क्या ऐसा नहीं होगा कि, कल को आप लोग पूछेंगे -
तुम्हारी कविता में फूल क्यों नहीं थे... ?
बादल और हरियाली...
आईने और सुंदरता...
उन तमाम मादक गंधों की बातें और मुलायम देह...
मांसल आसक्ति और चुम्बन-आलिंगन...
आदि-आदि...
गायब क्यों थे ?
लड़कियाँ थीं, मगर...
बारिश थी, मगर...
खेत और नदी थे मगर...
चिड़ियाँ थीं, मगर...
बदन की जुम्बिशें थीं, मगर...
प्यार भी 'वैसा' नहीं था... !
कुछ भी तुमने 'वैसा' नहीं रखा था...
जो हमारी सोच, स्वाद और आदतों में शुमार रहा आया था...
ऐसा क्यों था...
शायद इसको समझाने के लिए
मेरी वही कविता नाकाफी
होते हुए भी
बहुत मजबूत 'स्टेटमेंट' होगी
कि मेरी कविता के समय में
यह सब अप्रत्याशित रूप् से नहीं
बल्कि एक तय साजिश के तहत
कारतूस, बारूद, खंजर, त्रिशूल, चाकू-गुप्ती,
भाला और भाषा, रस्सी-फंदा, ज़हर-गैस, पूँजी-नीति, विकास का मॉडल...
सांठ-गाँठ, दलाली, बेहयाई और भ्रम इत्यादि के पैदा किये हुए
दलदल की तलछट में चेप दिए गए थे...
मैं इन्हें (उपरोक्त प्रथम सूची के तत्वों, जिनके नहीं होने के लिए आप भविष्य में शिकायत करेंगे)
कविता में, जितनी तड़प, खुशी और शिद्दत से देखना चाहता था,
हर बार उपरोक्त दूसरी सूची के तत्वों की अधिक तीव्रतर उपस्थिति के कारण
बेबस, विकल्पहीन और मायूस हो जाता था...
इसलिए क्षमा करें... कि ,
मैं अपनी कविता में कोई भी सुन्दर चित्र टांक नहीं पाया !
अक्सर सत्य के आवेग से मेरी उंगलियाँ थरथराती थीं और
कल्पनाशीलता अनुर्वर हो गयी थी...
जो सच था, मेरी जमीर के सामने,
बिना लाग-लपेट के बयान हो गया...
बदहवास भागता आदमी हर बार...
ठीक मेरी नाक की सीध में आ जाता था... बिलबिलाकर मर जाता था...
अपने हक़ को भीख की शैली में माँगता हुआ और
मैं फूल-पत्ती-मादा
के सारे प्रचलित मुहावरों और सन्दर्भों से कट जाता था !
यकीन मानिये, यह केवल मेरा नहीं, उस समय...
मेरे सभी समकालीनों का समान साहित्यिक प्रारब्ध था...
कुछ बातें जो रह जाती हैं कभी मन में, अनकही- अनसुनी... शब्दों के माध्यम से रखी जा सकती हैं,बरक्स... मेरे-तेरे मन की कई बातें... कई सारे अनुभव, कई सारे स्पंदन, कई सारे घाव और मरहम... व्यक्त होते हैं शब्दों के माध्यम से... मेरा मुझी से है साक्षात्कार, शब्दों के माध्यम से... तू भी मेरे मनमीत, है साकार... शब्दों के माध्यम से...
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बुधवार, 24 नवंबर 2010
मेरी कविता में वह सब क्यों नहीं था
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ैइसलिये क्षमा करें………………बयान हो गया
जवाब देंहटाएंसारा सार यहां आ गया और अब कहने को कुछ नही बचा ……………बेहद उम्दा प्रस्तुति …………शायद यही हर संवेदनशील दिल का हाल है ।
संवेदनशील मन की यही व्यथा है ....
जवाब देंहटाएंसुंदरता है नहीं तो कहाँ से कविता कहानियों में सौंदर्य रचा जाए...
बहुत गंभीर बात....
सत्य से साक्षात्कार करती सार्थक रचना!
आभार!
संवेदन शील मन की रचना है
जवाब देंहटाएंअच्छा है कि यह संवेदना बची रहे।