कुछ बातें जो रह जाती हैं कभी मन में, अनकही- अनसुनी... शब्दों के माध्यम से रखी जा सकती हैं,बरक्स... मेरे-तेरे मन की कई बातें... कई सारे अनुभव, कई सारे स्पंदन, कई सारे घाव और मरहम... व्यक्त होते हैं शब्दों के माध्यम से... मेरा मुझी से है साक्षात्कार, शब्दों के माध्यम से... तू भी मेरे मनमीत, है साकार... शब्दों के माध्यम से...
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मंगलवार, 29 जून 2010
आज उसके रुखसार को जी भर देखा
आज उसके रुखसार को जी भर देखा
मुस्कुराई वह या वस्ल की वो राहत थी...
जर्द चेहरे पर भी एक नूर सा आ गया
उस नज़र में भी क्या बरकत थी...
गुल भी खिले थे, खार भी दरम्यां थे कई
उल्फत जो इक जिद थी, मुक्कमल हसरत थी
हमने पत्थरों पर लिखी एक दास्ताँ प्यारी
मोहब्बत हमारी एक मासूम सी इबारत थी
पत्थर तो आए बहुत हमारे सर को
इश्क में भी वो फौलाद-ए-नजाकत थी
अब तो बाकि उम्र का जाने हासिल क्या हो
गले लगकर गुज़रे लम्हात ही सारी नेमत थी
पेशानी पर उसके पसीना, रुख पे अश्क ढुलके
थोड़ी देर को ही रूबरू थे,फिर तो क़यामत थी
- २९/०६/२०१० की सुबह
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बहुत उम्दा!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गज़ल .
जवाब देंहटाएंcomments ki setting se word verification hata den to tippani karane walon ko aasaani ho jayegi ..
kyaa khoob likhte hain.
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