किताबों को नहीं पढ़ना किताबों को जलाने से बढ़कर अपराध है | -– रे ब्रेडबरी
किताबें हमारी सबसे भरोसेमंद और ईमानदार सहयात्री होती हैं. ये अपने समय का प्रामाणिक सामाजिक-राजनीतिक कलात्मक दस्तावेज तो होती ही हैं, कालान्तर को पाट कर इतिहास और भविष्य तक भी हमारी यात्रा कराती हैं. किताबें सर्वश्रेष्ठ बौद्धिक सम्पदा होती हैं. ये मानस का परिष्कार और परिमार्जन तो करती ही हैं, दूसरी दुनिया की तरफ खुलने वाली खिड़की होती है.
दोस्तों, किताबों पर लिखना बहुत सुखद होता है. ठीक उतना ही, जितना उनसे गुजरना. पढ़ लेने के बाद पढ़े हुए को दोबारा चेतना में बुनना-गुनना मनन और चिंतन का महत्वपूर्ण पड़ाव है, जहाँ पर ठहर कर अपने बोध को तौलने और साझा करने का मौका मिलता है. चेतना के स्तर पर उस बोध को आत्मसात करने का अवसर है, पढ़े हुए पर बात करना. जैसे मानस को पृष्ठ दर पृष्ठ खोलना...
जब हम रचना पर बात करते हैं, तो रचनात्मक पक्षधरता पर भी बात करनी होती है. सर्वकालीन महान साहित्य नितांत मनुष्य के प्रति पक्षधर होता है. मनुष्य-विरोधी साहित्य अगर रचा जाय भी तो, वह अत्यंत अल्पजीवी होगा. प्रेमचंद, यशपाल, रेणु, रान्घेय राघव, नागार्जुन, मन्नू भंडारी, कृष्णा सोबती, शिवमूर्ति, और कई लेखकों की कहानियाँ, मनुष्य मात्र के प्रति कोमल और तीखी रागात्मक संवेदना से भरी हुई हैं. सभी बड़ी रचनाओं का एक केन्द्रीय तत्व प्रेम भी होता है. प्रेम ही वह मूल अनुभूति है, जो संवेदना के रूप में प्रकट होती है. कला बगैर प्रेम के संभव ही नहीं है. प्रेम ही पक्षधरता के लिए प्रेरित करता है.
किताबें आपको सिखाती हैं कि, आदमी कैसे बनना है. अच्छी किताबें मनुष्य को तराशती हैं. बहुधा हम किताबों के मध्यम से उजाले की एक नई दुनिया में आते हैं, जहाँ औरों के जिए, भोगे अनुभव, संस्कृति व परम्पराओं, राग-द्वेष के, जीवन के बहुआयामी अनुभवों से हमारा साक्षात्कार होता है.
दोस्तों, चेतना के स्तर पर झकझोरने का माद्दा रखने वाली पढ़ी हुई कुछ ख़ास किताबों की याद आ रही हैं... इस बार सिर्फ़ गद्य साहित्य पर बात करता हूँ, पद्य और अन्य रचनाओं पर आगे कभी... इन और अन्य कई पर अलग-अलग भी बातें होंगी. फिलहाल...
प्रेमचंद का "गोदान", रेणु का 'मैला आंचल", श्रीलाल शुक्ल का "रागदरबारी", यशपाल का "झूठा सच", कृष्णा सोबती का "मित्रो मरजानी", मंजूर एहतेशाम का "सुखा बरगद", राही मासूम राजा का "आधा गाँव", विनोद कुमार शुक्ल का "मुझे चाँद चाहिए", धर्मवीर भारती का "सूरज का सांतवा घोड़ा", मैत्रेयी पुष्पा का "बेतवा बहती रही"... और ना जाने कितनी कृतियाँ... एक पाठक के रूप में आपको संवारती हुई, संस्कार देती हुई और लेखक के रूप में मांजती हुईं... "शेखर एक जीवनी", "गुनाहों का देवता" और "निर्मला"... वर्जनाओं को तोड़ने वाली रचनाएँ, संवेदनात्मक गाढ़ेपन को पुष्ट करती हैं. सर्वकालीन महानतम पुस्तकों में कई नाम शुमार किये जा सकते हैं. गोर्की की "माँ", तोल्स्तोय का "युद्ध और शान्ति"... मार्खेज़ का “वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सोलिट्यूड” और “लव इन द टाइम ऑफ कोलेरा” जब हम महान कृतियों की सूची बनाते हैं, तो ऐसी बहुत सी रचनाओं को इसमें स्थान देने को बाध्य होना पड़ता है, जो मनुष्यता को प्रधान तत्व बनाकर रची गयीं और ऐसा होना लाजमी भी था.
हिन्दी की कुछ प्रमुख कहानियाँ (लिंक सहित) -
यशपाल – पर्दा
रेणु - संवदिया
मन्नू भंडारी – त्रिशंकू
शिवमूर्ति - तिरिया चरित्तर
सृंजय – कामरेड का कोट
उदय प्रकाश - मोहनदास
इस सूची में आप और कई सारी रचनाएं जोड़ते जा सकते हैं... ये सूची कभी अंतिम नहीं हो सकती.
किताबें बात आपने किताबों की छेड़ी है तो बटा देते हैं..किताबें क्या हैं मेरे लिए...ये वही किताबें हैं...जिनके लिए ना जाने कितनी बार पापा से पिटा हूँ...ये वही किताबें हैं जिन्हें पढने के लिए घर के अँधेरे कोनो में भी मुझे अच्छे लगते थे...ये वही किताबें हैं जिन्हें कोर्से की किताबों के बीच छुपा के पढ़ा है....ना जाने कितनी बार पिटा कोई गिनती नहीं उसकी..वों भी अच्छे तरीके से पिटाई होती थी...वैसे भी मेरे पापा हर काम परफेक्ट करते हैं ..सो जाहिर है मुझे सुधरने के लिए भी सालो मेरी पिटाई भी कितने परफेक्ट तरीके से की गई होगी......किताबें क्या हैं मेरे लिए -''शायद एक शब्द में कहूँ तो किताबें मेरी सबसे अच्छी '' दोस्त '' रही जब मैं किसी परेशानी में रहा या कहीं भी अक्सर ये किताबें कोई ना कोई सलूशन मेरी प्रोब्लुम का ढूंढ़ ही लती हैं....जब मैं कभी परेशां हूवा या होता हूँ तो बंद हो जाता हूँ एक कमरे में इन किताबों के साथ ...ये किताबें मुझे हर दर्द से निजात दिला देती हैं....कभी कभी मूड होता है एक कमरा हो , मैं हूँ मेरी किताबें हो ...एक चाय का प्याला हो ..बस और कुछ ना भी हो तो कोई गम नहीं ये दुनिया मेरे लिए .....सबसे हसीं दुनिया है...........शुक्रिया
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