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बुधवार, 12 जनवरी 2011

शमशेर की रचनाएँ... - २

दिल, मेरी कायनात अकेली है - और मैं !
बस अब खुदा की जात अकेली है, और मैं !

तुम झूठ और सपने का रंगीन फर्क थे :
तुम क्या, ये एक बात अकेली है, और मैं !

सब पार उतर गए हैं, अकेला किनारा है :
लहरें अकेली रात अकेली है, और मैं !

तुम हो भी, और नहीं भी हो -- इतने हसीं ह:
यह कितनी प्यारी रात अकेली है, और मैं !

मेरी तमाम रात का सर्माया एक शमअ
खामोश, बेसबात, अकेली है, और मैं !

'शमशेर' किस को ढूँढ रहे हो हयात में
बेजान-सी इयात अकेली है, और मैं !

("आजकल" पत्रिका के जनवरी २०११ अंक के तीसरे आवरण पर)

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