगा जिसने बहुत पैसा या कैरियर बनाया लेकिन जातिवादी, साम्प्रदायिक या पितृसत्तावादी बना रहा.
मैं कभी इतनी कठोर प्रतिक्रिया नहीं देना चाहता था, लेकिन क्षमा करें, कुछ सम्माननीय रिश्तेदारों और स्कूल के पुराने साथियों ने मुझे यह लिखने को बाध्य कर दिया. मैंने बहुत दिनों तक प्रतीक्षा की कि वे हस्तक्षेप करना बंद कर देंगे लेकिन वे नहीं रुके. और मैं ये बात साफ़ और बुलंद आवाज़ में कहना चाहता हूँ कि यदि आप दूसरे समुदाय के प्रति नफ़रत से बाज़ नहीं आते हैं, यदि आप ‘श्रेष्ठता’ के मिथ्या अहं से खुद को मुक्त नहीं कर लेते हैं, यदि आप आँखें नहीं खोलते हैं और आसपास की वैज्ञानिक सच्चाईयों को स्वीकार नहीं करते हैं और यदि आप तर्क की विनम्रता और संवाद की मूलभूत तमीज नहीं सीखते हैं, कृपया मेरी वॉल से दूर रहें अन्यथा मुझे आपको ‘ब्लॉक’ करना पड़ेगा.
बहुत आदर और सम्मान के साथ,
#VineetTiwari
#विनीततिवारी
मूल अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद:
शेखर मल्लिक
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