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शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

सपने हाथी दांत नहीं होते

सपने हाथी दांत नहीं होते,
जिनको बेशकीमती तो कहा जाय...
मगर उन पर
इल्जाम लगे कि महज दिखाने के लिए हैं...
यथार्थ का छद्म सौंदर्य !
जिनके लिए खून बहे तो
कीमतों में तौला जाय...
और बेशर्म खरीद-फरोख्त हो !

सपने
गाढ़े लहू से सींचे गए होते हैं... मेरी दोस्त
सपनों के लिए सजावटी कुर्बानियाँ नहीं दी जातीं
कि जिसे आने वाला वक्त
जज्बातों की प्रदर्शनियों में रखे और
नीलामी के वास्ते बोलियाँ
ऊँचें सुरों में
ज़माने भर की बेहयाइयों के साथ लगायी जायं

हर कदम पर
जितनी दुखी है
मेरी रूह,
जितना टूटा है मेरा बदन
जिस वक्त...
मेरी ईमानदारियों की रौशनी ने तुझे
रास्ता दिखाने की
पुरजोर कोशिश की है...
तकलीफ का पूरा अंधड़
मेरे भीतर से गुजरा है...
और आह मेरी तुम भी सुन नहीं पाई हो...!
हाँ, मेरे सपनों की महक
का नीम अहसास तुम्हें हुआ तो जरूर है !

प्रेम करना और सपने देखना
बहुत आसान है मेरी दोस्त...
सपनों में पकते हुए रिश्ते के लिए ईमानदार होना
उतना ही बड़ा इम्तिहान...
जिससे मैं भी गुजरा हूँ, तुम भी गुजरी हो...

मेरे सपने जिसमें तुम भी शामिल रही हो,
तुम्हारी तरफ वालों के
कायदों और नफा-नुकसान की तमीज से बेखबर
खालिस थे,
और महज़ जिंदा होने की बात किया करते थे...
सौदेबाज़ भी नहीं हुए...
तुमसे दगाबाज़ भी नहीं हुए...

आज उन सपनों को रिश्तों की मानिंद निभाता हूँ
बहुत है कि, सिर्फ़ इसी तरह तुमसे भी जुड़ता हूँ...

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम करना और सपने देखना
    बहुत आसान है मेरी दोस्त...
    सपनों में पकते हुए रिश्ते के लिए ईमानदार होना
    उतना ही बड़ा इम्तिहान...
    जिससे मैं भी गुजरा हूँ, तुम भी गुजरी हो...
    बेहद..उम्दा..अपने आप में हकीकत की तल्खियों के साथ उपस्थित............

    जवाब देंहटाएं
  2. यथार्थ के धरातल पर सपनों की परख करती ये कविता द्वंद्वों परे अपना आयाम स्थापित करती है जो अपने समय की तल्ख्ब्यानी है .हर स्थिति में सपनो को बचाए रखने की कवायद और वह भी उसके मूल स्वरुप में निश्चित ही सजावटी कुर्बानियों से नहीं उपजा है. तकलीफों से गुजर कर ख़ुशी पाने का गाढ़ा अहसास तीव्रता के साथ उभर कर आया है .एक उम्दा रचना .

    जवाब देंहटाएं
  3. हाँ ...मेरे सपनो की महक का
    नीम अहसास तुम्हे हुआ तो जरूर है ....बहुत सुन्दर जी
    सपनो में पकते हुए रस्ते के लिये इमानदार होना ....उतना ही बड़ा इम्तिहान है जिस से में भी गुजरा हूँ...वाह जी वाह शेखर जी ने बहुत ही गज़ब लिखा है ...और अन्तिम
    पंक्तियाँ ...आज उन सपनो को ...रिश्तों की मानिद निभाता हूँ ...बहुत है की, सिर्फ इसी तरह तुम से भी जुड़ता हूँ .......एक साधारण इन्सान की बात को ....सपनो की दुनिया के साथ सुन्दर अभिव्यक्ति में लिखा है ...धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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