हमारे लिए दूसरे का दुःख
सिर्फ़ एक सूचना होती है...
अपने से परे का यथार्थ हमारा नहीं होता
इसलिए तदनुभूति कोरी गप्प है...
किस भी समय हम दूसरे में नहीं जी सकते
या ऐसा बहुत कम होता है
जब हम इस पर शिद्दत से सोचते हैं और
सफल भी होते हैं...!
हर दर्द-
हर टीस-
हार चुभन-
हर बार सिर्फ़
महसूस की जाती है... सिर्फ़ उसको जो
उसे भोग रहा होता है...
अकेला और मौलिक तौर पर
उसके बाहर सिर्फ़ लफ्फाज...बयानबाजियां...
सिर्फ़ कोरी सूचनायें... !
इन्हीं कोरी सूचनाओं पर आधारित संवेदनशीलता और भी
तकलीफ़देह होती है
दोनों तरफ के लोगों के लिए...
कुछ बातें जो रह जाती हैं कभी मन में, अनकही- अनसुनी... शब्दों के माध्यम से रखी जा सकती हैं,बरक्स... मेरे-तेरे मन की कई बातें... कई सारे अनुभव, कई सारे स्पंदन, कई सारे घाव और मरहम... व्यक्त होते हैं शब्दों के माध्यम से... मेरा मुझी से है साक्षात्कार, शब्दों के माध्यम से... तू भी मेरे मनमीत, है साकार... शब्दों के माध्यम से...
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शनिवार, 19 जून 2010
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कविता कथ्य के स्तर पर अच्छी लगी…
जवाब देंहटाएंसही अभिव्यक्त किया है- उसके बाहर सिर्फ़ लफ्फाज...बयानबाजियां...
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें